18 सितम्बर को हरितालिका तीज व्रत पर विशेषः आखिर क्यों करती हैं महिलाएं हरितालिका तीज व्रत, क्या है इसकी विशेषताएं?
इस बार हरितालिका तीज व्रत अंग्रेजी तिथि के अनुसार 18 सितम्बर को है। यह व्रत हर वर्ष हिन्दी महीना भाद्रपद (भादो) शुक्लपक्ष तृतीया तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों में उल्लिखित है कि भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए पार्वती ने इसी दिन बालुकामयी शिव की प्रतिमा बनाकर शिव की विशेष आराधना की थी। जब वो आराधना कर रही थी, उस वक्त हस्तनक्षत्र युक्त शुक्ल तृतीया तिथि थी। उसी दिन से यह दिन ब्रह्म भाव को प्राप्त हो गया और हर वर्ष भादो के महीने में जब भी हस्तनक्षत्र युक्त शुक्ल तृतीया तिथि आने लगी। महिलाएं व्रत करने लगी।
बताया जाता है कि पार्वती ने स्वयं इस व्रत को किया था, पर वो कालांतराल में स्वयं भूल गई और जब विशेष परिस्थितियों में पार्वती ने शिव से यह पूछा कि वो उन्हें कैसे प्राप्त की? तब शिव ने आश्चर्यचकित होकर वो सारी बातें बताई, जिसको लेकर पार्वती ने यह विशेष व्रत किया था। शिव बताते हैं कि इस व्रत का नाम इसलिए हरितालिका पड़ा, क्योंकि पार्वती की सहेलियां, पार्वती को अपनी बातों में हरकर जंगलों में ले गई थी, जहां पार्वती के बारे में पार्वती के पिता हिमवान् को पता ही नहीं चले।
कहानी यह है कि एक बार जब पार्वती का जन्म हिमवान के घर हुआ। तब पार्वती के लिए योग्य वर कैसे प्राप्त हो, उसकी चिन्ता हिमवान को सताने लगी। इसी दौरान उनकी नारद जी से भेंट हुई। नारद जी ने हिमवान को अपनी पुत्री पार्वती का विवाह विष्णु से करने की सलाह दी। हिमवान भगवान विष्णु जैसा योग्य वर देख तुरन्त स्वीकृति भी प्रदान कर दी और यह बात पार्वती को बता दिया। पार्वती तो बचपन से ही शिव को अपना वर चुन चुकी थी, पार्वती ने यह बात जब अपनी सहेलियों को बताया तो सहेलियों ने पार्वती को अपने संग ले लिया और उस जंगल को चली गई। जहां एक नदी बह रही थी।
पार्वती प्रतिदिन नदी के किनारे का बालू लेती, उससे शिव की प्रतिमा बनाती और फिर उसे जल में प्रवाहित कर देती। इसी बीच जब भादो का महीना आया, शुक्लतृतीया तिथि आई, हस्तनक्षत्र बीत रहा था, पार्वती ने फिर शिव की बालुकामयी प्रतिमा बनाकर उनकी विशेष पूजा अर्चना की। रात भर गीत-वाद्यादि यंत्रों से शिव को प्रसन्न करने में समय व्यतीत किया। जिससे शिव प्रसन्न हुए और वहां पहुंचे। जहां पार्वती पूजा अर्चना कर रही थी। शिव ने पार्वती से वर मांगने को कहा। पार्वती शिव से शिव को ही मांग ली। इस प्रकार पार्वती शिव की अर्द्धांगिनी बनी।
शिव कहते हैं कि जो भी स्त्रियां अपना मंगल चाहती हैं। सौभाग्य की रक्षा करना चाहती हैं। वो इस व्रत को अवश्य करें, क्योंकि ये पहली बार महाशक्ति के द्वारा किया गया व्रत हैं। ऐसे तो पार्वती ने इस व्रत को विवाह के पूर्व किया था। इसलिए कई स्थानों/जगहों पर अविवाहित महिलाएं या लड़कियां भी इस विशेष व्रत को शिव के समान पति प्राप्त करने के उद्देश्य से यह व्रत करती हैं।
इस व्रत को अपने सहेलियों व आस-पास के महिलाओं के साथ मिलकर रात्रि में शिव-पार्वती दोनों का विशेष पूजा अर्चन करना चाहिए। जो भी मौसमी फल मिले या घर में पकवान बनाकर भगवान शिव और पार्वती को अर्पण करें। दूसरे दिन भी प्रातः काल में इसी प्रकार पूजा अर्चन कर, ब्राह्मणों को दक्षिणा प्रदान कर, पारण कर इस व्रत को संपन्न करना चाहिए। यह व्रत खासकर मध्य बिहार, दक्षिण बिहार, झारखण्ड व बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के इलाकों में खुब होता है। आजकल तो विदेशों व भारत के अन्य राज्यों में जो बिहार की महिलाएं व लड़कियां वास कर रही हैं, वो भी इस व्रत को छोड़ी नहीं हैं, कर ही रही हैं।