कभी ये तमाशा बिहार में देखने को मिलता था, अब ये गुजरात शिफ्ट हो गया
भाजपाइयों और कांग्रेसियों ने गुजरात की छीछालेदर कर दी है। जो पहले बिहार में देखा जाता था, अब गुजरात की राजनीति के रुपहले पर्दे पर बड़े जोर-शोर से दिखाया जा रहा है, जिसे पूरा विश्व देख रहा है। एक राज्यसभा की सीट के लिए कल भाजपाई और कांग्रेसी झगड़ रहे थे, ठीक उसी प्रकार जैसे एक सड़क पर रोटी देख कुत्ते आपस में झगड़ पड़ते है। ये हालत बना दी है, भाजपाइयों और कांग्रेसियों ने। एक राज्यसभा की सीट को पाने के लिए कांग्रेस को कितना तिकड़म करना पड़ा, कितने करोड़ रुपये खर्च करने पड़े, अपने विधायक के यहां सीबीआइ के छापे पड़वाने पड़े, आप सोच सकते है। दूसरी ओर भाजपा गुजरात की तीनों सीटों पर उसका एकाधिकार हो, इसके लिए उसे कितने पापड़ बेलने पड़े, इस पर भी विचार करिये और इतना पापड़े बेलने के बाद भी उसे दो ही सीट पर संतोष करना पड़ा, इससे भी बड़े शर्म की बात क्या हो सकती है, स्वयं भाजपा के लिए। इतनी मेहनत के बाद भी एक लड्डू जिसे पाने के लिए भाजपाई एड़ी चोटी एक किये हुए थे, वह लड्डू हाथ से निकल गया और अंततः कांग्रेस उस लड्डू को पाने में कामयाब हो गयी।
नया नाटक लिखिये, हम गुजरात में चुनाव लड़ रहे हैं?
याद करिये, एक समय था। जब बिहार में ऐसी घटना आम बात होती थी। एक बार तो राज्यसभा चुनाव में बिहार विधानसभा में लालू प्रसाद यादव ने ऐसी हरकत कर डाली थी कि वह समाचार पूरे देश के लिए फ्रंटलाइन बन गया था। एक समय तो बिहार बुथ लूट के लिए ही जाना जाता था। पटना और पूर्णिया लोकसभा का चुनाव एक साथ रद्द होना, उसका सुंदर उदाहरण है। बिहार की राजनीतिक दुर्दशा पर ही एक नाटक खुब लोकप्रिय है, जिसका नाम है – हम बिहार में चुनाव लड़ रहे है। अब गुजरात की इस दशा पर भी एक नाटक या फिल्म, देश की जनता का डिमांड होना चाहिए, शायद जो नाटककार है, या फिल्मकार है, सोच रहे होंगे, ऐसे भी अगर जिन्हें इस पर फिल्म बनानी हो तो हमसे संपर्क करें, हम डायलॉग के साथ स्क्रिप्ट भी तैयार कर देंगे।
जरा सोचिये, गुजरात में राज्यसभा की तीन सीट के लिए कल वोट डाले जाते है, आम तौर पर राज्यसभा की सीट सम्मानजनक मानी जाती है, और उस सीट का परिणाम रात के दो बजे घोषित होते है, क्या ये गिरती राजनीति का घोतक नहीं। चुनाव आयोग ने अंततः दो वोटों को रद्द किया और फिर कांग्रेस के अहमद पटेल जीते। वे अहमद पटेल जो कांग्रेस के एक धाकड़ नेता माने जाते है और जिन्हें अपनी जीत के लिए नाक रगड़ने पड़ गये, ऐसे नेता कांग्रेस को क्या मजबूती देंगे, जब वे अपने राज्य गुजरात में ही इस हालत में है, कांग्रेस को इस पर विचार करना चाहिए।
जरा देखिये भाजपाइयों और कांग्रेसियों की हरकत
दरअसल भाजपा चाहती ही नहीं थी कि अहमद पटेल चुनाव जीते, वो हाल ही में भाजपा में शामिल हुए बलवंत सिंह राजपूत को समर्थन दे रही थी। भाजपा हर हाल में बलवंत सिंह राजपूत को जीतते हुए देखना चाहती थी ताकि कांग्रेस के कद्दावर नेता अहमद पटेल की राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लगाया जा सके। चूंकि वोट पड़ने के दौरान कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि दो विधायक राघवजी पटेल और भोला भाई गोहिल ने वोट डालते समय भाजपा के एजेंट को दिखाया और उसकी वीडियो भी बनाई, जिस पर कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल ने आपत्ति दर्ज करायी, तथा इन दोनों के वोट रद्द करने की मांग की, क्योंकि इन्हीं दोनों ने भाजपा के पक्ष में क्रासिंग वोट की थी। कांग्रेस ने ऐसी हरकत पर हरियाणा का उदाहरण दिया था कि 2016 में ऐसी ही घटना घटी थी, जिसे उस समय वोट को रद्द कर दिया गया था, कांग्रेस के इस बात को चुनाव आयोग ने गंभीरता से लिया और अंततः वे दोनों वोट रद्द किये गये और अहमद पटेल चुनाव जीत गये, लेकिन ये सब जानते हुए भी भाजपा के लोगों ने जिस प्रकार से वोटों की काउंटिंग रोके रखी, वो शर्मनाक था। क्या सत्ता में रहने के बाद आपको हर प्रकार के गलत काम करने की छूट मिल गई यानी जो काम पूर्व में कांग्रेस करती थी, आपने भी उस परंपरा को हाथों-हाथ अपना लिया तो फिर कांग्रेस और भाजपा में क्या अंतर? ऐसे में गुजरात की जनता आनेवाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की जगह, कांग्रेस को ही सत्ता में क्यों न बैठा दें। जब भाजपावाले भी कांग्रेस के चरित्र को पूर्णतः अपना लें तो फिर गुजरात की जनता सत्ता परिवर्तन की बात क्यों न सोचे।
भाजपा को सबक सिखाने को जनता स्वयं विकल्प देने को तैयार
मैं देख रहा हूं कि केन्द्र में और अन्य राज्यों में भाजपा की बढ़ती ताकत ने, भाजपा के अंदर रह रहे राजनीतिज्ञों के अंदर सत्ता का घमंड पैदा कर दिया है, जो भाजपा के लिए ही अंततः घातक सिद्ध होगी। लोकतंत्र में किसी की नहीं चली है, जनता कब किसकी औकात बता दें, पता नहीं चलता। जो ये सोच रहे हैं कि कांग्रेस समाप्त हो गई, और अब हर जगह भाजपा ही भाजपा दीखेगी, वे मुगालते में है। त्रिपुरा में टीएमसी के निलंबित 6 विधायक भाजपा में आ गये, तो ये भाजपा की ताकत बढ़ने के संकेत नहीं हैं। केरल में एक सीट पर आप जीत गये, तो ये भी ताकत बढ़ने के संकेत नहीं हैं। आपको नहीं मालूम कि जिन राज्यों में आप सत्ता में है, उन राज्यों के भाजपा कार्यकर्ताओं में गजब का अंसतोष पनप रहा है, जनता अंदर से कुढ़ रही हैं, बढ़ती महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी आदि से जनता तबाह हो रही है। एक सामान्य जनता के हाथों से रोटी गायब हो रही है, कपड़े पर भी आफत है, मकान तो दूर की कौड़ी हो गई है, इसलिए आप जो ये मुगालते में है कि विपक्ष को आप धाराशायी कर, 2019 में सत्ता हथिया लेंगे तो गलत है, क्योंकि जनता अब स्वयं विपक्ष में ताकत भरकर, आपका विकल्प तैयार करने में लगी है, इसे आप गांठ बांध लीजिये।