अपनी बात

कलक्टर बनने के लिए 100 और चपरासी बनने के लिए 500 रुपये का फार्म भरिये

भाइयों और बहनों, योग्यता के अनुरुप युवाओं को नौकरी मिलनी चाहिए या नहीं, यह संवाद जैसे ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार के विधानसभा चुनाव के दौरान बोलते हैं भीड़ से आवाज आती हैं – हां। बेरोजगारों को नैसर्गिक न्याय मिलना चाहिए या नहीं, भीड़ से आवाज आती हैं – हां, पर जैसे ही नरेन्द्र मोदी सत्ता से चिपकते हैं, वे भूल जाते हैं कि उन्होंने बेरोजगार युवकों से कुछ वायदे भी किये थे। अब वे वायदों की जगह, युवाओं को पकौड़ा छानने का ट्रेनिंग देने की बात करते हैं।

यहीं नहीं पिछले चार सालों से रेलवे के जिस ग्रुप डी की बहाली पर इन्होंने ताला लगा रखा था। उसकी इस बार इन्होंने बंपर बहाली निकाली है, पर उसमें भी इन्होंने ऐसा दांव-पेंच खेल दिया है कि भारत के बेरोजगार युवाओं को लग रहा है, कि उनके साथ केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने चीटिंग की है। उनका मजाक उड़ाया हैं।

वे केन्द्र सरकार के इस नीतियों के खिलाफ विभिन्न स्थानों पर सड़क पर उतर रहे हैं, स्थिति ऐसी हो रही है कि बिहार के विभिन्न इलाकों में युवाओं की फौज रेलवे स्टेशनों पर उमड़-घुमड़ रही हैं और तख्तियां लेकर कि वे पकौड़ा बेचने को तैयार नहीं हैं, की आवाज बुलंद कर रही हैं।

आक्रोशित युवा कहते है कि ऐसा प्रधानमंत्री हमने कभी नहीं देखा, जो झूठ पर झूठ बोलता है, जो युवाओं के सपनों पर कुठाराघात करता हैं, जरा बताइये एक तो चार साल के बाद विज्ञापन निकाला और उस पर उम्र कम कर दिया, दूसरी बात यह कि ग्रुप डी की नौकरी और उसमें आईटीआई अनिवार्य कर दिया, क्या ये सरकार बता सकती है कि ग्रुप डी में कब आईटीआई अनिवार्य किया गया?

आक्रोशित युवा यह भी कहते है कि एक तो बेरोजगारी और उस पर ग्रुप डी में पांच सौ रुपये की मांग क्या ये अन्याय नहीं है? यानी जिला कलक्टर बनने के लिए 100 रुपये का फार्म भरिये और चपरासी बनने के लिए पांच सौ रुपये का फार्म, ये सिर्फ और सिर्फ भाजपा और नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में ही हो सकता हैं, किसी अन्य दल के शासन में नहीं।

आक्रोशित युवा यह भी कहते है कि अगर केन्द्र सरकार ने ग्रुप डी की बहाली में अपने निर्णयों में बदलाव नहीं लाया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे, ऐसे  में नरेन्द्र मोदी 2019 तो भूल ही जाये, क्योंकि शायद ही अब कोई युवा पकौड़ा छानने की इच्छा लेकर, इन्हें वोट देगा या उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की सोचेगा।

इधर बिहार में छात्रों के गुस्से को देखते हुए, रेलवे के खिलाफ बढ़ते आंदोलन को देखते हुए कुछ इलाकों में रेल पुलिस को अलर्ट कर दिया गया है, पर जिस प्रकार से आक्रोश बढ़ रहा हैं, उससे लगता नहीं कि रेल पुलिस स्थिति को संभाल लेगी। आरा, समस्तीपुर, बाढ़, अथमलगोला, औरंगाबाद आदि स्थानों पर युवाओं का उतरा गुस्सा उसके ज्वलंत उदाहरण है। जब आंदोलन के कारण पिछले दिनों गया-मुगलसराय, पटना मुगलसराय रेलखंडों पर रेल यातायात प्रभावित हो गया।

हालांकि रेलवे प्रशासन, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रेल मंत्री पीयूष गोयल के खिलाफ युवाओं का गुस्सा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा हैं, वे इन सब का पुतला दहन कर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं, अगर केन्द्र सरकार इनके आक्रोश को ठीक ढंग से नहीं समझी तो स्थिति संभलने के बजाय ऐसी बिगड़ेगी कि ये संभाल नहीं पायेंगे, इसलिए अच्छा रहेगा कि रेलवे के ग्रुप डी में आई विसंगतियों को जितना जल्द हो सके, इन बेरोजगार युवकों के हित में दूर कर लें, नहीं तो युवाओं के पास विकल्प खुला हैं।