झारखण्ड में विलुप्त हो रही औषधीय पौधों के संरक्षण व संवर्द्धन पर रांची में विशेष चर्चा संपन्न
रांची के बूटी मोड़ स्थित सूर्यमुखी दिनेश आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के परशुराम सभागार में ‘औषधीय पौधों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के महत्व’ पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन विनोबा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति डा. (प्रो.) रमेश शरण ने किया।
इस अवसर पर डा. रमेश शरण ने झारखण्ड के विभिन्न शहरों एवं प्रमुख स्थानों पर मिलनेवाले विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि उन्हें दुख है कि प्रकृति के प्रति हमारी बेरुखी और औषधीय पौधों के प्रति हमारी जागरुकता खत्म होने से बहुत सारे औषधीय पौधे विलुप्त हो गये, जो हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी थे।
उन्होंने कहा कि देवघर के त्रिकूट पर्वत पर मिलनेवाली कई औषधियां आज देखने को नहीं मिल रही, और अगर हम थोड़ा सा प्रयास करें, प्रकृति को उनके अपने हाल पर छोड़ दें, तो वे विलुप्त औषधियां पुनः प्राप्त होंगी, क्योंकि प्रकृति में यह सब संभव है, प्रकृति स्वयं उन सारी चीजों का निर्माण करने में सक्षम हैं, जो हमारे लिए बहुपयोगी है।
उन्होंने औषधीय पौधों के संरक्षण एवं संवर्द्धन विषय पर आयोजित इस एकदिवसीय कार्यशाला की भूरि–भूरि प्रशंसा की, तथा इस प्रकार के आयोजनों से सभी को लाभ उठाने का आह्वान किया, उनका कहना था कि जैसे ही हम औषधीय गुणों वाली पौधों के बारे में जानने और समझने की कोशिश करेंगे, एक तारतम्य बनेगा और फिर इन औषधीय पौधों के संरक्षण एवं संवर्द्धन का काम आसान हो जायेगा।
डा. रमेश शरण ने कहा कि झारखण्ड में औषधीय गुणों से विभूषित पौधों का अकूत भंडार छिपा है। यहां कई ऐसी जनजातियां हैं, जो उन औषधीय गुणों वालें पौधों के बारे में बहुत विस्तार से जानती हैं। वे आज भी इन औषधीय गुणों से सुसज्जित पौधों, जड़ी–बूटियों को लेकर बाजारों में उपस्थित होती हैं, जरुरत हैं, उनके साथ संबंध प्रगाढ़ कर, उन औषधीय गुणों वाले पौधों को जानने और समझने की, जब तक हम उनके साथ प्रेम संबंध को प्रगाढ़ नहीं बनायेंगे, उनसे बेहतर संबंध नहीं बनायेंगे, बातचीत नहीं करेंगे, हम औषधीय पौधों का संरक्षण व संवर्द्धन करने में कामयाब नहीं हो पायेंगे।
उन्होंने एक उदाहरण भी दिया कि पूर्व में किसी को खांसी हो जाती थी, तो घर के दादा–दादी उसे तुलसी का काढ़ा पिलाने की कोशिश करते थे, घर–घर में तुलसी का पौधा होता था, लोगों को सलाह दी जाती थी कि सबेरे तुलसी के कम से कम पांच पत्तियां अवश्य खायें, ताकि स्वास्थ्य बेहतर रहे, साथ ही यह भी हिदायत दी जाती थी कि सप्ताह में दो या तीन दिन तुलसी को छूना भी वर्जित है, यानी इसके पीछे साफ उद्देश्य था कि तुलसी का संरक्षण और संवर्द्धन भी हो, नहीं तो केवल उसका दोहन करेंगे तो फिर वह न तो संरक्षित होगा और न ही संवर्द्धित। जब तक इन विचारों को आत्मसात नहीं करेंगे, हमारा आगे बढ़ना संभव नहीं।
कार्यक्रम को बीआइटी मेसरा के फार्मेसी कॉलेज के डा. (प्रो.) के. जयराम कुमार, डा. (प्रो.) एस के झा ने भी संबोधित किया तथा औषधीय पौधों के बारे में विशेष जानकारी प्रदान की। कॉलेज के निदेशक डा. हरिहर प्रसाद पांडेय ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि उन्हें खुशी है कि उनके प्रांगण में होनेवाले इस विशेष कार्यशाला में इस क्षेत्र के विद्वतजनों ने भाग लिया तथा इसकी सार्थकता को बढ़ाया।
उन्होंने कहा कि उन्हें पूर्ण विश्वास है कि इस कार्यशाला से सभी लाभान्वित हुए होंगे, तथा समाज को इसका लाभ मिलेगा। इस कार्यशाला के दौरान औषधीय पौधों की एक प्रदर्शनी भी लगाई गई थी, जिसके बारे में कॉलेज के प्राचार्य डा. अमिताभ कुमार ने विशेष जानकारी दी। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कॉलेज के छात्र–छात्राओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और इसका लाभ लिया।