गोपाष्टमी पर विशेषः अपने विंध्यवासिनी नगर में तो सिर्फ 70 वर्षीया चाची ने ही गोपाष्टमी का असली आनन्द उठाया
आज गोपाष्टमी है। गो-पालकों का दिन। गो-माताओं का दिन। कई गौशालाओं में आज विशेष कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं। गौ-प्रेमियों का दल गौशालाओं का रुख किया है, क्योंकि वे आज के दिन का महत्व जानते हैं, जिनको आज के दिन के महत्व से कुछ लेना-देना नहीं, वे आज भी प्रतिदिन की तरह जीवन बिताने में ज्यादा ध्यान दिये हैं, पर जिन गौ-माताओं ने जिन घरों से अपनी सेवा निरन्तर लेती रही हैं, उन घरों पर आज के दिन भी जाना नहीं छोड़ा और अपनी सेवा लेकर ही, उस घर से गई।
मैं जिस कालोनी मे रहता हूं। अपने इस कालोनी में दो गऊ माताएं हमेशा प्रतिदिन अपना दर्शन दे दिया करती हैं। कालोनी में रहनेवाले कुछ परिवार के सदस्य अपने घर के बचे हुए भोजन या जूठन उन गऊ माता के सामने रख देती हैं। इन गऊ माताओं को क्या पता कि उनके सामने जो रखा गया हैं, वो जूठन है या बचा हुआ खाना, वो ग्रहण कर लेती हैं, फिर चल देती हैं।
लेकिन इसी कालोनी में एक सत्तर वर्षीया महिला रहती हैं। जिनका अपना सम्मान हैं। जो उन्हें सम्मान देते हैं, वे उन्हें चाची कहकर पुकारते हैं। उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान उनकी दिव्यता को प्रदर्शित करती रहती हैं। हमेशा अपने घर पर एक छोटी सी कुर्सी में सुबह-शाम बैठकर सभी के हितों का ख्याल रखती है। चाची की विशेषता है कि वो हर पशु-पक्षियों का ख्याल रखती हैं, लेकिन उनके घर के सामने कोई भी गऊ पहुंच गई तो उन गऊओं का विशेष सम्मान होना तय है।
मैं बराबर देखा हूं कि उनके इन्हीं प्रेम के कारण दो गऊएं हमेशा उनके घर के आस-पास भटकती रहती है। मैंने यह भी देखा है कि एक निश्चित समय पर यहीं गऊ माताएं, उनके घर के मुख्य द्वार पर आकर खड़ी हो जाती हैं और बिना कुछ ग्रहण किये चाची के घर से लौटती ही नहीं और न चाची उन्हें जाने देती है।
चाची की खासियत हैं कि वे इन गऊओं को कभी जूठन नहीं खिलाती, वो विशेष ध्यान रखती है कि वो दोनों गऊएं एक निश्चित समय पर आयेंगी और रोटियां खाकर जायेंगी। इसलिए उनके घर पर गऊओं के लिए अलग रोटियां बनाकर रख दी जाती हैं, फिर चाची अपने पोते-पोतियों के संग उन गऊंओं को रोटियां खिलाना नहीं भूलती और अगर पोते-पोतियां नहीं रही तो वो स्वयं ही गऊओं को रोटी खिलाकर, उन्हें प्रणाम करना नहीं भूलती।
आज चूंकि गोपाष्टमी थी। मैं देखना चाह रहा था कि गोपाष्टमी के दिन वो दोनों गऊएं आती हैं या नहीं। देखा कि वो सुबह से ही चाची के घर के ठीक सामने बैठी हुई दिखाई दी। एक ने कुछ केले के छिलके दिये, पर वो केले के छिलके की ओर देखी ही नहीं। पर जैसे ही चाची ने रोटियां लेकर उसके स्वागत की ओर बढ़ी वो लपकी और रोटियां खाने लगी। आश्चर्य यह है कि दोनों गऊएं दूर से ही चाची को पहचान लेती हैं और बड़ी प्रसन्नता से उनकी ओर देखती है।
मैंने कई लोगों को देखा है कि वो व्रत रखते हैं। उपवास करते हैं। पर जो उपवास और व्रत का फल, उपवास करनेवालों को मिलना चाहिए, आखिर क्यों नहीं मिलता? उसका कारण है कि उपवास और व्रत करनेवालों के हृदय में वो प्रेम नहीं होता, जो किसी भी व्रत-उपवास के लिए परमावश्यक है। परमहंस योगानन्द जी भी कहते है कि केवल प्रेम ही उनका स्थान ले सकता है। शायद वहीं प्रेम उन गऊओं का चाची के प्रति और चाची का गऊओं के प्रति दिखता हैं, और सही मायनों में कोई हमसे पूछे कि अपने कालोनी में गोपाष्टमी किसने मनाया? तो मैं तो यही कहुंगा कि चाची ने ही मनाया।