धर्म

धनवन्तरि जयन्ती पर विशेषः रांची में स्थित है झारखण्ड का एकमात्र धनवन्तरि मंदिर, जो आयुर्वेद में विश्वास रखनेवालों का है आस्था का सबसे बड़ा केन्द्र

कल धनवन्तरि जयन्ती है। धनवन्तरि आयुर्वेद के प्रवर्तक है। शास्त्रों में उल्लिखित है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी के दिन इनका प्रार्दुभाव हुआ था। जो आयुर्वेद में विश्वास रखनेवाले लोग हैं। उनके लिए आज का दिन काफी अहम् होता है। सभी इस दिन को अपने-अपने ढंग से हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं।

झारखण्ड की राजधानी रांची में भी एक धनवन्तरि मंदिर है। जो आयुर्वेद के प्रति समर्पित रहनेवालों के लिए श्रद्धा का केन्द्र है। संभवतः झारखण्ड का यह एकमात्र धनवन्तरि मंदिर है। यह मंदिर रांची जंक्शन से करीब 11 किलोमीटर दूर एमडीएलएम हॉस्पिटल में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण शाकद्वीपीय समाज के अतिप्रतिष्ठित विद्वान व बाल्यकाल से ही आयुर्वेद के प्रति समर्पित रहनेवाले पं. हरिहर प्रसाद पांडेय ने किया है।

हरिहर प्रसाद पांडेय विद्रोही24 को बताते है कि वे बचपन से ही देखा करते थे कि उनके पिताजी वैद्य पं. लक्ष्मण पांडेय बड़ी श्रद्धा के साथ आयुर्वेद प्रवर्तक धनवन्तरि जी की जयन्ती मनाया करते थे। जब वे बड़े हुए तो उनकी बड़ी इच्छा थी कि वे धनवन्तरि जी का मंदिर बनावें और उनकी यह मनोकामना जल्दी ही परिपूर्ण हो गई। जब उन्होंने बिना किसी के सहयोग लिये रांची में एक आयुर्वेदिक कॉलेज की स्थापना कर दी और वही धनवन्तरि जी की एक मंदिर बनाने की योजना बना दी।

पं. हरिहर प्रसाद पांडेय जी कहते है कि इसी बीच एक बार वे राजस्थान गये और वहीं पर एक मूर्तिकार को धनवन्तरि जी की प्रतिमा बनाने का आर्डर देकर रांची चले आये। इस प्रतिमा को बनवाने में एक लाख से भी अधिक की राशि लग गई। उस मूर्तिकार ने राजस्थान से रांची धनवन्तरि जी की प्रतिमा सकुशल पहुंचवा दी। उस प्रतिमा को रांची आया देखकर वे बहुत खुश हुए और फिर धर्मानुसार इनकी प्राण-प्रतिष्ठा करा दी।

पं. हरिहर प्रसाद पांडेय बताते है कि इसके पूर्व वे हरमू में सुलभ चिकित्सा केन्द्र चलाया करते थे। जहां वे हमेशा कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को अपने ईष्ट मित्रों के साथ धनवन्तरि जयंती मनाया करते थे। उन्हें इस प्रकार के आयोजन से बड़ा आनन्द मिलता है। आज भी वे दिल खोलकर सभी की सहायता करते हैं। रांची के देवीमंडप रोड में भगवान भास्कर के मंदिर निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका रही है।

पं. हरिहर प्रसाद पांडेय जी द्वारा बनाये गये इस मंदिर को फिलहाल उनके बड़े बेटे डा. अमिताभ कुमार पांडेय व उनकी बहू डा. अर्चना पाठक देख रही हैं और इस मंदिर में नियमित रुप से वे पूजा अर्चना दोनों मिलकर स्वयं करते हैं। चूंकि कल धनवन्तरि जयंती हैं तो यहां विशेष पूजा देखने को मिलेगा। आप भी अगर धनवन्तरि जी के प्रति प्रेम रखते हैं, तो उस मंदिर में जाकर अपनी श्रद्धा निवेदित कर सकते हैं।