कनफूंकवों से यारी कीजिये, और मानदेय पर नौकरी लीजिये, चाहे आप झारखण्ड के हो, चाहे न हो
झारखण्ड में भ्रष्ट नेताओं+कुछ निर्लज्ज आइएएस/आइपीएस द्वारा संपोषित चिरकूट कंपनियों के माध्यम से राज्य के विभिन्न विभागों में, वह भी मात्र एक साल के लिए मानदेय पर रखे गये युवा इतने इतरा रहे हैं कि जैसे लगता है कि उन्हें साक्षात् ईश्वर के दर्शन हो गये हो। आश्चर्य तो यह भी है कि इनमें कई ऐसे पत्रकार भी हैं, जो बहुत ही अच्छे संस्थानों में काम कर रहे थे, पर कथित राज्य सरकार की नौकरी और रिश्वत को लेकर उपरि आमदनी की चाहत ने उन्हें भी कहीं का नहीं छोड़ा और वर्तमान में जो उनकी हालत है, उसे देखकर उक्त संस्थान के लोग भी उन पर हंसे बिना नहीं रह रहे, जहां ये पूर्व में काम कर रहे थे।
फिलहाल वे खूब मेहनत कर रहे हैं, उन्हें लग रहा है कि बस अब क्या जिंदगी निकल पड़ी, पर उन्हें नहीं मालूम कि जैसे ही इस सरकार का आनेवाले विधानसभा चुनाव में बैंड बजेगा, इसी के साथ इन चिरकूट कंपनियों पर नई सरकार का चाबुक चलना भी तय है और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने तथा राज्य में रहनेवाले आदिवासियों–मूलवासियों को उनका हक प्राप्त हो, इसके लिए नई सरकार कुछ नये प्रावधान अवश्य लाएंगी तब इनका क्या होगा?
दरअसल हुआ यह है कि राज्य सरकार के मुख्यमंत्री के हाथों में रह रहे एक विभाग ने एक कंपनी के माध्यम से मानदेय के आधार पर बहुत सारे लोगों की बहाली की है, और उनका तबादला विभिन्न जिलों में कर दिया हैं, इनमें जिनकी बहाली हुई है, वे सभी उक्त विभाग के कृपापात्र अधिकारियों के इशारे पर हुई हैं, जिसमें योग्यता और राज्य के आदिवासियों–मूलवासियों को घोर उपेक्षा हुई है, जिसे जो अच्छा लगा, उसे उठाया और अपने मन–मुताबिक उसे वहां फिट कर दिया।
आश्चर्य यह भी है कि आजकल रघुवर सरकार में यहीं काम खूब धड़ल्ले से चल रहा हैं, आपकी योग्यता गई तेल लेने, आप झारखण्ड के हैं या नहीं उससे भी कोई मतलब नहीं, आप विभागीय अधिकारी के कितने कृपापात्र हैं तथा कनफूंकवों से आपकी यारी हैं या नहीं, अगर कनफूंकवों से यारी हैं तब तो आपको विभागीय नौकरी तय और जहां आपकी यारी में कमी हुई तो गये काम से।
जानकार बताते है कि फिलहाल मानदेय पर प्राप्त नौकरी को पाकर जो लोग ज्यादा इतरा रहे हैं, उन्हें ये नहीं मालूम कि जिस सोच के साथ वे उक्त पद पर जा रहे हैं, उन्हें उनके उपर के प्रशासकीय अधिकारी मात्र कुछ ही महीनों में निंबू की तरह निचोड़ देंगे, और फिर वे कही के लायक नहीं होंगे। वे सोच रहे है कि एक बार मानदेय पर नौकरी मिल जाने से वे आगे चलकर सरकारी कर दिये जायेंगे, ये भी भूल में नहीं रहे, क्योंकि जो भी विभागीय नौकरियों मे गये हैं, उन्हें नौकरी सरकार ने नहीं दी, बल्कि वह नौकरी भ्रष्ट नेताओं+कुछ निर्लज्ज आइएएस/आइपीएस द्वारा संपोषित चिरकूट कंपनियों के माध्यम से उन्हें प्राप्त हुई हैं।
दूसरी ओर आदिवासी+मूलवासी संगठनों से जुड़े नेताओं का कहना है कि इस भाजपा सरकार में सरकारी नौकरी तो भूल ही जाइये, पर मानदेय पर हो रही बहालियों में भी आदिवासियों और मूलवासियों की उपेक्षा ये बताने के लिए काफी है कि वर्तमान सरकार ने यहां के युवाओं/बेरोजगारों/आदिवासियों/मूलवासियों का शोषण करने का एक तरह से प्रण कर लिया है, इसलिए इस सरकार को सत्ता में रहने का कोई अधिकार ही नहीं, इसलिए वे चाहेंगे कि इस साल जब भी कभी चुनाव हो, भाजपा और उसके सहयोगी पार्टियों को बाहर का रास्ता दिखाये बिना झारखण्ड का कल्याण संभव नहीं।