धर्म

जिन धर्मांध लोगों को देश में लोकतंत्र खतरे में दिखाई पड़ता हैं वे या तो चुनाव लड़ें या देश छोड़ें

जिस भी धर्मांध व्यक्ति या धार्मिक संस्थानों को भारत में लोकतंत्र खतरे में दिखाई पड़ता है, उसे भारत छोड़कर चले जाना चाहिए, और वहां रहने की कोशिश करनी चाहिए, जहां उसे लगता है कि लोकतंत्र सुरक्षित है, क्योंकि दिल्ली के आर्चबिशप अनिल क्यूटो ने राष्ट्रीय राजधानी के सभी पादरियों को एक चिट्ठी लिखकर जो संदेश दिया है, वह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है और जिन राजनीतिक दलों ने उस आर्चबिशप का पक्ष लिया है, उन्होंने भारतीय राजनीति में गदंगी घोलने का ही प्रयास किया है, जिन लोगों ने ऐसा किया हैं, उन्हें यह भी समझ लेना चाहिए कि न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार क्रिया एवं प्रतिक्रिया बराबर एवं विपरीत दिशा में होती है।

आर्चबिशप क्यूटो की ये प्रतिक्रिया, कोई ऐसे ही नहीं है, जब-जब देश में भाजपा या किसी राज्य में भाजपा का शासन हुआ है, ऐसे लोगों को लोकतंत्र खतरे में दिखाई पड़ा है, और कुछ राजनीतिक दल जो धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़कर हमारे भारतीय महापुरुषों भगवान श्रीराम एवं श्रीकृष्ण को गालियां देते है, या गालियां देनेवालों का समर्थन करते है, उनकी लॉटरी निकल पड़ती है, उनको लगता है कि ऐसे लोगों का समर्थन करने से उन्हें इस ग्रुप का वोट मिल जायेगा, पर वे यह नहीं जानते कि इससे ऐसे ही लोगों को बढ़ावा मिलता है, जो लोकतंत्र के लिए सचमुच खतरा बन जाते है।

इसी देश में एक हुसैन नामक तथाकथित चित्रकार हुआ, जो लक्ष्मी, सरस्वती की अश्लील चित्र बनाई, ये चित्र बनाकर भारतीय धर्म को किस प्रकार कंलकित करने का प्रयास किया, ये कौन नहीं जानता? पर धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बहुत सारे राजनीतिक दलों ने उसका खुलकर समर्थन किया, जबकि तसलीमा नसरीन के मामले में इन दलों की सारी धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहां चली गई? वो सबको पता है, ये कुछ उदाहरण है, ताजा मामला अनिल क्यूटो ने कर दिया।

आश्चर्य की बात है कि वर्तमान में भाजपा का केन्द्र में शासन हैं और बहुतायत राज्यों में भाजपा का शासन है, क्या ये भाजपा स्वयं सत्ता में आ गई, या जनता ने उसे समर्थन दिया और जब जनता ने समर्थन दिया तो पूरे देश की बहुसंख्यक आबादी, जिन्होंने भाजपा को वोट दिया, उसे कटघरे में खड़े करने का अधिकार उस आर्चबिशप को किसने दिया? हम तो कहेंगे कि आर्चबिशप को इतनी लोकतंत्र की चिन्ता है, तो वह चुनाव ही क्यों नहीं लड़ जाता? और अपने सारे बिरादरियों को क्यों नही कहता कि चुनाव लड़ जाये? जनता को लगेगा कि उसे वोट देना चाहिये, देगी और फिर अपने ढंग से लोकतंत्र को दिशा देगा, पर धर्म की आड़ में राजनीति करने की इसे इजाजत किसने दी? मैं पुछता हूं कि धर्म के नाम पर राजनीति करने का भाजपा पर आरोप लगानेवाले इस मुद्दे पर ऐसे लोगो के खिलाफ आवाज क्यों नहीं बुलंद करते?

बगल के देश पाकिस्तान में जाकर देखो, हिन्दूओं के क्या हाल है? वहां प्रतिदिन हिन्दूओं के धर्मांतरण कराये जा रहे हैं, हिन्दूओं के बेटियों का अपहरण करना और बलात उससे शादी करना, उसका धर्मपरिवर्तन करा देना तो वहां सामान्य सी बात है, और इसमें लोकतंत्र के सभी तीन स्तंभ ऐसा करनेवालों की मदद करते है। इस देश का दुर्भाग्य है कि यहां शो कॉल्ड धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़नेवाले लोग ऐसे लोगों की खुब महिमामंडन करते है, जो हिन्दूओं को तुच्छ समझते है, उन्हें गालियां देते है, पर ऐसे लोगों को सम्मान भी नहीं करते, जो हिन्दू धर्म के अनुसार अपना जीवन-यापन करते है।

कमाल है, गोमूत्र और गोबर पर भी इनका अजब-गजब का तर्क होता है। यानी बेशर्मी का सारा रिकार्ड तोड़ने में लगे है और भारत में लोकतंत्र को खतरा है, ऐसा बोलकर भारत की 125 करोड़ जनता को गाली देने से बाज नहीं आते। भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को ऐसे लोगों पर ऐक्शन लेना चाहिए, जो धर्म के नाम पर गंदगी फैला रहे है और धर्मपरिवर्तन कराकर देश की एकता व अखंडता को क्षति पहुंचा रहे हैं। फिलहाल आर्चबिशप अनिल क्यूटो के बयान बहुत ही खतरनाक है, उसकी सोच को सामान्य नहीं बताया जा सकता, उसकी कल्पना भी खतरनाक है, पर इसी बीच अन्य आर्चबिशपों का यह कहना की पीएम और मंत्रियों से कोई शिकायत नहीं, माहौल को खराब करने से बचा रहा है।

जरा देखिये, दिल्ली के आर्चबिशप अनिल क्यूटों के खतरनाक बयान – हम अशांत राजनीतिक माहौल देख रहे है, जो संविधान में दिये गये लोकतांत्रिक सिद्धांतों और हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों और हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने बाने के लिए खतरा पैदा करता है। देश और उसके नेताओं के लिए हर समय प्रार्थना करने की हमारी पवित्र रीति रही है, लेकिन यह हम तब शुरु करें, जब देश में आम चुनाव निकट आ रहा हो, हम 2019 की ओर देख रहे है, जब हमारी एक नई सरकार होगी, तो चलिए 13 मई से हमारे देश के लिए एक प्रार्थना अभियान चलाये।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा अनिल क्यूटो के बयान का समर्थन करना, ममता बनर्जी के हिन्दू विरोधी होने का एक और सबूत प्रदान कर रहा है, बंगाल में हिन्दूओं के क्या हालात है? वह किसे से छुपा नहीं है, कालांतराल में वहां हिन्दू स्वयं अल्पसंख्यक होने की स्थिति में है, बड़ी संख्या में बंगाल से हिन्दूओं का दूसरे राज्यों में पलायन ये बताने के लिए काफी है कि ममता बनर्जी कितनी महान है। माकपा नेता सीताराम येचुरी के बयान से हमें कोई ज्यादा की उम्मीद नहीं, क्योंकि वामपंथियों को हिन्दूओं से ही देश को खतरा लगता है, बाकी किसी धर्मावलम्बियों से नहीं।

भाजपा नेता गिरिराज सिंह का ये बयान सही ही है कि चर्च को इटली से आदेश मिलते है और वे पाकिस्तान से आनेवाले छद्म धर्मनिरपेक्ष लोगों के समर्थन में फतवा देते है, वह दिन दूर नहीं है, जब हिन्दू इसे पहचानेंगे और इन आवाजों का मुंहतोड़ जवाब देंगे।

केन्द्रीय मंत्री के जे अल्फोंस ने बंबई आस्वाल्ड कार्डिनल ग्रैशियास के आर्चबिशप और शीर्ष बिशप से बात की। वे प्रधानमंत्री से सहमति रखते है। उनका कहना था कुछेक लोग है, जो प्रधानमंत्री को पसंद नहीं करते, पादरियों को राजनीति से दूर रहना चाहिए।

विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने भी ठीक ही कहा कि यह भारत की धर्मनिरपेक्षता एवं लोकतंत्र पर चर्च का सीधा हमला है, यह वेटिकन का सीधा हस्तक्षेप है, क्योंकि इन बिशपों को पोप नियुक्त करते है। उनकी जवाबदेही भारत के प्रति नहीं, बल्कि पोप के प्रति है।