संकल्प यात्रा पर निकलनेवाले भाजपाइयों की रांची में इतनी भी हिम्मत नहीं कि अपने दिवंगत नेता कैलाशपति मिश्र की प्रतिमा का अनावरण कर या करा दें
याद करिये आज से करीब लगभग पांच साल पहले जब झारखण्ड में भाजपा का शासन हुआ करता था। उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पुराने विधानसभा के पहले राजभवन-बिरसा चौक जानेवाले मार्ग पर स्व. कैलाशपति मिश्र चौक बनवाया था। उस चौक में खुद अपने हाथों से स्व. कैलाशपति मिश्र की प्रतिमा स्थापित करने एवं चौक के सौन्दर्यीकरण के कार्य का शिलान्यास भी किया था। इस शिलान्यास कार्यक्रम में तत्कालीन नगर विकास मंत्री सी पी सिंह, रांची नगर निगम की तत्कालीन मेयर आशा लकड़ा, डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय भी मौजूद थे। यह शिलापट्ट रांची नगर निगम की ओर से लगाया गया था।
लेकिन आश्चर्य इस बात की है कि पांच साल होने को आये, वहां प्लास्टिक से ढकी हुई कैलाशपति मिश्र की आदमकद प्रतिमा आज भी विद्यमान है, पर किसी भाजपाई की हिम्मत नहीं हो रही कि वहां जाकर वे अपनी पार्टी के दिवंगत प्रिय नेता, भीष्म पितामह कहे जानेवाले नेता, गुजरात व राजस्थान राज्यों के राज्यपाल तक रह चुके नेता की प्रतिमा का अनावरण कर दें।
कही ऐसा तो नहीं कि इसी साल अप्रैल महीने में इस स्थान से कैलाशपति मिश्र की प्रतिमा को हटाने की मांग को लेकर एक दो संगठनों ने आंदोलन किया था, धरने दिये थे, जिससे भय खाकर भाजपाई इस प्रतिमा को अनावरण करने से भय खा रहे हैं, नहीं तो भाजपा के एक-दो नेताओं की प्रतिमा तो रांची के प्रमुख स्थानों पर लगी हुई हैं, वो आज भी शान से खड़ी हैं, किसी को कोई दिक्कत भी नहीं। नहीं तो जाकर एसएसपी आवास से पूर्व की ओर जानेवाली सड़क पर पं. दीन दयाल उपाध्याय की प्रतिमा, नये विधानसभा में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा देखी जा सकती है। फिर, कैलाशपति मिश्र की प्रतिमा के साथ ऐसा क्यों?
आश्चर्य इस बात की है कि जो कल मुख्यमंत्री थे मतलब रघुवर दास, जो आज भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है, जिनका आवास इसी चौक से करीब एक-दो किलोमीटर की दूरी पर है। जहां ये प्रतिमा है, उस हटिया विधानसभा के जनप्रतिनिधि नवीन जायसवाल भी भाजपाई है। रांची विधानसभा सीट पर भी भाजपा का कब्जा है। रांची लोकसभा सीट पर भी भाजपा का ही कब्जा है। इसके पहले रांची नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर भी भाजपाई ही थे। मतलब भाजपा के प्रभुत्व वाली इस इलाके में भाजपाइयों की ये हाल है कि ये अपने नेता की एक प्रतिमा भी अब नहीं लगा सकते।
इस प्रतिमा का विरोध करनेवाले नेताओं का समूह तो कहता है कि भाजपाइयों को चाहिए कि वे अपने नेता की प्रतिमा ससम्मान कही ओर ले जाये, यहां तो लगने नहीं देंगे, यहां जब लगेगी तो झारखण्ड आंदोलनकारी की ही प्रतिमा लगेंगी और कोई जबर्दस्ती करना चाहेगा तो उसे विरोध का सामना भी करना पड़ेगा। राजनीतिक पंडितों की मानें तो फिलहाल कैलाशपति मिश्र के प्रतिमा के अनावरण के कार्यक्रम को भाजपाइयों ने खुद ही ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
राजनीतिक पंडित कहते है कि फिलहाल राज्य में भाजपा विरोधी दलों का शासन है। इस शासन के रहते तो किसी भाजपा नेता का प्रतिमा का अनावरण, वह भी प्रमुख स्थानों पर होने से रहा। कैलाशपति मिश्र, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे प्रभुत्ववाले राष्ट्रीय नेता भी नहीं, जिनके प्रति सामान्य जनता का झुकाव हो, वे एक पार्टी से जुड़े हुए थे, पार्टी के प्रति समर्पित थे, ये उस पार्टी का मामला है।
यही कारण है कि भाजपा और उनके नेताओं का समूह भी फिलहाल इस पूरे प्रकरण से दूरी बना रही हैं। शायद वह सोच रही होगी कि आनेवाले समय में जब कभी भाजपा का शासन आया तो फिर उन्हें अपनी मनमर्जी करने से कौन रोक पायेगा? और अगर नहीं आया तो फिर कितने साल लगेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि विरोध करनेवाले भी कोई सामान्य लोग नहीं, वो भाजपा को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।