महासमाधि दिवस पर विशेषः दो महान विभूतियां परमहंस योगानन्द व युक्तेश्वर गिरि, जिन्होंने क्रिया योग को जन-जन तक पहुंचा दिया
परमहंस योगानन्द जी का महासमाधि दिवस 7 मार्च को है, जबकि उनके गुरु युक्तेश्वर गिरि जी का महासमाधि दिवस 9 मार्च को है। मतलब दोनों महापुरुषों के महासमाधि दिवसों में बस दो दिनों का ही अन्तर है। परमहंस योगानन्द जी और उनके गुरु युक्तेश्वर गिरि जी के महासमाधि दिवस, किसी भी योगदा से जुड़े सत्संगियों के लिए कोई सामान्य दिन नहीं होते, बल्कि ये दो दिन उनके जीवन में खास महत्व रखते हैं, क्योंकि उन्हें अपने महान गुरुओं के जीवन के अंतिम क्षणों से भी एक सीख मिलती है कि जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए।
मैं बार-बार सोचता हूं, कल्पना करता हूं कि अगर सभी लोगों के जीवन में युक्तेश्वर गिरि जैसे गुरु का प्रार्दुभाव हो जाये और सारे संसार के लोग परमहंस योगानन्द की तरह शिष्य के रुप में परिवर्तित हो जाये, तो यह विश्व कैसा होगा? कभी कल्पना आपने की है। अगर नहीं तो कल्पना कीजिये। इस कल्पना में भी बड़ा आनन्द प्राप्त होगा।
परमहंस योगानन्द जी के गुरु युक्तेश्वर जी को तो इसका आभास पूर्व में ही हो चुका था कि उनके शरीर त्याग करने का समय नजदीक आ चुका है। परमहंस योगानन्द जी ने स्वलिखित पुस्तक योगी कथामृत में स्वयं लिखा है कि जीवन के अंतिम दिनों में युक्तेश्वर गिरि जी ने उन्हें संन्यास की उच्चतर पदवी परमहंस प्रदान की थी। युक्तेश्वर गिरि जी ने उनसे यह भी कहा था कि इस संसार में उनका कार्य पूरा हो चुका है, अब इसे आगे उन्हें (परमहंस योगानन्द) को चलाना है।
इस दौरान उन्होंने परमहंस योगानन्द जी को आशीर्वाद यह कहकर प्रदान किया था कि “मैं सब कुछ तुम्हारे हाथों में सौंप रहा हूं। तुम अपने जीवन की नौका को तथा संगठन की नौका को ईश्वर के किनारे पर सफलतापूर्वक पहुंचा सकोगे।” इसी बीच प्रयाग में कुम्भ का मेला लगा था। परमहंस योगानन्द जी प्रयाग जाना चाहते थे। वे प्रयाग गये भी, कुम्भ मेले का आनन्द भी लिया और जब वे प्रयाग से कोलकाता लौटे, तभी उन्हें 8 मार्च को पुरी आने का संदेश मिला। परमहंस योगानन्द जी समझ चुके थे कि आगे क्या होनेवाला है।
वे उसी दिन पुरी के लिए निकलना चाहते थे। तभी उनके अंतर में एक दिव्य वाणी सुनाई दी कि – आज रात पुरी मत जाओ, तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार नहीं होगी। दूसरे दिन शाम को ट्रेन से कोलकाता से पुरी के लिए प्रस्थान किये। दिनांक 9 मार्च, करीब शाम के सात बज रहे थे। परमहंस योगानन्द जी बताते है कि उनके गुरु युक्तेश्वर गिरि, उनके अंतर्दृष्टि के सामने गंभीर मुद्रा में बैठे प्रकट हो गये।
उनके दोनों ओर प्रकाश का एक-एक पिण्ड था। परमहंस योगानन्द जी के शब्दों में, उन्होंने अनुनय विनय करते हुए अपने हाथ उपर उठा लिये। उन्होंने सिर हिलाया और धीरे-धीरे अदृश्य हो गये। मतलब युक्तेश्वर गिरि अपने नश्वर शरीर को त्याग चुके थे और इसका एहसास अपने परम शिष्य परमहंस योगानन्दजी को करा चुके थे।
परमहंस योगानन्द जी के अनुसार, युक्तेश्वर गिरि जी के महासमाधि लेने के बाद, उनकी दुसरी मुलाकात युक्तेश्वर गिरि जी से मुंबई के होटल में हुई थी। वे अपने गुरुदेव को देखकर आनन्दातिरेक में बह चले थे। उन्होंने अपनी भावनाओं को अपने गुरु के प्रति प्रकट किया था। युक्तेश्वर गिरि जी अपने शिष्य परमहंस योगानन्द की सारी प्रश्नों का प्रत्युत्तर देने के बाद अन्तर्ध्यान हो चुके थे।
युक्तेश्वर गिरि द्वारा बताये मार्ग पर चलते हुए परमहंस योगानन्द जी ने उनसे प्राप्त क्रिया योग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए महती तपस्या की। यह तपस्या का ही तो परिणाम है कि पूर्व से पश्चिम तक क्रिया योग की गंगा अविरल बहती जा रही है और लोग उसमें डूबकी लगाकर स्वयं को दिव्य प्रेम से अभिभूत कर आध्यात्मिकता को गले लगा ईश्वर को प्राप्त करने में जुटे हैं।
परमहंस योगानन्द जी की महासमाधि को लेकर लोग बताते हैं कि वे जब तक जीवित रहे, उन्होंने ईश्वर प्राप्ति के लिए नई तकनीक-नई प्रविधियों को अपनाने पर बल दिया। वे जब तक जीवित रहे योगी रहे और मृत्यु को वरण करने के बाद भी स्वयं को योगी ही प्रदर्शित किया। जब वे 7 मार्च 1952 को भारतीय राजदूत विनय रंजन सेन के सम्मान में आयोजित भोज पर अपना भाषण समाप्त किये। तभी उन्होंने महासमाधि ले ली।
आम तौर पर देखा जाता है कि मरणोपरांत शरीर में विकृतियां होना सामान्य सी बात है, पर परमहंस योगानन्द जी का शरीर तो मृत्यु के वरण करने के 20 दिनों बाद भी उसी तरह दिख रहा था, जैसा कि 7 मार्च 1952 को था। यह आश्चर्य नहीं तो और क्या था? मतलब विकाररहित, विक्रियात्मक दुर्गंध तक आस-पास नहीं फटक सकी।
7 मार्च और 9 मार्च के दिन हम सभी इन महान आत्माओं को अपनी भावांजलि, पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। जिन्होंने हमें क्रिया योग की गंगा से हमें तृप्त किया है। परमहंस योगानन्द जी को हम इसके लिए भी विशेष रुप से स्मरण करेंगे कि उन्होंने हमें नई वैज्ञानिक प्रविधियों को हमारे समक्ष रखा, जिससे हम और सरलता व सहजता के साथ क्रिया योग को अपनाकर अपने जीवन को बेहतर बनाने में सफल होते जा रहे हैं और ईश्वर की अनुभूतियों का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं।