सुप्रीम कोर्ट ने कहा महिलाओं को सेक्शुअल चॉइस से नहीं रोका जा सकता, अडल्टरी अपराध नहीं
लीजिये सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसला सुना दिया है। फैसला किसी के लिए भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को चुनौती देनेवाला, स्वच्छंदता को बढ़ावा देनेवाला, देश की दिशा बदल देनेवाला हो सकता है, आज के इस फैसले से इस पर चर्चा भी शुरु हो गई है, पर इतना तय है कि आज के इस फैसले ने लोगों को एक नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या वे भारत में है या भारत के बाहर हैं या जो हम कहा करते थे कि भारत औरों से अलग है, या भारत भी पश्चिमी देशों के रंग में रंग चुका है, आश्चर्य यह भी है कि ये सारे फैसले तब आ रहे हैं, जब देश में दक्षिणपंथी सरकार केन्द्र में बैठी है।
आखिर सुप्रीम कोर्ट ने आज क्या कहा? सुप्रीम कोर्ट ने आइपीसी की धारा 497 में अडल्टरी को अपराध बतानेवाले प्रावधान को असंवैधानिक करार दे दिया। आज मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश ए एम खानविलकर, न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा, न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायाधीश आरएफ नरीमन की पांच जजों की बेंच ने यह एकमत से फैसला सुनाया कि अडल्टरी यानी विवाहेत्तर संबंध अपराध नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार अडल्टरी संबंध विच्छेद का आधार रहेगा और इसको लेकर खुदकुशी के मामले में उकसाने का केस भी दर्ज होगा। हालांकि यह फैसला किसी के लिए ऐतिहासिक हो सकता है, पर भारतीय समाज के लिए इसे आत्मसात कर पाना बहुत मुश्किल होगा। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार महिलाओं की इच्छा, अधिकार और सम्मान सर्वोच्च है, पति महिला का मालिक नहीं होता, उन्हें सेक्शुअल च्वाइस से रोका नहीं जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायाधीश खानविलकर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘हम विवाह के खिलाफ अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते है’ न्यायमूर्ति नरीमन ने धारा 497 को समानता के अधिकार और महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार को उल्लंघन करनेवाला बताया।