पुत्र-मोह जो न करा दे, कुछ माह पूर्व तक हर बात में मोदी को कोसनेवाले यशवन्त ने किया मौन व्रत धारण
कहा जाता है कि आप सबसे जीत सकते हैं, पर अपनी औलाद से नहीं। चुनावी घोषणा के पूर्व तक हर मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कोसनेवाले, हजारीबाग के पूर्व सांसद एवं कई बार केन्द्रीय मंत्री पद का शोभा बढ़ानेवाले, तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के इमेज को बुरी तरह प्रभावित कर देनेवाले यशवन्त सिन्हा इन दिनों राजनीतिक मौन व्रत धारण किये हुए हैं।
वे एक शब्द भी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ नहीं बोल रहे, शायद वे 23 मई का इन्तजार कर रहे हैं, अगर 23 मई को नरेन्द्र मोदी के पक्ष में परिणाम आया तो मोदी की जय–जय भी बोल सकते हैं और अगर मोदी की कुर्सी हिली तो उनके लिए बोलने का एक शानदार अवसर भी प्राप्त हो जायेगा।
2014 में अपने बेटे जयन्त सिन्हा को हजारीबाग से भाजपा का टिकट दिलाने में प्रमुख रोल अदा करनेवाले यशवन्त सिन्हा करीब दो–तीन माह पहले तक नरेन्द्र मोदी के खिलाफ काफी मुखर थे, वे कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ते थे, जिसमें नरेन्द्र मोदी की खिचाई नहीं होती है, वे इसी बीच भाजपा के घुर विरोधियों से मिलकर भाजपा और उनके बड़े नेताओं को चिढ़ाने से भी नहीं चूके, हालांकि जिस दर्द को वे झेल रहे थे, उस दर्द का शिकार लालकृष्ण आडवाणी और डा. मुरली मनोहर जोशी को भी होना पड़ा।
चूंकि लाल कृष्ण आडवाणी और डा. मुरली मनोहर जोशी संघ–बेल्ट से आते हैं, इसलिए उन्हें पता था कि भविष्य में उनके साथ क्या होनेवाला है, इसलिए वे सारे अपमान सहकर भी चुप्पी साधे रहे, पर यशवन्त तो, यशवन्त थे, भला एक प्रशासनिक अधिकारी, जो हमेशा रुआब में रहा, वो आज रुआब कैसे छोड़ेगा, हां कुछ महीनों की बात रहे तो बात कुछ और है।
राजनैतिक पंडितों की मानें तो वे साफ कहते है कि चाहे प्रशासनिक अधिकारी रहा व्यक्ति हो या राजनेता, वो जो भी कमाता है, वो देश या समाज के लिए नहीं कमाता, अंततः उसकी कमाई पत्नी, बेटे–बेटियों, बहुओं, पोते–पोतियों तथा अलग से रखी प्रेमी–प्रेमिकाओं पर ही जाकर समाप्त होता है, ऐसे में भला यशवन्त सिन्हा कोई देवदूत या संत–महात्मा थोड़े ही है, इसलिए उन्होंने जब तक हजारीबाग का चुनाव समाप्त नहीं हो गया, वे मौन ब्रत रखने में ही ज्यादा ध्यान दिये। इनका मौन व्रत तो अभी जब तक चुनाव परिणाम नहीं आयेगा, तब तक चलता रहेगा।
चुनाव परिणाम आते ही, वे परिणाम को देखकर मुख खोलेंगे, जैसे अगर मोदी मजबूत हो गये और उनका बेटा चुनाव जीत गया तो फिर जब तक उनका बेटा मंत्री नहीं बनेगा, मौन व्रत जारी रहेगा, और अगर मोदी कमजोर हुए, उनका बेटा चुनाव हार गया तो देखियेगा, ये इतने मुखर होंगे कि मोदी की हालत भले ही इनके भाषणबाजी से खराब हो या न हो, पर मोदी के इमेज को खराब करने में कम भूमिका नहीं निभायेंगे।
हालांकि हजारीबाग ही नहीं, पूरे झारखण्ड की जनता यशवन्त सिन्हा के इस रुप तथा मौन व्रत को देख अचंभित है, हर बात में मोदी और केन्द्र सरकार को गरियानेवाला, अपने भाषण और ट्विटर से छा जानेवाला, व्यक्ति इतना शांत कैसे हो गया, लेकिन जो जानकार है, वे सब जानते है कि ये सारा मामला जयन्त के चुनाव जीतने और मंत्री बनने तक सीमित है। ऐसे मामलों में केवल यशवन्त सिन्हा ही अकेले नही है, ऐसे बहुत सारे नेता है, जिनका जीवन देश व समाज के लिए कम और परिवार पर ज्यादा केन्द्रित रहा।
जबकि झारखण्ड में ही एक ऐसा भी नेता हुआ जो तीन–तीन बार विधायक रहा और तीन–तीन बार सांसद रहा, पर उसका दिल कभी अपने परिवार के लिए नहीं धड़का, उसका पूरा जीवन ही समाज व देश के लिए केन्द्रित रहा, ये अलग बात है कि आज की पीढ़ी उसे पसन्द नहीं करती और न वैसा जिंदगी जीना चाहती है, क्योंकि वर्तमान व पूर्व की केन्द्र सरकार ने उदारीकरण के बाद उपभोक्तावादी संस्कृति को इस प्रकार देश में स्थापित कर दिया कि अब देश को शायद ही कोई लाल बहादुर शास्त्री या ए के राय जैसा नेता मिले।