थैंक यू कांग्रेस, आपने अर्द्धसैनिक बलों के दर्द को संसद में रख, केन्द्र सरकार को आइना दिखाया
जब देश खतरे में पड़ जाये, चाहे वह अंदर से हो या बाहर से, तो सीमा सुरक्षा बल, सीआरपीएफ, सीआइएसएफ, इंडो–तिब्बत सीमा पुलिस, एनएसजी, सशस्त्र सीमा बल आदि सेन्ट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स, भारतीय सेना के साथ मिलकर अपने प्राणोत्सर्ग कर दें और जब उन्हें सुविधा देने की बात हो तो सारी सुविधाएं भारतीय सेना के जवानों और अधिकारियों और बचा तो संसद में बैठनेवाले नेताओं को उपलब्ध करा दिये जाये और सेन्ट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स के जवानों और अधिकारियों तथा इनके परिवारों को भगवान भरोसे सदा के लिए मरने को छोड़ दिया जाय।
जब चुनाव आये तो सेन्ट्रल आर्म्ड पुलिस बल के जवानों को शहीद बताकर, उनकी कुर्बानी को वोट बैंक में बदलने के लिए, नये–नये तरकीब ढूंढे जाये, जनता को बताया जाये कि उनकी सरकार ने शहीदों की कुर्बानी का बदला ले लिया, पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान को औकात बता दी, जबकि सच्चाई क्या है? सभी जानते है, पर जब इन शहीद जवानों और उनके परिवारों को सुविधा देने की बात आये तो केन्द्र सरकार और उनके मंत्रियों को नानी–दादी याद आने लगती है, जबकि अपनी पेंशन और वेतन की बात हो, तो जरा देखिये इनके नखरे, इतनी आसानी से लोकसभा और राज्यसभा में अपनी सुविधाओं के लिए बिल पास करवा लेते है, जिसकी जितनी निन्दा की जाय कम है।
भारत की जनता को क्या मालूम, कि जो उन्हें केन्द्र सरकार द्वारा बताया जाता है, उसमें कितना झूठ और कितना सच है? सच्चाई यह है कि भारतीय सेना के जवानों और अधिकारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम में रखा गया है, संसद में बैठनेवाले सभी नेताओं ने खुद को ओल्ड पेंशन स्कीम में रखा है, पर केन्द्रीय आर्म्ड पुलिस फोर्स से संबंधित सभी बलों को न्यू पेंशन स्कीम में रखकर, उनके बचे–खुचे सपनों में ही आग लगा दी गई, और ये शुभ काम भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों हुआ था।
जब उन्होंने न्यू पेंशन स्कीम 1 जनवरी 2004 से लागू किया, शायद खुद को सहृदय माननेवाले अटल बिहारी वाजपेयी को लगा होगा कि इन जवानों को मरने से देश को क्या मतलब, ये तो मरने के लिए ही पैदा होते हैं, जबकि नेताओं का जीवन देश के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है, इसलिए खुद को तथा खुद जैसे आनेवाले नेताओं के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम की व्यवस्था कर ली।
देश की जनता को जानना चाहिए कि भारतीय सेना के जवानों और अधिकारियों की तरह जब आप घर में सुख–चैन से सो रहे होते हैं, तब आपके ही घर का कोई जवान चीन, बांगलादेश, पाकिस्तान, भूटान, म्यामांर की सीमाओं पर विपरीत परिस्थितियों में देश की सुरक्षा में लगा होता है, जिसके दौरान कभी उसकी प्रकृति से मुठभेड़ हो जाती है तो कभी वह दुश्मनों की गोली का शिकार हो जाता है, जिसे कहने को तो नेता अपनी सुविधानुसार शहीद बता देते हैं, पर सच्चाई यह है कि इन अर्द्धसैनिक बलों को शहीद तक का दर्जा नहीं मिला है। अरे हद तो यह हो गई है कि इस केन्द्र सरकार ने सेवा के दौरान इन घायलों एवं दिव्यांग जवानों की पेंशन पर टैक्स भी लगा रखी है, जिसका मामला कांग्रेस पार्टी के संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कल संसद में उठाया।
आश्चर्य है कि अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों से संबंधित इस खबर को देश के किसी भी अखबार या चैनलों ने प्राथमिकता नहीं दी है, क्यों नहीं दी, इसे बताने की जरुरत नहीं है, भारत की जनता लगता है कि अब जानने लगी है। कमाल देखिये कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने पेंशन पर टैक्स लगाने के हाल में जारी सीडीबीटी के सर्कुलर का ही मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों को शहीद का दर्जा देने की भी मांग की। इस दौरान कांग्रेसी नेताओं ने आसन के समक्ष नारे भी लगाये, हंगामा भी किया। अधीर रंजन चौधरी ने ठीक ही कहा कि सरकार सुरक्षा बलों के नाम पर वोट मांग कर सत्ता में आयी, लेकिन ड्यूटी के दौरान दिव्यांग हुए सैनिकों की पेंशन पर टैक्स लगा रही है, इससे सरकार का मंशा पता चलता है।
जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसका जवाब देने के लिए उठे, तो ये हसुंआ की ब्याह में खुरपी का गीत गाने लगे और अंत में कह दिया कि अधीर रंजन चौधरी ने जो प्रश्न उठाया है, उसके बारे में जानकारी एकत्र कर वह सदन को अवगत करायेंगे। सच्चाई यह है कि अर्द्ध सैनिक बलों के जवान देश के अंदर और देश के बाहर के खतरों से लड़ते हुए बड़ी संख्या में प्राणोत्सर्ग कर रहे हैं, पर उन्हें जो सेना के जवानों और अधिकारियों को जिस प्रकार की कैंटीन सुविधाएं, मेडिकल सुविधाएं, पेंशन सुविधाएं, पारिवारिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, वह अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों को नहीं प्रदान की गई है, जबकि इन नेताओं की सुरक्षा में भी इन्हीं जवानों को लगाया जाता है, पर ये नेता जो हैं न, वे महान हैं, जिन्होंने उनकी सारी खुशियां ही छीन ली हैं, हालांकि ये अर्द्धसैनिक बलों के जवान अपने कर्तव्य परायणता में किसी से कम नहीं, वे जानते है कि उनके उपर अत्याचार हो रहा हैं, पर वे मुंह नहीं खोलते।
भारतीय सेना के जवानों और अधिकारियों को ट्रेन में भी सुविधाएं हैं, पर अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों को वह भी नहीं, इन्हें छुट्टियां मिलने में भी दिक्कत है, और छुट्टियां मिल भी गई तो वे अपने गंतव्य स्थान पर सुरक्षित पहुंच भी जायेंगे, उनकी कोई व्यवस्था नहीं, यानी मर गये तो अपनी बला से, जी गये तो अपनी बला से, पर इन सत्ताधीशों से पूछिये, भाजपा के नेताओं से पूछिये कि आपने विगत पांच सालों में क्या किया? और आनेवाले पांच साल में भी आप क्या कर लोगे? क्योंकि आप किसलिए सत्ता में आते हो, वो सभी लोग जानते है, थैंक यू कांग्रेस कम से कम आपने संसद में इस मुद्दे को उठाया, करना तो सरकार को हैं, और सरकार अब तक क्या की है, सभी को पता है?
9 अप्रैल 2017 को बड़ी तामझाम के साथ फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने भारत के वीर नामक एक संगठन तैयार करने का पहल किया। जिसे तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह को प्रस्तावित किया गया, ताकि अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों को सुविधा मिले, पर उसकी वर्तमान दशा क्या है? पता लगा लीजिये, किसी ने आगे रुचि ही नहीं ली, अरे जब जिन्हें रुचि लेना है, उन्हें अपने बेटे–बेटियों से फुर्सत नहीं, वे देश के जवानों के लिए क्या सोचेंगे?
याद रखियेगा, कभी अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों को देखियेगा, इसमें कोई आइएएस/आइपीएस या नेता का बेटा या बेटियां नहीं होती, इनमें ज्यादातर निर्धन–विपन्न परिवारों के बच्चे ही दीखेंगे, जो इन नेताओं की सुरक्षा और देश के लिए कुर्बान हो जाते है, पर सुविधा के नाम पर, इन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होता, इनके मरने के बाद, इनके माता–पिता, इनकी पत्नी, बच्चे दर–दर की ठोकरे खाते हैं, पर कोई इनकी सुनता नहीं, उदाहरण देखना है तो झारखण्ड के गिरिडीह में जाकर देख आइये –
गिरिडीह में है पालगंज, जहां के रहनेवाले थे सीताराम उपाध्याय, सीमा सुरक्षा बल में कार्यरत इस जवान ने कश्मीर के आरएसपुरा सेक्टर में 18 मई 2018 को देश की सुरक्षा करते हुए शहीद हो गये, जब उनका शव झारखण्ड आया था तो सरकार और यहां की जनता ने खूब गला फांड़–फांड़कर नारा लगाई थी, हिन्दुस्तान जिंदाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद, सीताराम उपाध्याय अमर रहे, जब तक सुरज चांद रहेगा, शहीद सीता राम उपाध्याय तेरा नाम रहेगा, और आज क्या स्थिति है, एक साल के अंदर ही शहीद सीताराम उपाध्याय को सरकार और यहां की जनता भूल गई।
गिरिडीह जाकर देखिये, सीताराम उपाध्याय के अंधे पिता वृजनन्दन उपाध्याय की क्या हालत है? उसकी लाचार मां की क्या हालत है? सीताराम उपाध्याय की पत्नी रेशमी उपाध्याय अपने दो छोटे–छोटे बच्चों को लेकर इधर से उधर भटक रही हैं, पर जिस सरकार ने कहा था कि उसे सरकारी नौकरी दी जायेगी, उसने भी अपना वादा नहीं निभाया, जो मरणोपरांत उस शहीद को कुछ पैसे मिले थे, वो कब के खत्म हो चुके, अरे छोड़िये जनाब, इस परिवार को तो पेंशन तक नहीं मिलती, ऐसे में केन्द्र सरकार बताये कि वह कौन से मुंह से इन शहीदों का नाम लेती है, उसे तो शर्म से डूब कर मर जाना चाहिए।
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में जम्मू श्रीनगर राजमार्ग पर सीआरपीएफ के वाहनों के काफिलों पर आंतकियों ने आत्मघाती हमला कर 40 सीआरपीएफ के जवानों की जाने ले ली थी, जाकर उन शहीद हुए जवानों के परिवारों से पूछिये कि जिस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान बार–बार शहीद शब्द का इस्तेमाल किया, क्या उनके वीरगति सदस्यों को शहीद का दर्जा मिला है, क्या उन्हें ओल्ड पेंशन स्कीम की तहत पेंशन मिल रहा हैं, या जिस राज्य सरकार ने और जनता ने जो खूब उस समय उनके वीरगति प्राप्त सदस्य के समर्थन में नारे लगाये थे, क्या अब उनकी सुध ले रहे हैं और जब ये सब उन्हें नहीं मिल रहा तो काहे की सरकार, कौन सी सरकार, काहे की इज्जत?
लगभग ढाई साल पहले सीआरपीएफ कमांडेट चेतन चीता जिन्होंने जम्मू–कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेने के क्रम में 9 गोलियां खाई, जो डेढ़ महीने कौमा में रहे, जो मौत को मात देते हुए, फिर अपने ड्यूटी पर लौट आये, जरा गृह मंत्रालय बताएं, उन्हें भी क्या सेना की तरह वह सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं, जिसके वे हकदार है, कि केवल स्वतंत्रता दिवस के दिन कीर्ति चक्र दे देने से उन्हें वह सब कुछ प्राप्त हो गया, जिसके वे हकदार है। केन्द्र सरकार को थोड़ा सा भी शर्म हो तो चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए, नहीं तो उन अर्द्धसैनिक बलों के जवानों का जो हक हैं, उसे प्रदान करें, नहीं तो पूरा देश जान रहा है कि आप देशभक्त है या स्वपरिवार भक्त?