जदयू सांसद हरिवंश ही बताएं, कि ऐसे सवालों से आम जनता को क्या लाभ?
आज दैनिक भास्कर में काम कर रहे बहुत सारे संवाददाताओं एवं छायाकारों का समूह एक अखबार की कटिंग को फेसबुक में डालकर गर्व महसूस कर रहा है। समाचार यह हैं कि सरकार ने संसद में कहा दैनिक भास्कर देश का नंबर -1 अखबार है। सरकार ने ये बातें इसलिए कही कि राज्यसभा में जदयू के टिकट पर चुनाव जीते, राज्यसभा सांसद, प्रभात खबर के पूर्व प्रधान संपादक एवं नीतीश प्रिय हरिवंश ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से देश में सर्वाधिक बिकनेवाले टॉप 20 अखबारों और उनकी प्रसार संख्या का ब्यौरा मांगा था।
जवाब में सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्द्धन राठौड़ ने बताया कि 47,32,202 प्रतिदिन के सर्कुलेशन के साथ दैनिक भास्कर नंबर वन अखबार है। दैनिक जागरण दूसरे नंबर पर (43,98,475) और टाइम्स ऑफ इंडिया (42,68,703) तीसरे नंबर पर है। अखबारों के सर्कुलेशन की यह संख्या आरएनआई के 31 मार्च 2017 तक के आंकड़े के मुताबिक है।
नीतीश के अतिप्रिय, जदयू सांसद हरिवंश ने इन अखबारों से विज्ञापनों का ब्यौरा भी पूछा था, पर मंत्री ने कहा कि सरकार अखबारों में छपनेवाले विज्ञापनों का ब्यौरा नहीं रखती। टॉप 20 अखबारों में दस अखबार हिंदी के हैं। और अब अपनी बात, सच्चाई यह भी है कि जो हिन्दी अखबार, स्वयं को टॉप मानते हैं, वे अखबार खुद भारत के ही सर्वोच्च सरकारी संस्थाओं में दया के पात्र हैं यानी पढ़े नहीं जाते और इनको कोई संज्ञान भी नहीं लेता, जबकि अंग्रेजी अखबारों में एक सिंगल कॉलम में भी समाचार छप जाये तो उसका संज्ञान ऐसा लिया जाता है, जैसे की मानों कि साक्षात् ईश्वर ने उस समाचार को अंकित कर दिया हो।
अब सवाल उठता है कि हरिवंश के इस सवाल से आम जनता को क्या लाभ? कोई अखबार एक नंबर पर हो या दो नंबर पर, आम जनता को इससे क्या लेना देना? किसी अखबार को कितना विज्ञापन मिलता है, या नहीं मिलता है, उससे भी आम जनता को क्या लेना देना? और अगर आपको अखबार में ही दिलचस्पी हैं तो वहां काम करनेवाले के लिए, निचले दर्जे के संवाददाताओं-छायाकारों के जीवन सुधारने से संबंधित सवाल क्यों नहीं पूछा, कि देश के सर्वोच्च अग्रणी अखबारों में कार्यरत संवाददाताओं-छायाकारों को, वे सर्वोच्च अग्रणी अखबारें कौन-कौन सी सुविधाएं दे रही हैं? क्या केन्द्र द्वारा तय की गई विभिन्न आयोगों के मापदंडों के अनुसार वेतन मिल रहे हैं? और अगर नहीं मिल रहे तो क्यों? केन्द्र सरकार, उन्हें उन मापदंडों के अनुसार वेतन दिलवाने के लिए क्या प्रयास कर रही हैं?
सच्चाई यह है कि ये लोग बहुत ही चालाक लोग हैं, इस प्रकार का सवाल पूछकर ये खुद को आनेवाले समय में कटघरे में रखने का प्रयास नहीं करते, ये चालाक लोग, अपने तरीके से पत्रकारिता और अपने तरीके से राजनीति भी करते हैं, ताकि दोनों क्षेत्रों में अपनी धाक साबित करते हुए, अपने जीवन को सुखमय बनाकर, दुनिया से चल दें।
आपको याद होगा कि राज्यसभा में ही कभी जदयू सांसद रहे शरद यादव ने अखबारों-चैनलों के मालिकों के धुएं छुड़ा दिये थे, उनकी चालाकी की बैंड बजा दी थी, पर ये हरिवंश महाशय आज तक कभी भी, अखबारों-चैनलों में रह रहे मठाधीशों के बारे में कुछ नहीं कहा, ये अपने ढंग से राजनीति करते है, क्योंकि नीतीश प्रिय जो हैं, कमाल है कि उस वक्त शरद यादव के उस धुआंधार भाषण को किसी अखबार व चैनल ने जगह नहीं दी थी, तो इसका मतलब क्या कि शरद यादव का वो भाषण प्रभावहीन था।
नहीं, कोई भी भाषण जो जनहित से जुड़ा है, वह प्रभावहीन नहीं होता, उसका प्रभाव समय आने पर जरुर पड़ता हैं, पर जो चालाक लोग हैं, उनका प्रभाव, धीरे-धीरे स्वतः समाप्त होने लगता है, उस ढिबरी की तरह, जिसमें जैसे-जैसे किरासन तेल समाप्त होता जाता है, उसका पलीता भी अपना प्रभाव खो देता हैं, पता नहीं इस नीतीश प्रिय हरिवंश को यह कब समझ में आयेगा कि कोई उसकी चालाकी को बड़ी सूक्ष्मता से देख रहा हैं, उससे कोई बच नहीं सकता, अगर बचने की कोशिश भी करेगा तो वह अपने तरीके से उस चालाकी का दंड अवश्य देगा, जिसका नाम ईश्वर हैं, वहां कोई नीतीश बचाने नहीं आयेंगे और न वे कथित मालिक, धन्ना सेठ जो अनैतिक रुप से धन कमाते हैं, और रही बात दैनिक भास्कर के एक नंबर की, तो वह इनके कल्पेश याज्ञनिक के मौत ने, सब कुछ क्लियर कर दिया कि ये कितने नंबर वन हैं?