झारखण्ड में तालिबानी शासन, पत्रकारों को जेल में डालने की कोशिश को लगे पंख, IAS/IPS कनफूंकवों के इशारे पर संविधान और लोगों के इज्जत से खेलने को तैयार, गोदी मीडिया के नाम पर मोदी की इज्जत उछालनेवाले, हेमन्त की इस दादागिरी पर साधी चुप्पी
जी हां, झारखण्ड में भी तालिबानी शासन का आगाज हो चुका है। शुरुआत पत्रकारों से हुई है। राज्य में चून-चूनकर ऐसे पत्रकारों को जेल में डालने/डलवाने का खेल शुरु हो चुका है, जो राज्य सरकार और उनके कनफूंकवों के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटा रहे हैं। इसमें वे भी शामिल हैं, जिन पर प्रशासनिक व कानून व्यवस्था बहाल करने की जिम्मेदारी है।
मतलब आइएएस व आइपीएस भी डेडिकेट्ड टूल्स की तरह काम कर रहे हैं। भारत के संविधान और लोगों के इज्जत के साथ खेलने को तैयार हो गये हैं। कमाल उनका भी है, जो हर बात में गोदी मीडिया के नाम पर पीएम मोदी की इज्जत उछालने में तनिक देर नहीं करते, हेमन्त सोरेन की इस दादागिरी पर चुप है।
पत्रकारों की हालत झारखण्ड में कसाई के घर बांधे गये बकरियों/भेड़ों की तरह हो गई है, जैसे कसाई जब मन करे, तब किसी भी बकरियों/भेड़ों को काट डालता है, ठीक उसी प्रकार हेमन्त सरकार और उनके कनफूंकवों के इशारे पर विभिन्न थानों में बैठे थानेदार, अपने उपर के आकाओं, आइएएस/आइपीएस के इशारे पर झूठे मुकदमे दायर कर दे रहे हैं, जिससे पत्रकारों की जो भी थोड़ी प्रतिष्ठा बची है, वो धूमिल हो रही है।
इसकी शुरुआत इसी वर्ष 19 फरवरी से हुई, जब न्यूज 11 भारत के संपादक अनूप सोनू ने हेमन्त सोरेन के कनफूंकवों के इशारे पर कोतवाली थाने में विद्रोही24 के संपादक कृष्ण बिहारी मिश्र के खिलाफ झूठी प्राथमिकी दर्ज करवा दी और वो झूठी प्राथमिकी बिना किसी तारीख और समय के ही रजिस्टर्ड कर ली गई। ज्ञातव्य है कि झूठी प्राथमिकी दर्ज कराने के पूर्व न्यूज 11 के लोग मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से भी मिले थे, जहां से उन्हें हरी झंडी भी मिली थी।
जब कृष्ण बिहारी मिश्र ने इस झूठे मुकदमें को लेकर लिखित तौर पर अपना पक्ष रखते हुए यह कहा कि संबंधित घटना की सीसीटीवी फूटेज, उसकी डीवीआर और सीडीआर निकाली जाये, तब स्थानीय पुलिस इस काम को करने के बजाय, समय नष्ट करने में लगी है, ताकि सीडीआर निकालने का समय ही नष्ट हो जाये और वे फिर अपने तरीके से एक ईमानदार को सूली पर लटका सकें।
आश्चर्य है, जिस दिन ये घटना घटी थी, किसी पत्रकार ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी, नतीजा इन पुलिस वालों का मनोबल बढ़ा और वे अन्य पत्रकारों का गर्दन पकड़ने के लिए आगे आ गये। दूसरा पत्रकार तीर्थ नाथ आकाश के साथ घटना घटी, उसके खिलाफ भी स्थानीय पुलिस ने झूठे मुकदमे दर्ज करा दिये। तीसरी घटना हजारीबाग के राजेश मिश्रा के साथ हुई, उसके खिलाफ भी झूठे मुकदमे चल रहे हैं, चौथी घटना द फौलोअप के संवाददाता के साथ घटी और अब बारी आ गई सुनील तिवारी की।
सुनील तिवारी को कौन नहीं जानता। झारखण्ड के नामी गिरामी पत्रकारों में उनकी गिनती होती है। आज उन्हें भी फंसा दिया गया है। घृणित आरोप ऐसे लगाये गये है, जिन्हें सुनकर सिर शर्म से झूक जाता है, पर जिन्होंने ऐसे आरोप लगवाये हैं, जब पत्रकारों ने उन पुलिसकर्मियों से इस संबंध में सवाल पूछे तो कल तक कोई यह बताने को तैयार नहीं था कि सुनील तिवारी पर झूठे मुकदमे हुए हैं, जबकि आज सबको पता है। स्थानीय पुलिस व उनके गुर्गें एक-एक कर प्राथमिकी की कॉपी तक हवा में लूटा रहे हैं।
ऐसे हम आपको बता दें कि झारखण्ड में किसी भी संपादक/पत्रकार के उपर यौन शोषण का आरोप लगा देना बाये हाथ का खेल है। कभी धनबाद के प्रभात खबर के संपादक पर भी यौन शोषण का आरोप लगा था, जिसके खिलाफ कृष्ण बिहारी मिश्र ने खुलकर प्रभात खबर के संपादक का साथ दिया था, क्योंकि वो जानता था कि पूरा मामला ही संगीन है और भ्रामक है। अंततः जीत प्रभात खबर धनबाद के संपादक की ही हुई, झूठा केस वापस हुआ।
हाल ही में धनबाद के ही एक वरिष्ठ समाजसेवी विजय झा के पुत्र के खिलाफ यौन-शोषण का आरोप एक महिला ने एक नेता के कहने पर लगा दिया, अंततः वो केस झूठा साबित हुआ, ये मामला कोई पुराना नहीं हैं, जाकर धनबाद के कतरास थाना में जाकर कोई भी उस मामले को देख सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार सिंह मंटू सोशल साइट पर ठीक ही लिखते है कि – “ सावधान, सावधान, सावधान, अगर आप बड़े चोरों, अपराधियों-व्यभिचारियों के खिलाफ पीआएल दायर कर रहे हैं तो थाने-अदालतों में झूठे मुकदमों का सामना करने को तैयार रहे – आत्मानुभव।”
रांची प्रेस क्लब के महासचिव अखिलेश कुमार सिंह लिखते हैं – “झारखण्ड में पुलिस एफआइआर दर्ज करती है, फिर पछताती है, गलती हो गया। एफआइआर के बाद फेंका-फेंकी होती है। अफसर एक दूसरे को जिम्मेवार ठहराते हैं। जिलावाले कहते है, स्पेशल ब्रांच सब करवाया, लेकिन जिलावाले बाबू केस तो आपके थाने के ज्यूरिडिक्शन में हुआ। *विधायक खरीद फरोख्त के बाद कहानी जारी।”
इधर प्रशान्त उमरांव ट्विटर पर लिखते है – “झारखण्ड में तालिबानी हुकूमत का एक और नायाब नमूना सामने आया है। वरिष्ठ पत्रकार व भाजपा विधायक दल के नेता बाबू लाल मरांडी के सलाहकार सुनील तिवारी पर आज रांची में रेप की एफआइआर की खबर आ रही है। व्हिसिल ब्लोवर श्री तिवारी हेमन्त सोरेन के मुंबई मॉडल रेपकांड में हाई कोर्ट में इंटरवेनर है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका 326/2021 इसी पांच अगस्त को दर्ज कराया है और मुंबई रेप कांड की जल्द सुनवाई करवाने का आग्रह किया है। इसमें मुख्य अभियुक्त हेमन्त सोरेन और रेप कांड के सह अभियुक्त सुरेश नागर को भी पार्टी बनाया गया है। इस मामले की सुनवाई 23 अगस्त को होनेवाली है।” जिसके कारण ये सारा मामला बनाकर सुनील तिवारी को फंसाने की अच्छी तैयारी सरकार और उनके लोगों ने कर ली है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अब झारखण्ड के पत्रकारों को सोचना होगा कि वे तालिबानी हुकूमत का स्वाद चखकर फर्जी मुकदमें में फंस अपनी जिंदगी तबाह करना चाहेंगे, या निर्णायक लड़ाई लड़ेंगे, अगर निर्णायक लड़ाई लड़ेंगे तो शहीद कहलायेंगे और नहीं लड़ेंगे तो उनकी औकात भेड़-बकरियों से अधिक की नहीं होगी।
इधर प्रभात खबर के संपादक संजय मिश्र ने सुनील तिवारी प्रकरण पर कहा कि उन्हें नहीं लगता कि सुनील तिवारी ने ऐसा कुकर्म किया होगा, इस पूरे प्रकरण में उन्हें फंसाने की बू आ रही हैं और ये काम उसी दिन से शुरु हुआ, जब विद्रोही24 डॉट कॉम के संपादक कृष्ण बिहारी मिश्र पर कोतवाली थाने रांची में झूठे मुकदमे दर्ज किये गये और किसी ने इस पर प्रतिवाद तक नहीं किया।
हालांकि ये सारे मामले पर जनता की नजर है, वो सब देख रही हैं, दूध का दूध-पानी का पानी एक न एक दिन होगा ही, चाहे कोई कुछ भी कर लें। पत्रकारों को इन सारे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए और एकता के सूत्र में बंधकर इसका प्रतिकार करना चाहिए, क्योंकि आज सुनील तिवारी तो कल किसी और की बारी होगी, ये मामला बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने कहा कि हेमन्त सोरेन सरकार को चाहिए कि इन सब से उपर उठे, नहीं तो उन्हें दिक्कतें आयेगी, सत्ता बराबर उनका साथ नहीं देगा और न ही आज उनके इशारे पर नृत्य करनेवाले आइएएस/आइपीएस उनका साथ दे पायेंगे।