परमहंस योगानन्द जी के जन्मदिवस पर विशेषः पूरब और पश्चिम को क्रियायोग की डोर से बांधनेवाले एकमात्र ऋषि
जब-जब पूरब और पश्चिम को आध्यात्मिकता की डोर से बांधने की बात होगी, तब-तब हमारे प्रेमावतार श्री श्री परमहंस योगानन्द का नाम शिखर पर होगा। परमहंस योगानन्द जी ही एकमात्र ऋषि हुए, जिन्होंने क्रिया योग को जन-जन तक पहुंचा दिया, जिसके माध्यम से आज एक सामान्य व्यक्ति भी उस परम सत्य को पाकर अपने जीवन को धन्य कर सकता है। पांच जनवरी परमहंस योगानन्द जी का जन्मदिन है। इसी दिन यानी पांच जनवरी 1893 को उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में हुआ था।
परमहंस योगानन्द के गुरु श्रीयुक्तेश्वर गिरी जी ने तो बहुत पहले ही इनके बारे में भविष्यवाणी कर दी थी कि परमहंस योगानन्द का जीवन भारत की प्राचीन क्रिया योग ध्यान प्रविधि का संपूर्ण विश्व में प्रचार करने के लिए विशेष रुप से समर्पित होगा और इस कथन को परमहंस योगानन्द जी ने पूर्णतः सत्य करके दिखा दिया।
परमहंस योगानन्द ने जब 1920 में अमेरिका के बोस्टन शहर में धार्मिक उदारवादियों के अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि के रुप में हिस्सा लिया, तो वे बोस्टन जाने के पूर्व झारखण्ड के रांची में ही अपना समय व्यतीत कर रहे थे, परमहंस योगानन्द जी को रांची में रहने के दौरान ही पूर्व में आभास हो गया था कि उन्हें अमेरिका से बुलाहट हो रही है, जिसका जिक्र उन्होंने एक छोटे से बच्चे विमल से किया था और विमल ने इस बात का जिक्र आश्रम में रह रहे सभी लोगों से कर दिया था।
परमहंस योगानन्द जी को यह भी आभास हो गया था कि उनका ज्यादा समय अब पश्चिम में ही बीतेगा, इसलिए उन्होंने आश्रम के शिक्षकों को जाने के पूर्व कहा था कि वे लाहिड़ी महाशय के बताए शिक्षा-आदर्शों का अक्षरशः पालन करें, वे पत्राचार द्वारा इस आश्रम से संबंध बनाये रखेंगे। परमहंस योगानन्द जी ने अपनी आत्मकथा में साफ लिखा है कि रांची से जैसे ही वे कोलकाता पहुंचे, उन्हें धार्मिक उदारवादियों के अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन में आने का निमंत्रण पत्र मिल गया।
जिसकी सूचना उन्होंने अपने गुरुदेव श्रीयुक्तेश्वर गिरी को दी। जब वे अपने गुरु युक्तेश्वर गिरी को इसकी सूचना दे रहे थे, तब उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें सार्वजनिक व्याख्यान देने का अनुभव नहीं हैं और अंग्रेजी में तो कभी कुछ कहा ही नहीं। जिस पर युक्तेश्वर गिरी जी ने कहा था कि परमहंस योगानन्द अंग्रेजी में बोले या और किसी भाषा में, योग पर केन्द्रित उनका व्याख्यान मनोयोग से सुना जायेगा और लीजिये हुआ भी यही।
ईश्वर साक्षात्कार की वैज्ञानिक प्रणाली क्रिया योग की पहली नींव एक तरह से वहीं पड़ गई, जब उन्होंने अपना व्याख्यान देना उस सम्मेलन में शुरु किया, फिर क्या था अमेरिका के विभिन्न संस्थानों से उन्हें निमंत्रण मिलने लगे, व्याख्यान देने को। परमहंस योगानन्द ने उन व्याख्यानों से अमेरिकियों के हृदय में अमिट जगह बना ली।
इसी दौरान परमहंस योगानन्द जी ने अपनी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया/सेल्फ-रियलाइजेशन फैलोशिप की स्थापना की। अपने लेखों व व्याख्यानों से वे यूरोप-अमेरिका आदि देशों में क्रिया योग का अलख जगाते रहे। इसी बीच उनसे जो भी मिले, सभी को उन्होंने योग के प्राचीन विज्ञान एवं दर्शन तथा उसकी सर्वानुकूल ध्यान पद्धतियों से परिचय करवाया।
आज भी भारत व अमेरिका के विभिन्न शहरों में फैले उनके ध्यान केन्द्र, आश्रम/मठ लोगों को सत्यान्वेषण की ओर प्रेरित कर रहे हैं। इनके ध्यान केन्द्रों में रह रहे संन्यासियों का समूह आज भी क्रिया योग के माध्यम से परमहंस योगानन्द जी द्वारा बताये गये मार्ग पर चलते हुए समाज का भला कर रहे हैं। इस कोरोनाकाल में भी जिस प्रकार से परमहंस योगानन्द के अनुयायी कोरोना पीड़ितों की मदद की हैं, उसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम हैं। आज जबकि परमहंस योगानन्द जी का जन्मदिन है, आइये संकल्प करें कि हम परमहंस योगानन्द जी द्वारा बताये क्रिया योग को अपनाकर अपने जीवन को धन्य करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।
जय गुरु! गुरुजी के जन्मोत्सव पर हार्दिक शुभ कामनायें। धन्य भाग हमारे जो हमने सद्गुरु पाए!