झारखण्ड पर “मॉब लिंचिंग” का ऐसा दाग लगा है कि इसे विज्ञापन क्या, PM मोदी भी नहीं धो सकते
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी, कोई भी नेता, चाहे वह कितना भी प्रयास क्यों न कर लें, वह किसी भी राज्य या देश का अपमान नहीं कर सकता, पर जब अपने राज्य में छेद ही छेद हो, विधि व्यवस्था ठप हो, जब राज्य का एक बड़ा पुलिस अधिकारी सेवा के दौरान अपनी पत्नी के नाम पर सरकारी जमीन पर कब्जा जमाने में ज्यादा दिमाग लगाता हो, जब आपके ही मंत्रिमंडल में शामिल एक मंत्री मॉब लिंचिंग में शामिल अपराधियों को माला पहनाकर स्वागत करता हो, तब कोई दाग लगाये अथवा नहीं लगाये, दाग लग ही जाता है।
ये अलग बात है कि आप जब तक प्रधानमंत्री रहेंगे, आपको झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के रुप में आपको भक्त ही नजर आयेगा, असाधारण इन्सान ही नजर आयेगा, पर सच्चाई यही है कि देश तो दूर, राज्य का प्रत्येक संभ्रांत व्यक्ति झारखण्ड में इन दिनों हो रही मॉब लिंचिंग से काफी दुखी है, अगर राज्य सभा में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने यह कहा कि झारखण्ड मॉब लिंचिंग का फैक्ट्री बन चुका है, तो इसे आप गलत भी नहीं ठहरा सकते, किसी भी राज्य में मॉब लिंचिंग की इतनी घटनाएं नहीं हुई, जितनी झारखण्ड में हुई है, जिस कारण इस राज्य मे रहनेवाला प्रत्येक संभ्रांत व्यक्ति अंदर से दुखी है, भले ही आपको या भाजपा के नेताओं को इसका ऐहसास न हो।
झारखण्ड में अब तक जितने भी मॉब लिंचिंग हुए हैं, उसमें केवल मुसलमान ही नहीं मरे, बल्कि इसमें बड़ी संख्या में हिन्दू भी मारे गये हैं, ऐसे कई उदाहरण झारखण्ड में है, जहां मॉब लिंचिंग हुई, वहां केवल मुसलमान देखकर ही मॉब लिंचिंग नहीं हुई, बहुत सारे जगहों पर दलित, ईसाई और हिन्दू भी मारे गये, इसलिए मॉब लिंचिंग को केवल अल्पसंख्यकों के चश्मे से देखना भी बेमानी होगी, हां ये सही है कि इस मॉब लिंचिंग में सर्वाधिक शिकार मुस्लिम हुए, जिन पर ज्यादातर चोरी के आरोप लगे तथा प्रतिबंधित मांस ले जाने के आरोप लगे। जानकार बताते है कि अब तक झारखण्ड में मॉब लिंचिंग की 18 घटनाएं हुई, जिनमें चार हिन्दू, 11 मुस्लिम, दो ईसाई आदिवासी और एक दलित समुदाय के लोग मारे गये हैं।
जो मॉब लिंचिंग की घटनाएं राज्य में सुर्खियां बनी, वो घटनाएं इस प्रकार है। 4 अप्रैल 2017 को चंद्रपुरा थाना के नर्रा गांव में बच्चा चोरी के आरोप में शमशुद्दीन अंसारी की पीट–पीट कर हत्या कर दी गई। जिस मामले में तेनुघाट अनुमंडल की निचली अदालत ने सभी दस आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुना दी।
18 मई 2017 को सरायकेला–खरसावां के राजनगर इलाके में बच्चा चोरी के आरोप में तीन–लोगों की पीट–पीटकर हत्या कर दी गई, उसी रात जमशेदपुर के बागबेड़ा थाना के नागाडीह गांव में बच्चा चोरी के आरोप में तीन युवकों की पीट–पीटकर हत्या कर दी गई, इस दौरान एक महिला की भी पिटाई कर दी गई, जिसकी बाद में मौत हो गई। जून 2018 में गोड्डा के बनकट्टी गांव में ग्रामीणों ने भैस की चोरी कर रहे पांच में से दो लोगों को पकड़ लिया तथा जमकर पिटाई कर दी, जिसमें पोड़ैयाहाट के तालझरी गावं निवासी मुर्तजा अंसारी और सिराबुद्दीन अंसारी की मौत हो गई।
29 जून 2017 को रामगढ़ के बाजारटाड़ में स्वघोषित गौरक्षकों द्वारा मांस के व्यापारी अलीमुद्दीन अंसारी की पीट–पीटकर हत्या कर दी गई, जिसमें 16 मार्च 2018 को झारखण्ड के फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 12 आरोपियों में से 11 को आजीवन कारावास की सजा सुना दी, एक आरोपी नाबालिग होने के कारण, उसका मामला जुवेनाइल बोर्ड को भेज दिया गया। इसी मामले में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जयन्त सिन्हा ने अभियुक्तों को माला पहनाकर स्वागत भी किया था, जो खबर चर्चा में रही, कि क्या एक केन्द्रीय मंत्री किसी अपराधिक घटना में शामिल अभियुक्तों को माला पहनाकर स्वागत कर सकता है।
पांच सितम्बर 2018 को मेदिनीनगर विश्रामपुर के दरुआ गांव में चार लोग लड़की देखने आये थे, पर गांव वाले उन्हें चोर समझ बैठे, जिसके बाद चारों की पिटाई कर दी गई। रिपोर्टस के मुताबिक, 24 वर्षीय बब्लू मुसहर को उस दौरान भीषण चोटें आई। इलाज के दौरान, उसे पास के अस्पताल ले जाया गया, जहां कुछ ही देर बाद उसने दम तोड़ दिया। यानी इस झारखण्ड में एक नहीं कई मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई, जो शर्मनाक है।
इन घटनाओं से भले ही भाजपा की सेहत पर कोई असर न पड़ा हो, उसके वोट बैंक पर कोई असर नहीं पड़ा हो, 14 में से लोकसभा की 12 सीटों पर वह पुनः कब्जा कर ली हो, पर राज्य की अमनपसंद जनता को बहुत ठेस पहुंचा हैं, क्योंकि झारखण्ड की पहचान अब मॉब लिंचिंग राज्य के रुप में हो रही है। सरायकेला-खरसावां में तबरेज की हत्या ने तो झारखण्ड की जड़ें ही खोद दी है, देश ही नहीं विदेश में भी इस घटना की कड़ी निन्दा की जा रही है, लोग मर्माहत हैं, और इसके लिए अगर कोई दोषी है तो वह राज्य की रघुवर सरकार हैं, उसका पुलिस विभाग हैं, जिसने इस पर रोक लगाने की कोई व्यवस्था ही नहीं की, भीड़ आती है, किसी की हत्या करके चली जाती है, और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती है, और इन्तजार करती है, पूरे मामले को ठंडा होने का। इसी बीच सभी लोग भूल जाते हैं, और फिर एक नई मॉब लिंचिंग की घटना शुरु और लोग फिर अपना माथा पीटना शुरु कर देते हैं।
राज्य में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटना बताती है कि राज्य की जनता का स्थानीय पुलिस पर विश्वास ही नहीं, उन्हें लगता है कि पुलिस के पास जायेंगे, समस्याएं बढ़ेंगी, इसलिए जो होगा देखा जायेगा, पहले खुद कानून को हाथ में ले लो और फैसले कर दो, यहीं मनोवृत्ति जो लोगों के बीच में बढ़ी है, मॉब लिंचिंग का कारण बनती जा रही है, आप पूरे राज्य में घुम जाइये, चाहे वह कोई संप्रदाय का व्यक्ति हो, चाहे वह निर्धन हो या धनवान हो, उसे राज्य की पुलिस पर भरोसा ही नहीं, सभी यही कहेंगे कि यहां की पुलिस निर्दोषों को कानूनी दांव-पेंच में फंसाने पर ज्यादा दिमाग लगाती है, और किसी बड़े अपराधिक घटनाओं पर पर्दा डालने में ज्यादा दिमाग लगाती है, इन नागरिकों के पास ऐसे कई उदाहरण है, जिसका जवाब न तो राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास के पास है और न ही यहां के पुलिस तंत्र के पास।
कमाल है, आज राज्य सरकार ने झारखण्ड के प्रमुख अखबारों में मॉब लिंचिंग से संबंधित एक विज्ञापन निकाली है। विज्ञापन गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा निकाला गया है। विभाग लिखता है – “मॉब लिंचिंग यानी भीड़ द्वारा हमले की कुछ घटनाएं घटी है। ये घटनाएं पूरी तरह से कानून विरोधी है और सभ्य समाज में ऐसी घटनाओं के लिए कोई जगह नहीं है। मॉब लिंचिंग दण्डनीय अपराध है। अगर भीड़ कानून अपने हाथ में लेगी तो कानून के तहत उन पर सख्त कार्रवाई जैसे अभियुक्तों की गिरफ्तारी, चल-अचल संपत्ति की कुर्की जब्ती एवं फास्ट ट्रैक-ट्रायल के जरिए अभियुक्तों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जायेगी।
जनता से अनुरोध है कि यदि आपको कही भी मॉब लिंचिंग की परिस्थिति बनती दिखे तो तुरन्त 100 नंबर पर फोन करें या अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन अथवा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करें। सूचना देनेवाले की पहचान गुप्त रखी जायेगी। कृपया किसी भी तरह की अफवाह को व्हाट्सएप्प तथा सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों से न फैलाएं। राज्य में वातावरण को और अच्छा बनाने का संकल्प लेना चाहिए। शांति और सद्भाव को बनाए रखना, सरकार के साथ-साथ सभी नागरिकों का भी दायित्व है। आप सभी भाइयों-बहनों से आग्रह है कि आप अपने आसपास, कार्यस्थल, गांव, कस्बे, और शहर में इस दायित्व को पूरी तरह से निभाएं।”
यानी जिन पर कानून का राज स्थापित करने का दायित्व है, वे कानून का राज स्थापित करने के लिए विज्ञापन का सहारा ले रहे हैं, वे जनता से सहयोग मांग रहे हैं, और यही जनता जब उन्हें सहयोग देगी तो ये उल्टे उन्हें कानून के पेंच में ऐसा फंसायेंगे कि वह जनता/नागरिक, अच्छा नागरिक बनना ही भूल जायेगी, क्योंकि फिर ये राज्य सरकार और सत्ताधारी दल के इशारों पर अपनी भूमिका तय करने लगेंगे, ऐसे में झारखण्ड मॉब लिंचिंग के दाग से कैसे बचेगा?
ये तो चिन्तन राज्य के वरीय पुलिस अधिकारियों को करना चाहिए, उन्हें चिन्तन करना चाहिए कि आखिर उन्होंने कौन से ऐसे कर्म किये, जिसके कारण राज्य की जनता का विश्वास सदा के लिए झारखण्ड पुलिस से उठ गया और वे कानून को अपने हाथ में लेने लगे, उन्हें कानून का भय नहीं, यहां तक कि अदालत द्वारा इस मामले में कई फैसले सुनाये जाने के बाद भी मॉब लिंचिंग की घटना में कोई कमी नहीं, क्या झारखण्ड पुलिस के वरीय अधिकारी इस पूरे प्रकरण पर नये ढंग से चिन्तन करेंगे या वहीं ढर्रें अपनायेंगे, जो अब तक अपनाते रहे हैं।