सुजीत उपाध्याय एक ऐसा विशिष्ट नाम, जिसने सेवा-कार्य से हर झारखण्डी के दिल में अपना विशेष स्थान बना लिया
नाम – सुजीत उपाध्याय, उम्र – मात्र 28 वर्ष और बस इतनी छोटी सी उम्र में ही, इस युवा ने इस छोटे से राज्य झारखण्ड में अपनी एक अलग विशिष्ट पहचान बना ली है। झारखण्ड के लोग उसे सुजीत उपाध्याय के नाम से नहीं, बल्कि उसे ‘सोनू सूद’ के नाम से पुकारने लगे हैं। दरअसल सोनू सूद मुंबई में रहते हैं। सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता हैं। इन दिनों जरुरतमंदों के लिए काफी सक्रिय रहते हैं।
कई बार झारखण्ड के लोगों को भी उन्होंने आर्थिक व अन्य मदद पहुंचाई है। ठीक इसी प्रकार सुजीत उपाध्याय ने भी धर्म व जाति की दीवारों को ढहाकर मानव मात्र की सेवा में खुद को लगा दिया है। जिसका प्रभाव यह पड़ा कि खुद सोनू सूद भी इनसे मिले बिना नहीं रह पाये, जब दोनों एक दूसरे से मिले, तो यह पल झारखण्डवासियों के लिए देखनेलायक था।
आखिर सुजीत ने क्या किया है कि झारखण्ड के लोग उनके दीवाने हो गये?
सचमुच, सुजीत ने सेवा की एक लंबी लकीरें खींची है। जिसको झारखण्डवासियों ने देखा व महसूस किया। जब देश कोरोना से जूझ रहा था। उस वक्त कोरोना ने झारखण्डवासियों को भी अपना शिकार बनाना शुरु किया। कोरोना ने सामाजिक ताना-बाना को ही ऐसा प्रभावित कर दिया कि लोग अपने परिवार से भी दूरियां बनाने लगे।
स्थिति ऐसी थी कि सरकार जो पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रही थी, उसके सामने में भी राज्य की जनता को कैसे बेहतर मदद पहुंचाएं, यह सवाल राज्य सरकार को बार-बार बेचैन कर रहा था। ऐसे में सुजीत उपाध्याय ने भी अपनी ओर से जो बन पड़ा। मानवता की सेवा के लिए यह युवा निकल पड़ा। इस युवक ने 20 हजार से भी अधिक झारखण्डी प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने में मदद की। 270 जरुरतमंदों का राशन कार्ड बनवाया। रांची में जब लोग दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे थे, सुजीत ने करीब 50 लोगों को स्वयं अस्पताल पहुंचाया।
चूंकि राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपने सारे कार्यकर्ताओं को दिशा-निर्देश जारी किया था कि वे जो भी बन पड़े। कोरोनाकाल में लोगों की मदद करने में जुट जाये। इस युवक ने अपने नेता की बातों को जमीन पर उतारने के लिए तनिक देर नहीं की, निकल पड़ा। ज्ञातव्य है कि सुजीत झारखण्ड मुक्ति मोर्चा से पिछले 17 वर्षों से जुड़े रहे हैं। वे 2010 में झामुमो रांची महानगर के सह-सचिव, 2016 में जिला उपाध्यक्ष, 2019 में पार्टी प्रवक्ता की जिम्मेवारी संभाली।
अब लोग झारखण्ड का उसे सोनू सूद कहने लगे हैं
यहीं नहीं ये कई धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। जैसे – रांची दुर्गा पूजा- रामनवमी की विभिन्न कमेटियों में संयोजक, प्रदेश डीजल ऑटोचालक महासंघ के संयोजक, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के झारखण्ड प्रभारी आदि। फिलहाल वे राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष भी है। मतलब, इतनी जिम्मेदारियों के बावजूद भी सुजीत ने स्वयं को मानव-सेवा से कभी दूर नहीं होने दिया।
लोग बताते है कि कोरोना काल में रांची के कोकर तिरिल बस्ती में एक असहाय व्यक्ति, जिसके पैर में प्लास्टर चढ़ा था, जो कही चल-फिर नहीं सकता था, तीन दिनों से सड़क पर पड़ा था। जब सुजीत को इस बात की जानकारी मिली। उन्होंने तुरन्त उसे अस्पताल पहुंचाकर कोरोना की जांच कराई, उसका इलाज करवाया और फिर उसे घर पहुंचाया।
दूसरी घटना देखिये। कोरोना काल में ही रात्रि में एक महिला जो अपना याददाश्त खो चुकी थी, गर्भवती भी थी। बूटी मोड़ चौक पर पांच घंटे से पड़ी थी। लोग उसे देखकर निकल जा रहे थे, पर कोई उसकी मदद को आगे नहीं आ रहा था। जैसे ही सुजीत को पता चला, उन्होंने सदर थाना प्रभारी और रांची एसडीओ की मदद से उसे बेहतर इलाज कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी। मतलब कोरोना काल में जहां भी सुजीत ने देखा कि कोई असहाय व्यक्ति सड़क पर पड़ा हैं। वे उसकी सेवा में निकल पड़ते।
एक अन्य घटना देखिये, कोरोनाकाल में ही केरल के मालापुरम जिले में झारखण्ड के 1700 मजदूर फंसे हुए थे। किसी ने सुजीत उपाध्याय को इसकी सूचना दी। सुजीत मजदूरों की सूची को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन तक पहुंच गये। फिर क्या था, प्रशासनिक अधिकारियों ने इसमें रुचि ली। रेल से उन सारे मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाया गया। जब ये मजदूर मालापुरम से अपने घर लौटे तो इनके जुबां पर दो लोगों के ही नाम थे। एक हेमन्त सोरेन और दूसरे सुजीत उपाध्याय का।
अब बात केरल के एर्नाकुलम जिले की
सुजीत उपाध्याय को पता चला कि केरल के एर्नाकुलम जिले में झारखण्ड की करीब पांच सौ लड़कियां फंसी हुई है। ये जानकारी सुजीत उपाध्याय को व्हाट्सएप्प व फोन के माध्यम मे मिली थी। सुजीत उपाध्याय ने इसकी सूचना राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को दी। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने तुरन्त संज्ञान लिया। उन लड़कियों के लाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई गई। जब सभी लड़कियां एर्नाकुलम से झारखण्ड पहुंची तो सभी ने एक स्वर से सुजीत उपाध्याय व राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को इसके लिए जमकर बधाइयां दी।
भाजपा प्रदेश कार्यालय के समक्ष हुई सड़क दुर्घटना में युवक की जान बचाई
एक बार भाजपा प्रदेश कार्यालय के समक्ष सड़क दुर्घटना में एक युवक की जान पर बन आई। स्थिति ऐसी थी कि सभी उक्त युवक को सड़क पर छटपटाते देख रहे थे, पर कोई उसकी जान बचाने को आगे नहीं आया। लेकिन संयोग था, उसी रास्ते से गुजर रहे सुजीत उपाध्याय की उस युवक पर नजर पड़ी। उन्होंने उक्त युवक को अपनी गाड़ी में लिटाया और सीधे उसे लेकर अस्पताल पहुंचाया, जिससे उस युवक की जान बच गई। आज भी वो युवक, सुजीत उपाध्याय के इस उपकार को भूला नहीं हैं। याद करता है।
सड़क पर तड़पता असम का वो भूखा युवक
मुकेश चौधरी नामक किसी व्यक्ति ने सुजीत उपाध्याय को व्हाट्सएप के माध्यम से एक तस्वीर भेजी। यह तस्वीर असम से काम की तलाश में रांची आये एक युवक की थी। चूंकि कोरोनाकाल था। लॉकडाउन लगा था। आने-जाने का कोई साधन नहीं था। रांची आने के बाद वो फंस चुका था। उसके सारे सामान चोरी हो गये थे। तीन माह तक तो वो उस जगह से खाना खा लेता था, जहां पर उस दौरान मुफ्त में भोजन दिये जा रहे थे।
पर बाद में उसे भोजन नहीं मिलने से परेशानी होने लगी। उसकी स्थिति भोजन नहीं मिलने से खराब होने लगी। कई दिनों से खाना नहीं खाने के कारण उसकी स्थित गंभीर हो गई थी। जैसे ही सुजीत उपाध्याय को पता चला। उक्त युवक को उन्होंने भोजन कराया और अस्पताल पहुंचवाकर उसकी सारी समस्याएं ही खत्म करवा दी।
विश्व आदिवासी दिवस और भटकते 30 मजदूर आदिवासी
अब बात उन दिनों की। कोरोनाकाल का समय। विश्व आदिवासी दिवस था। उस दिन तमिलनाडु से 30 आदिवासी मजदूर रांची पहुंचे थे। मजदूरों ने बताया था कि वे तमिलनाडू से बस से रांची पहुंचे थे। प्रत्येक ने 6500 रुपये देकर बस बुक किया था। लेकिन बसवाला इन सारे मजदूरों को रांची के खेलगांव चौक पर ही उतारकर वहां से चलता बना। अब मजदूर क्या करें? उसी वक्त उसी रास्ते से सुजीत उपाध्याय गुजर रहे थे।
जब उनकी नजर 30 आदिवासी मजदूरों पर पड़ी। तब उन्होंने उनसे उनकी समस्याएं पूछी। मजदूरों ने सारा हाल कह सुनाया। उसी वक्त, उन्होंने सबसे पहले उस बस का पीछा किया, पर वो बस हाथ नहीं आया। इसी बीच उन्होंने सारे मजदूरों को पहले खाना खिलाया और उनसे यह पुछा कि आखिर उन्हें जाना कहां हैं? मजदूरों ने कहा – सिमडेगा।
इसी बीच सुजीत उपाध्याय ने रांची प्रशासन से इस संबंध में बातचीत की। तत्कालीन उपायुक्त रांची ने एडीएम को बस उपलब्ध कराने को कहा। जिससे ये सारे मजदूर बस के द्वारा अपने घर सिमडेगा पहुंच गये। आज भी वे मजदूर इस घटना और सुजीत उपाध्याय को उनके इस उपकार के लिए उन्हें नहीं भूले। आज स्थिति यह है कि सुजीत उपाध्याय किसी परिचय के मोहताज नहीं। जितने वे झामुमो में लोकप्रिय है। उतने ही वे अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों में।
सेवा भाव का जहां भी नाम आता है, प्रशासनिक अधिकारियों में भी वे काफी लोकप्रिय है। यहीं कारण है कि कोई भी प्रशासनिक अधिकारी उनकी बातों को ना नहीं करता, क्योंकि वो जानता है कि सुजीत ने जिस काम के लिए फोन किया हैं, वो जरुर असहाय, जरुरतमंद हैं। इसलिए वे उन्हें सहयोग के लिए निकल पड़ते हैं। जब भी कोरोनाकाल और मानवता की सेवा की बात आयेगी तो निश्चय ही यह युवा अग्रिम पंक्ति में होगा, क्योंकि इस युवा ने बिना किसी के आर्थिक सहयोग के, इसने जो जन-सामान्य की सेवा की है, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।