झारखण्ड में भाजपा के लिए माहौल ठीक नहीं, नेताओं के चेहरे पर उड़ रही हवाइयां, कार्यकर्ताओं में भी उत्साह की कमी
लगातार भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में मीटिंग का दौर चल रहा हैं, कभी प्रदेश संगठन धर्मपाल तो कभी प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा बैठक ले रहे हैं, और बैठक में वे लोग इनको घेर कर बैठ रहे हैं, जो भाजपा के लिए एक वोटर तक तैयार नहीं कर सकते, जो एक कार्यकर्ता तक को तैयार नहीं कर सकते। आश्चर्य हैं खुब गप्पे हो रही हैं, मैदान मार लेने की बात की जा रही हैं, हवाई किले बनाये जा रहे हैं, पर सच्चाई कुछ दुसरा ही हैं, इस बार भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को भी पता लग गया है कि झारखण्ड में स्थितियां पहले वाली नहीं रही।
स्थिति यह है कि सर्वप्रथम भाजपा में, खासकर राज्य में कोई ऐसा नेता ही नहीं है, जो जनता को अपनी ओर मोड़ सकें। अकेले नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने पिछले दिनों झारखण्ड संघर्ष यात्रा करके दिखा दिया, कि आम जनता क्या चाहती है और आम जनता फिलहाल किस ओर हैं। नेता प्रतिपक्ष और अन्य विपक्षी दलों की सभाओं में उमड़ती भीड़ भाजपा की अलोकप्रियता तथा विपक्ष की मजबूत होती स्थिति का उदाहरण प्रकट कर रही थी।
अगर महागठबंधन में सीटों को लेकर तकरार समाप्त हो जाती है, तथा महागठबंधन एकजुट होकर लड़ गया तो भाजपा की स्थिति पूरे राज्य में हास्यास्पद हो जायेगी, विपक्ष चाहता भी है कि राज्य की सभी 14 सीटों पर उसका कब्जा हो, इसलिए वह इस बार कोई रिस्क लेना नहीं चाहता।
झाविमो, राजद, कांग्रेस, झामुमो और आज वामदलों ने बैठक कर क्लियर कर दिया कि उनका पहला और अंतिम लक्ष्य भाजपा को शिकस्त देना हैं, और उसके बदले में कौन जीत रहा है, यह उनकी दूसरी प्राथमिकता हैं, वे कभी नहीं चाहेंगे कि झारखण्ड में किसी भी सीट पर भाजपा जीते।
इधर राजनीतिक पंडितों की मानें तो उनका कहना है कि भाजपा की हार का मूल कारण, राज्य के सीएम रघुवर की अलोकप्रिय कार्यशैली, उनके द्वारा किये गये कुछ ऐसे कार्य जो राज्य की जनता की नजरों में उन्हें विलेन करार दे दिया है। विस्थापन, मोमेंटम झारखण्ड में हाथी उड़ाना, कौशल विकास, भूमि अधिग्रहण विधेयक तथा राज्य में लाखों लोगों को नौकरी के नाम पर किये गये प्रोपेगंडा ने भाजपा की लोकप्रियता को क्षीण किया है, जिसकी जानकारी होने के बावजूद भाजपा के शीर्षस्थ नेता ने सीएम को बचाने की कोशिश की।
राजनीतिक पंडित यह भी कहते है कि जिस राज्य के सरकार में शामिल कैबिनेट मंत्री यह बयान दे कि उन्हें कैबिनेट की मीटिंग में शामिल होने में शर्म आती हैं, और जो कई बार सरकार को भ्रष्टाचार के मामले में घेर चुके हैं, वहां ये सब जानकर भी यहां की जनता भाजपा को वोट क्यों करेगी?
राजनीतिक पंडितों की मानें तो यहां मोदी का करिश्मा ही भाजपा को एक–दो सीट दिला पायें, नहीं तो जो स्थिति राज्य के सीएम ने भाजपा की यहां कर दी, ऐसे हालत में लोकसभा की सीटों को तो भूल जाइये, यहां विधानसभा में विपक्ष का नेता बनने के लिए भी भाजपा को पर्याप्त सीटे मिल पायेगी या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि जनता की नाराजगी, यहां चरम पर हैं।
राजनीतिक पंडितों की माने तो वे यह भी कहते है कि भाजपा ने इस बार आजसू को गिरिडीह की सीटे थमा दी, दरअसल यह करके भाजपा ने अपने अंदर हो रही धमाचौकड़ी को शांत करने का प्रयास किया, पर गिरिडीह के वर्तमान सांसद रवीन्द्र पांडेय के आ रहे बयान, भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं हैं, गिरिडीह में रवीन्द्र पांडेय के टिकट काटने का असर पूरे झारखण्ड में भाजपा के मतदाताओं पर पड़ेगा, जिसका सर्वाधिक असर पलामू व गढ़वा में पड़ना तय है।
राजनीतिक पंडितों की माने तो वे यह भी कह रहे है कि इधर कई प्रशासनिक अधिकारियों से जुड़े लोग भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जो भाजपा के लिए अंतिम कील ही साबित होगा, क्योंकि जिन्हें टिकट देने या मिलने की बात हो रही है, उस पर सत्तापक्ष और विपक्ष के कई लोगों ने सदन में बवाल भी काटा था।
राजनीतिक पंडितों ने यह भी कहा है कि इन दिनों भाजपा में हार का मूल कारण, भाजपा में बढ़ती जातीयता भी हैं, जो इन दिनों रघुवर दास के सत्ता संभालते ही पैदा हुआ, जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना ही होगा, चाहे भाजपा कितना भी मशक्कत क्यों न कर लें।