अपनी बात

गिरिडीह के पत्रकारों के लिए आंसू और दैनिक भास्कर के विनय चतुर्वेदी की इज्जत उछालने में आनन्द, ये दोहरा चरित्र आपलोग कहां से ले आते हैं बाबूलाल मरांडी जी?

क्या बाबूलाल जी, गिरिडीह में जबरन टोल वसूली मामले में पत्रकार पीटा जाये तो पुलिस प्रशासन की विफलता का दुष्परिणाम और आपके पार्टी का सांसद दीपक प्रकाश, राजधानी रांची से निकलनेवाले दैनिक भास्कर के पत्रकार विनय चतुर्वेदी पर एक करोड़ रुपये सांसद निधि से मांगने का आरोप लगाते हुए एक्सटॉर्शन पत्रकारिता का चस्पा लगा दें तो उसका क्या?

इस मामले में आप मौन व्रत क्यों धारण कर लिये हैं? मतलब सरकार को नीचा दिखाना है तो मुंह खोलों चाहे मामला कुछ भी हो, लेकिन आपके लोगों पर कोई आंख दिखाये तो उसका आंख नोच लो। हैं न। गजबे की राजनीति आपलोग कर रहे हैं। क्या मिलता हैं ऐसी राजनीति से और क्या पा लेंगे आप लोग? आप जनता को इतना मूर्ख क्यों समझ ले रहे हैं?

बात गिरिडीह की हो या बात रांची की। आजकल की जनता, आजकल के राजनीतिज्ञों और पत्रकारों को खूब जानती है। वो यह भी जानती है कि कौन राजनीतिज्ञ किस मुद्दें पर और क्यों बोल रहा है? दरअसल, आपकी राजनीति गिरिडीह में फिट बैठ रही है। भले ही मामला कुछ भी हो, तो आप वहां मुखर है। लेकिन रांची मामले में आपके पार्टी का ही सब कुछ उखड़ जाने का मामला बन रहा है, तो आपने चुप्पी साध ली है।

आपकी पार्टी, आपके हवाले से कह रही हैं कि उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाये जाने के बावजूद जबरन टोल वसूली के खिलाफ आवाज उठाए जाने पर गिरिडीह में पत्रकार साथियों के साथ की गई मारपीट न केवल निंदनीय है, बल्कि यह पुलिस प्रशासन की विफलता का भी स्पष्ट प्रमाण है। पार्टी आगे यह भी कहती है कि जिला प्रशासन ने दबंगों को रंगदारी वसूलने की खुली छूट दे रखी हैं। जबकि आपके पार्टी के ही इसी पोस्ट पर एक कमेन्टस है।

प्रमोद कुमार सिंह लिखते हैं टोल वसूली के खिलाफ नहीं मरांडी जी, टोल वसूली में हिस्सा के लिए विवाद हुआ है। अब सच्चाई क्या है? भगवान जाने। लेकिन गिरिडीह और धनबाद में किस प्रकार की पत्रकारिता होती हैं और कैसे वसूली अभियान चलता है। वो आपसे छुपा थोड़े ही न हैं। आपको शायद याद ही होगा कि आपने ही एक बार धनबाद के रणधीर वर्मा चौक पर पत्रकारों के इसी प्रकार की हरकतों को लेकर क्लास ले ली थी। जिसकी उस वक्त ईमानदार पत्रकारों ने आपकी जमकर सराहना भी की थी।

दरअसल हर मामले में इतनी जल्दी उतावलापन ठीक नहीं। जांच होने दीजिये। जो गलत है। उसकी खुद-ब-खुद प्रशासन इलाज कर देगी। इसमें किन्तु-परन्तु कहां हैं? लेकिन अच्छा रहता कि आप विनय चतुर्वेदी मामले पर भी अपना मुंह खोलते और अपने प्रिय सांसद दीपक प्रकाश से पूछते कि आखिर उन्होंने जो आरोप विनय चतुर्वेदी पर लगाये हैं, उसमें सच्चाई क्या है? और जब सच्चाई नहीं हैं तो फिर उनके सोशल साइट पर काले बोर्ड में सफेद अक्षरों में विनय चतुर्वेदी पर कीचड़ उछालता मैटर क्यों दिखाई पड़ रहा हैं?

आपलोग तो इस मामले में ऐसा उछल रहे हैं, जैसे लगता है कि आपलोगों ने कभी पत्रकारों पर जुल्म ही नहीं किया। जबकि सच्चाई यही है कि आपलोगों ने जितना पत्रकारों पर जुल्म किया हैं, उतना शायद ही कोई करेगा। नहीं तो, जरा पूछिये न ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास से, उनके मुख्यमंत्रित्व काल में किन-किन पत्रकारों पर नामजद प्राथमिकी दर्ज करवाकर उसे जेल में डलवाने के लिए कौन-कौन सी षडयंत्र नहीं की गई।

यहां तक की सीएमओ से विभिन्न अखबारों में फोन जाती थी कि फलां पत्रकार के खिलाफ फलां थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। उस खबर को नून-मिर्च लगाकर विस्तार से छापिये और उनके इशारे पर दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण व प्रभात खबर ने नून-तेल मिर्चाई लगाकर छापा। लेकिन हिन्दुस्तान ने ऐसा नहीं किया। वो खबर के साथ पत्रकारिता की मर्यादा भी रखी। वो सारे अखबार के कतरन मेरे पास सुरक्षित है। प्रेस कांफ्रेस करेंगे। ले आऊं उन कतरनों को, आपके पास। आपलोगों ने तो उक्त पत्रकार पर इतना जूल्म किया कि उस पत्रकार से रोजगार के अवसर तक छीन लिये।

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