अपनी बात

हेमन्त सरकार के तीन साल पूरे होने पर विशेषः आप माने या न माने, यह सरकार जैसी भी हो पर झारखण्डियों को CM हेमन्त ही पसन्द हैं

किसी भी सरकार के लिए तीन साल कम नहीं होते, क्योंकि तीन साल का मतलब है कि इस सरकार ने अपने कार्यकाल के आधे समय पूरे कर चुके हैं और यह आधा समय बता देता है कि सरकार के इरादे क्या हैं? वो अपने राज्य को किस ओर ले जाना चाहती है? कठपुतली सरकार है या मजबूत सरकार है? जनहित में अब तक कितने फैसले उसने लिये हैं और अब तक हुए उप चुनाव में इस सरकार को कितने फायदे या कितने नुकसान उठाने पड़े हैं, क्योंकि उपचुनाव से आप एक प्रकार से आकलन कर सकते है कि इस चल रही सरकार से जनता कितनी संतुष्ट और कितनी असंतुष्ट है?

आइये हम आकलन करें कि हेमन्त सरकार वर्तमान में कहां पर आकर खड़ी हैं, क्या उसे जनता का अब भी विश्वास प्राप्त है या जनता का इस सरकार से विश्वास डिगा है और अगर जनता का विश्वास प्राप्त है तो उसके कारण क्या है? जनता का अगर विश्वास डिगा है तो उसके क्या कारण है? पर ये जानने के लिए यह पहले जानना जरुरी है कि ये सरकार सत्ता में कैसे आई? उसे सत्ता में आने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े? क्योंकि जब तक आप इसे नहीं जानेंगे, तब तक आप सही आकलन नहीं कर पायेंगे और इसके लिए हम आपको सीधे ले चलते हैं, 2019 के पूर्व के समय में। जब राज्य में पीएम नरेन्द्र मोदी की कृपा से भाजपा का शासन था, रघुवर दास मुख्यमंत्री थे।

एक लोकोक्ति है, किसी का चरित्र देखना हो तो बस उसे सत्ता सौंप दीजिये, उसका सबसे सुंदर उदाहरण राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास थे। जैसे ही सत्ता में आये, तो इन्होंने अपने ही भाजपा कार्यकर्ताओं का क्लास लेना शुरु किया, जिसका कारण था कि इन्हीं के कार्यकर्ताओं ने ‘चुपेचाप चचा साफ’ का नारा दिया और सचमुच ‘चुपेचाप चचा साफ’ भी हो गये।

कार्यकर्ताओं को किनारा करने के बाद इन्होंने ब्राह्मणों के खिलाफ कुचक्र रचना शुरु किया, पलामू में एक सभा के दौरान ब्राह्मणों के खिलाफ अनाप-शनाप बोलना शुरु किया, जिसका परिणाम हुआ, भाजपा का वोटर ब्राह्मण बिदक गया और सदा के लिए सबक सिखाने के लिए भाजपा का कट्टर विरोधी बन गया। रांची में तो इसी दौरान ब्राह्मणों ने गुप्त तरीके से इनकी सत्ता का सर्वनाश करने के लिए ‘रघुवर सत्ता विनाशक यज्ञ’ तक संपन्न किया, परिणाम सामने हैं। यही नहीं इन्होंने सत्ता में मदांध होकर विधानसभा में ही अपने विरोधियों के लिए अपशब्द का प्रयोग किया, जो दूसरे दिन रांची से प्रकाशित सारे अखबारों की सुर्खियां बन गई और जिनके लिए इन्होंने अपशब्द का प्रयोग किया, वो कोई और नहीं, बल्कि झामुमो के नेता थे।

इधर सत्ता के मदांध में इनके आस-पास भटकनेवाले कनफूंकवों ने भी आग में घी डालने का काम किया। जो लोग रघुवर के कट्टर हितैषी थे, उन्हीं के खिलाफ चुन-चुनकर विभिन्न थानों में प्राथमिकी दर्ज कराना शुरु कर दिया। हद तो तब हो गई कि सीएमओ में बैठे कनफूंकवों ने रांची से प्रकाशित अखबारों के कार्यालय में फोन करवाकर उससे संबंधित समाचार प्रमुखता से छपवाने का दबाब तक डालते थे और इस दबाव में रांची से प्रकाशित अखबार पत्रकारिता की धज्जियां उड़ा दिया करते, इस कुकर्म में रांची के सारे अखबार शामिल थे।

इसी घमंड में हाथी उड़ाने का भी कार्यक्रम बना, पता नहीं किस कंपनी ने रघुवर दास के दिमाग में ये भर दिया कि हाथी उड़ाने का लोगो ‘मोमेंटम झारखण्ड’ में लाया जाय और रघुवर दास ने हाथी उड़ाने का लोगो जारी किया, करोड़ों रुपये रांची से लेकर दिल्ली ही नहीं बल्कि विदेशी मीडिया पर प्रचार के लिए फूंक दिये गये, और जब झारखण्ड में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आया तो झारखण्ड के सभी अखबारों को मुंहमांगी विज्ञापनों से मुंह भर दिया गया। कई अखबार तो कॉफी टेबल बुक भी राज्य सरकार की कृपा से छापने लगे, जिसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं था, मकसद था सिर्फ लाखों रुपये सरकार से ऐंठ लेना।

इसी दौरान कई अखबारों ने भी चरित्र दिखाया, संपादकीय पेज तक पर दो-दो पेज विज्ञापन रूप में समाचार छापने लगे। हद तो तब हो गई कि इधर पांच चरणों में चुनाव की घोषणा हुई। विज्ञापन के चक्कर में अखबारों/चैनलों ने हेमन्त सोरेन को एक तरह से आउट कर दिया। यत्र तत्र सर्वत्र सिर्फ और सिर्फ रघुवर ही दिखते थे। अखबारों/चैनलों ने स्वीकार कर लिया था कि इस बार भी रघुवर ही सत्ता में आयेंगे।

पर रांची में ही एक विद्रोही24 का संपादक था, जो ये मानने को तैयार ही नहीं था कि रघुवर दास फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे, वो जनता का मन-मस्तिष्क नाप चुका था, वो खुलकर बता रहा था। हेमन्त सत्ता में आ रहे हैं और हुआ भी वहीं। 23 दिसम्बर को चुनाव परिणाम आ गया। रघुवर की विदाई हो चुकी थी। कनफूंकवों का साम्राज्य धाराशायी हो चुका था, हेमन्त सोरेन सत्ता सत्ता संभाल चुके थे।

यानी हेमन्त सोरेन उस वक्त सत्ता संभाल रहे थे, जब राज्य की अर्थव्यवस्था को चूना लगा दिया गया था। बड़े-बड़े अधिकारियों व पूंजीपतियों को लाभ दिलाने के लिए रघुवर सरकार ने ऐसी-ऐसी योजनाएं लागू की थी, जो हास्यास्पद थी, जैसे एक रुपये में जमीन की रजिस्ट्री महिलाओं के नाम पर कराइये। इस योजना का सर्वाधिक फायदा सत्ता में बैठे मठाधीशों व आईएएस-आईपीएस अधिकारियों ने लिया और अपनी पत्नी के नाम पर करोड़ों-अरबों की जमीन मुफ्त में अपनी पत्नी के नाम पर करवाना शुरु कर दिया।

जिसे हेमन्त सोरेन ने सत्ता में आते ही रद्द किया, जिससे लोगों को लगा कि यह सरकार राज्यहित में कुछ बेहतर करेगी, जो विश्वास की धुरी बनी। जब 2020 में पहली बार बजट सत्र का हेमन्त सोरेन ने सामना किया, तब उन्होंने इसी दौरान राज्य की खास्ताहाल पर एक श्वेत पत्र भी जारी किया, जो बताने के लिए काफी था कि राज्य किस हालात में हैं?

इसी दरम्यान बजट सत्र चल रहा था और पूरे देश में कोरोना अपना जाल फैलाता जा रहा था, ऐसे में झारखण्ड कैसे बचता? इस अचानक आई विपदा ने हेमन्त सोरेन सरकार के हाथ-पांव फूला दिये। एक ओर राज्य की गरीब जनता को कोरोना से बचाना था तो दूसरी ओर जिन राज्यों में झारखण्ड की जनता रहती थी, जिसे देखनेवाला कोई नहीं था, उसे बचाने की प्राथमिकता हेमन्त सोरेन सरकार पर थी।

आश्चर्य होगा कि ऐसी सरकार जिसकी आर्थिक स्थिति पहले से खस्ताहाल थी, बड़ी ही गंभीरता से इस कोरोना लहर का सामना किया। हर पुलिस थाना एक प्रकार से धर्मशाला बन गया। पुलिस थानों पर गरीबों, वंचितों व सड़कों पर जीवन यापन करनेवालों के खाने-पीने का प्रबंध किया जाने लगा। कुछ उदार लोगों ने भी पुलिस थानों की इस मानवीय सहायता के लिए आगे आये। पहली बार हवाई जहाज से उन झारखण्डियों को झारखण्ड लाया गया जो विपरीत परिस्थितियों में भारत-चीन की सीमा पर जीवन व्यतीत कर रहे थे।

हेमन्त सरकार ने पहली बार तेलगांना से झारखण्ड के लिए सीधी ट्रेन सेवा शुरु करवा दी। हजारों लोग अपने परिवार से इस दौरान मिले। यहीं नहीं इनके लिए रोजगारी की व्यवस्था भी कराई। 2021 में कोरोना की दुसरी लहर ने तो गजब ढा दिया। फिर भी इस सरकार ने धैर्य नहीं खोया। फिर से कोरोना रोगियों को बेहतर सेवा मिले, इसके लिए प्रयास किया। 

जब 2022 का साल आया, तब तक इस सरकार के बेहतर दो साल निकल चुके थे, जो कुछ कर सकती थी, उसे कोरोना ने करने नहीं दिया और जब 2023 आया तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रवर्तन निदेशालय व अन्य एंजेंसियों ने हेमन्त सरकार पर ऐसी ब्रेक लगाई कि वो ब्रेक आज भी अपना असर दिखा रही है। फिर भी कही सरकार चली न जाये, इसे ध्यान में रखते हुए, जितनी जल्दी-जल्दी इस हेमन्त सरकार ने निर्णय लिये, वो हेमन्त सरकार के लिए लैंडमार्क सिद्ध हो गये। जैसे 1932 का खतियान, नियोजन नीति, आरक्षण, सरना धर्म पर लिये गये निर्णय हेमन्त सोरेन के लिए काफी महत्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं जो जनता की नजरों में उन्हें हीरो बना दिया है।

ये अलग बात है कि जो निर्णय उन्होंने लिये हैं, उनमें से कुछ निर्णय न्यायालय के भेंट चढ़ गये और कुछ निर्णय ऐसे है कि जब तक केन्द्र सरकार की कृपा नहीं हो, उससे जनता को कोई फायदा नहीं होगा, पर जनता को लगता है कि हेमन्त के हाथ में जितना काम था, उन्होंने कर दिया। अब तो गेंद केन्द्र के पाले में हैं, ऐसे में हेमन्त सरकार कर ही क्या सकती है? इसी प्रकार न्यू पेंशन स्कीम से तंग राज्य सरकार के लाखों कर्मचारियों को पुनः ओल्ड पेंशन स्कीम में ला देने से राज्य सरकार के लाखों कर्मचारियों में भी उनकी पैठ बनी हैं। सर्वजन पेंशन योजना में सभी की भागीदारी सुनिश्चित कर दिये जाने से भी जनता के बीच उनका विश्वास बढ़ा है।

इसके पूर्व दुमका, मधुपुर, मांडर आदि विधानसभा के उप चुनावों में मिली सत्तापक्ष को सफलता भी ये बताने के लिए काफी है कि जनता पर अभी भी हेमन्त सोरेन की अच्छी पकड़ हैं। इधर रामगढ़ में भी विधानसभा उपचुनाव होने हैं और वहां जब भी चुनाव होंगे, सत्तापक्ष को ही सफलता मिलेगी, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं हैं। ऐसे भी वर्तमान में भाजपा में बाबू लाल मरांडी को छोड़कर ऐसे एक भी नेता नहीं जो चुनाव तो दूर, अपने लिए एक भीड़ भी जुटा सकें।

ऐसे में ले-देकर भाजपा को पीएम नरेन्द्र मोदी पर ही आसरा रखना होगा, लेकिन झामुमो ने तो ऐसे-ऐसे गिफ्ट दे दिये हैं झारखण्डियों को, कि चाहकर भी भाजपा-आजसू हेमन्त सरकार को उखाड़ नहीं सकती, क्योंकि इन तीन सालों में कोरोना की विकट परिस्थितियों के बावजूद भी हेमन्त सरकार ने झारखण्डियों में आशा का संचार तो जरुर कर दिया है कि जब तक वो सरकार में हैं, उन्हें चिन्ता करने की जरुरत नहीं।

अंततः आनेवाले समय में हेमन्त सोरेन को भी फूंक-फूंक कर कदम रखने होंगे, क्योंकि संविधान से उपर कोई नहीं हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने जिस प्रकार उन पर आरोप लगाये हैं, झारखण्ड उच्च न्यायालय ने उनकी सरकार पर जिस प्रकार से टिप्पणी की है, यह मत भूलें कि उनकी मजबूती को 2022 ने सेंध लगा दी है। उन्हें हर हाल में पंकज मिश्रा, अभिषेक कुमार पिंटू, प्रेम प्रकाश, अमित अग्रवाल जैसे लोगों से दूरियां बनानी होगी, इनका लगाम कसना होगा। हालांकि इनसे दूरियां बनाने/लगाम कसने से भी फायदा मिलेगा या भी नहीं, इसका उत्तर भविष्य के गर्भ में हैं।

पर ये भी सच्चाई है कि इसी दरम्यान हेमन्त सोरेन ने कुछ ऐसे भी कमाल दिखाये है कि भाजपा के कई नेता भी उनकी प्रशंसा करने से नहीं चूकते, पर ये बातें तो हम सार्वजनिक नहीं कर सकते, कभी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन हमसे मिलेंगे तो जरुर कह देंगे कि आप जनता ही नहीं बल्कि भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं में दो कारणों से बहुत ही लोकप्रिय हैं, वो इसलिए कि भाजपा के कुछ बहुत बड़े-बड़े शीर्षस्थ नेता (बाबूलाल मरांडी को छोड़कर) झारखण्ड के दो भ्रष्टाचारियों को बचाने में ज्यादा दिमाग लगाते थे, इनकी पैरवी केन्द्रीय मंत्रियों तक करते थे, हेमन्त सोरेन ने उनकी सारी हेकड़ी निकाल दी और उन्हें जेल में ढुका कर ही दम लिया। इससे झारखण्ड को जितना फायदा पहुंचा है, उतना फायदा आज तक नहीं पहुंचा। शायद यही कारण है कि भाजपा के नेताओं को छोड़िये जनाब, राज्य की जनता की मानें तो वो साफ कहती है कि चाहे हेमन्त जैसा हो, पर उसे तो हेमन्त ही पसन्द है।