2019 विधानसभा चुनाव में रघुवर को सबक सिखाने की बात करनेवाले सुदेश,अब उन्हीं से सबक सिखने में लगे
झारखण्ड में एक से एक नेता है, वे कब क्या बोलेंगे और क्या कर देंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता, जैसे आपको मालूम ही होगा, कि झारखण्ड में एक मुख्यमंत्री है रघुवर दास, उन्होंने एक जनसभा में कहा कि अगर हम दिसम्बर 2018 तक झारखण्ड में 24 घंटे बिजली नहीं दे पाये, तो वे 2019 में वोट मांगने जनता के पास नहीं जायेंगे, दिसम्बर 2018 भी बीत गया, राज्य में बिजली के लिए हाहाकार हो रहा है, फिर भी वे 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता के बीच वोट मांगने गये, और जनता भी उनकी पार्टी को मोदी के नाम पर वोट गिरा दी।
ठीक उसी प्रकार झारखण्ड में एक आजसू पार्टी हैं, इस राज्य में किसी की भी सरकार बने, यह पार्टी सत्ता सुख का खूब रसपान की है। इसके सुप्रीमो है – सुदेश महतो। ये भी महान है। युवा है। कब क्या बोल देंगे? आप हैरान रह जायेंगे। जरा देखिये, इनके भाषण को। इन्होंने 23 फरवरी 2017 को चाईबासा में आयोजित आजूस के कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि आदिवासियों और मूलवासियों के दुश्मन है रघुवर दास।
उन्होंने इस कार्यकर्ता सम्मेलन में मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ खूब अनाप-शनाप बका था। उन्होंने सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन मामले में सीएम रघुवर दास की खूब खिंचाई की थी और कहा था कि छत्तीसगढ़ का व्यक्ति झारखण्ड का सीएम बना हुआ है और वह अपनी मर्जी से हमारे विरुद्ध फैसले ले रहा है। उन्होंने कहा था कि सूबे में भाजपा को सरकार बनाने में भरपूर साथ दिया, लेकिन बदले मे हमें उन्होंने क्या दिया? यह सभी जानते है, यानी सुदेश महतो ने खुद स्वीकार किया था कि आजसू को इसके बदले में कुछ न कुछ चाहिए था, वो क्या चाहिए था सुदेश ही कुछ बता सकते हैं।
सुदेश महतो ने उसी दिन यह भी कहा था कि 2019 के विधानसभा चुनाव में वे रघुवर दास को सबक सिखायेंगे, पर सच्चाई क्या है? झारखण्ड विधानसभा चुनाव के मात्र पांच महीने शेष रह गये हैं, और जनाब तथा उनकी पार्टी भाजपा और रघुवर दास की परिक्रमा कर रही है। जबसे भाजपा ने गिरिडीह एक संसदीय सीट आजसू को भिक्षा के रुप में प्रदान की है, आजसू के नेता अपने आप में नहीं हैं, उन्हें रघुवर और पीएम मोदी मे सूरज और चांद दिखाई देने लगे हैं।
वे अब मिलकर प्रेस कांफ्रेस करते है, एक दूसरे का सहयोग करने की बात करने लगे हैं, उसका मूल कारण है कि आजसू को झारखण्ड में अपनी हैसियत का अंदाजा लग चुका है, उसे पता है कि ऐसे हालत में जब हिन्दूत्व की लहर पूरे झारखण्ड में चल रही है, उस लहर में आजसू का जीत पाना या एक सीट भी निकाल पाना मुश्किल है। पार्टी यह भी जानती है कि जब उपचुनाव में आजसू सुप्रीमो, सिल्ली की अपनी परम्परागत सीट वह भी दुबारा लूज कर सकते हैं तो तीसरी बार भी लूज करने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।
इसलिए अब आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो, जो कल तक रघुवर दास के खिलाफ अनाप-शनाप बका करते थे, अब वे अनाप-शनाप बोलने पर ब्रेक लगा चुके हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि ऐसा करने में खामियाजा पार्टी को कम और उन्हें ज्यादा उठाना पड़ेगा। जो भी सीट अभी उनके कब्जे में है, वो भी चला जायेगा। दरअसल सीएम रघुवर दास ने 2014 के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद आजसू पर लगाम कसने के लिए, झाविमो के कुछ विधायकों को अपनी पार्टी में मिला लिया था, जिससे आजसू की सोच पर पानी फिर गया।
आजसू समझी थी कि भाजपा को बहुमत के लिए आजसू पर निर्भर रहना पड़ेगा, ऐसे में वे अपनी जरुरत के मुताबिक रघुवर सरकार को ब्लैकमेल करते रहेंगे, पर झाविमो के दलबदलूओं ने उनके इस सोच पर ही सदा के लिए विराम लगा दिया, पानी फेर दिया। बेचारे अब सुदेश क्या करते? वे मन मसोस कर रह गये, इधर वे पार्टी को मजबूत करने में लग हुए थे, पर जनता उनकी पार्टी को हवा में उड़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी।
बेचारे हार-थककर जो कल तक सीएम रघुवर को सबक सिखाने की बात करते थे, अचानक रघुवर स्तुति पर ध्यान देने लगे। पीएम मोदी, अमित शाह और रघुवर में अपना भविष्य तलाशने लगे। पीएम मोदी, अमित शाह और रघुवर दास ने भी सोच लिया कि बंदा भक्त बन चुका है, इसलिए इसे भक्ति का वरदान मिलना चाहिए, उन्होंने गिरिडीह लोकसभा सीट थमा दी और रही विधानसभा चुनाव की, तो भाजपा के महानुभावों ने संकेतों में बता दिया कि भाजपा के शरण में ही बंदे का कल्याण हैं, इसलिए ज्यादा उछल-कूद नहीं, बयानबाजी नहीं, बस एक ही मंत्र “मोदी शरणम् गच्छामि, रघुवर शरणम् गच्छामि” बोलने में ही भलाई है, इसलिए अब इनके पास विकल्प ही क्या है, बोलते रहे।