हेमन्त सोरेन की बल्ले-बल्ले, रांची से दिल्ली तक हेमन्त सोरेन के चर्चे ही चर्चे
झारखण्ड में कल संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव ने एक बात स्पष्ट कर दिया कि राज्य में राजनीतिक प्रबंधन तथा अपने कुनबे को पूर्णतः अनुशासित रखने और जनता के बीच एक बेहतर राजनीतिक विकल्प देने के विषय पर हेमन्त सोरेन फिलहाल सभी राजनीतिक दलों में बीस सिद्ध हुए हैं, क्योंकि जो स्थितियां थी, वहां से कांग्रेस पार्टी को जीत दिलाना सामान्य बात नहीं थी, इस बात को कांग्रेस के दिल्ली में बैठे दिग्गज नेताओं को भी आभास था, पर नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन पर उनका विश्वास और मिली सफलता ने झारखण्ड में उस विश्वास को जगा दिया कि हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में अगर लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ा जाता है तो भाजपा को राज्य की प्रत्येक सीटों पर चुनौती ही नहीं, बल्कि उसे बुरी तरह पराजित भी किया जा सकता है।
हेमन्त सोरेन ने बहुत तेजी से राज्य की जनता के बीच एक बेहतर राजनीतिक छवि बनाई है, पूर्व में जो झामुमो केवल संथाल परगना और जमशेदपुर के इलाके तक जो सिमटा था, आज झामुमो राज्य के सभी इलाकों में अपना प्रभुत्व जमा चुका है, साथ ही लोगों का झामुमो पर विश्वास भी बढ़ा है, पूर्व में जो लोग सोचा करते थे कि झामुमो, झारखण्ड में रहनेवाले अन्य लोगों के साथ बेहतर बर्ताव नहीं करती, अब उनके भी सोच में बदलाव आया है, यहीं कारण है कि समाज के सभी वर्गों में इस पार्टी ने अपनी पहचान बना ली है, यहीं कारण रहा है कि झामुमो पिछली विधानसभा चुनाव में अकेले लड़कर राष्ट्रीय दलों के उस भ्रम को तोड़ा जो झामुमो को कमतर आंका करते थे और अच्छी सफलता भी अर्जित कर ली।
कल के राज्यसभा चुनाव में जहां झारखण्ड विकास मोर्चा के एक विधायक प्रकाश राम ने क्रास वोटिंग कर झारखण्ड के सम्मान के साथ खेला, वहीं उसने सिद्ध कर दिया कि उसका अपने दल के प्रति प्रतिबद्धता कम और स्वयं के प्रति प्रतिबद्धता उसकी ज्यादा है, उसने यह क्रास वोटिंग क्यों की, उसके बारे में यहां ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि झारखण्ड का बच्चा-बच्चा जानता है कि उसके चुने हुए प्रतिनिधि किस मिट्टी के बने हैं, और वे कैसे अपनी जमीर को बेच देते हैं? यहीं हाल भाकपा माले के एक विधायक राज कुमार यादव का रहा, और बाकी इक्के-दुक्के विधायकों का क्या हाल होता है? वे सभी जानते है, ऐसे भी झारखण्ड में हमेशा से ये दाग लगता रहा है कि यहां वोटों की खरीद-फरोख्त कैसे होती है? पूर्व में ऐसे विधायकों की हुई स्टिंग आपरेशन इसकी कलई खोलकर रख देती हैं।
कुल मिलाकर देखा जाय तो राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के धीरज साहू की जीत, कांग्रेस की जीत नहीं मानी जा सकती, क्योंकि कांग्रेस को भी पता है कि सिर्फ 7 सीटों के आधार पर राज्यसभा का चुनाव नहीं जीता जाता, अगर 18 झामुमो विधायकों का उसे सपोर्ट नहीं मिलता। झामुमो का एक-एक वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट होना, बता दिया कि हेमन्त सोरेन की राजनीतिक शक्ति का फिलहाल यहां कोई विकल्प नहीं, अगर किसी ने भी हेमन्त सोरेन की राजनीतिक शक्ति पर अंगूलियां उठाई या उन्हें नजरदांज करने की कोशिश की, तो समझ लीजिये नुकसान उसी का है, झामुमो का नहीं।
कल के चुनाव ने यह भी बता दिया कि भाजपा कितना भी जोड़-तोड़ कर लें, अब उसका साथ उसे भगवान भी नहीं देने जा रहे, ऐसे भी कहा जाता है कि ईश्वर उसी की मदद करता है, जिनके अंदर पुरुषार्थ होता है, और फिलहाल पुरुषार्थ तो हेमन्त सोरेन ने दिखा दिया कि बिना सत्ता के हेमन्त सोरेन ने भाजपा की चुनौती को स्वीकार किया और उसे जमीन पर लाकर पटक दिया।