अपनी बात

महावतार बाबाजी स्मृति दिवस पर विशेषः जब बाबा जी ने अपने लाहिड़ी महाशय के लिए देखते ही देखते बना दिया सोने का अद्वितीय महल

परमहंस योगानन्द जी ने अपने गुरु स्वामी युक्तेश्वर गिरि व संस्कृत शिक्षक स्वामी केवलानन्द जी से एक बाकया सुना था, जो लाहिड़ी महाशय और महावतार बाबाजी से जुड़ा था। एक बार जब लाहिड़ी महाशय दानापुर में मिलिटरी इंजनियरिंग विभाग में एकाउन्टेट के पद पर कार्यरत थे। तभी उनका स्थानान्तरण रानीखेत कर दिया गया।

फिर क्या था? लाहिड़ी महाशय रानीखेत के लिए चल दिये। ये वक्त था 1861 और ऋतु था – शरद। चूंकि रानीखेत में उनके लिए कुछ करने को था नहीं। इसलिए वे ज्यादा समय रानीखेत के पर्वतों को समझने में बिताने लगे। एक दिन जब वे द्रोणगिरि पर्वत पर चढ़ रहे थे, तभी उन्हें लगा कि पर्वत की शिखर से कोई उन्हें पुकार रहा है।

अचानक सामने देखा कि एक युवक उनके सामने खड़ा था। वह युवक और कोई नहीं था। वे महावतार बाबा जी ही थे। मैं फिर कह रहा हू कि महावतार बाबाजी को जब भी किसी ने देखा तो उनकी शारीरिक अवस्था 25 से अधिक किसी को नहीं दिखी। महावतार बाबाजी, लाहिड़ी महाशय को एक पर्वत की गुफा में ले गये और वे सारे संसाधन दिखाये, जब लाहिड़ी महाशय, गंगाधर के नाम से जाने जाते थे।

यानी लाहिड़ी महाशय का पुनर्जन्म हो चुका था। लेकिन लाहिड़ी महाशय को अपने पूर्व जन्म का कोई भी वाकया कुछ भी याद नहीं था। अचानक जब महावतार बाबाजी ने उनके मस्तक पर हाथ फेरा। लाहिड़ी महाशय को पूर्वजन्म की सारी बाते याद आ गई और फिर वे महावतार बाबाजी के चरणों में लिपट गये। बाद में लाहिड़ी महाशय को इस बात का ऐहसास भी हुआ कि रानीखेत में जो उनका आगमन हुआ हैं, वो इसलिए ही हुआ था, ये सब महावतार बाबाजी की कृपा थी, अपने शिष्य से मिलने का।

तभी महावतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय के मन में जो एक बात रह-रहकर घुमड़ती थी, सोने के महल को देखने का। उस सोने के महल को भी महावतार बाबाजी ने अपने योग बल से रातोंरात तैयार कर दिया। दरअसल महावतार बाबाजी के लिए ऐसा कुछ भी कर पाना कोई बड़ी बात नहीं थी, इसलिए उन्होंने लाहिड़ी महाशय के मनोनुकूल एक सोने का महल की रचना कर डाली, जिसमें लाहिड़ी महाशय ने जमकर आनन्द लिया।

बताया जाता है कि मनुष्य की जब भी कोई इच्छाएं होती हैं, ईश्वर उसे पूरा अवश्य करते हैं, बिना उन इच्छाओं की पूर्ति के उसे मोक्ष प्रदान नहीं करते। ये इच्छाएं ही जन्म-मरण को जन्म देती है, इसलिए जो आध्यात्मिक या तेजस्वी पुरुष होते हैं, वे योग के द्वारा इच्छाओं पर काबू पाते हैं, ताकि इस जीवन-मृत्यु से परे होकर भगवान में निहित हो जाये।

पर ये सभी के लिए इतना सुलभ नहीं हैं, पर जब आप योगदा सत्संग आश्रम या सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप से जुड़ते हैं तो आशाएं बनती है, विश्वास बढ़ता है कि ऐसा संभव है, लेकिन ये संभव को संभव बनाने के लिए भी आपको स्वयं प्रयास करना होगा, क्योंकि मैंने तो महसूस किया है कि लोगों के पास अमृत पड़ा होता हैं।

पर सामनेवालों को पता ही नहीं कि जो सामने हैं, वो अमृत हैं, जिसका पान करने से उसका जीवन ही बदल जायेगा, ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं रांची में रहता हूं। रांची में ही योगदा सत्संग मठ हैं, पर यहां कितने लोग हैं, जो इससे जुड़कर स्वयं को धन्य करने की कोशिश कर रहे हैं, ज्यादातर लोग तो बाहर से ही आकर इस अमृत की एक –एक बूंद का पान कर स्वयं को धन्य कर रहे हैं।