खिसकते जनाधार को बचाने में जुटी भाजपा, पेट्रोल-डीजल के दामों में पांच रुपये की कटौती
पूरे देश में भाजपा का जनाधार खिसक रहा है, ये कोई अतिश्योक्ति नहीं, बल्कि इस बात को संघ भी समझ रहा हैं और संघ की राजनीतिक इकाई भाजपा भी समझ रही है, लगातार पेट्रोल और डीजल के दामों में हो रही बढ़ोत्तरी से आम जनता त्रस्त थी, बड़े-बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे गांवों तक टैक्सियों और बसों के किराये में अप्रत्याशित वृद्धि हो चुकी थी और ये वृद्धि आनेवाले समय में और बढ़ने का संकेत दे रही थी।
मैं खुद पटना से दानापुर जाने के लिए जो पन्द्रह रुपये टेम्पू चालकों को किराया देता था, इस बार मुझे तीन रुपये ज्यादा यानी अठारह रुपये देने पड़ें, अब जरा सोच लीजिये, जिस व्यक्ति को दानापुर से पटना रोज आना-जाना रहेगा, उसे तो प्रतिदिन छः रुपये अधिक देने पड़ने लगे, अब इनके पांच रुपये पेट्रोलियम पदार्थों में कटौती होने के बाद भी, वे बढ़े किराये खत्म होनेवाले नहीं है, ऐसे में सामान्य जनता भाजपा या मोदी की जय-जय क्यों करें?
आज केन्द्र की भाजपा सरकार ने पेट्रोल व डीजल में ढाई रुपये की कटौती की और भाजपा शासित राज्यों को भी करों में कमी करने तथा ढाई रुपये तक की छूट करने को कहा, नतीजा यह निकला, कि भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इशारों पर ढाई रुपये की कटौती कर दी, और लीजिये पेट्रोल और डीजल पांच रुपये सस्ता हो गया।
अब पेट्रोल और डीजल के पांच रुपये सस्ता होने से क्या भाजपा की लोकप्रियता में वृद्धि हो जायेगी? ऐसा हमें तो नहीं लगता और न ही राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में साल के अंत में होनेवाले चुनाव के दौरान भाजपा की सरकार ही आनेवाली है, क्योंकि भाजपा की लोकप्रियता में जो ह्रास होना था, वह इस कदर नीचे जा चुका है, कि उसे फिर लोकप्रियता के शिखर पर लाना, इतना आसान नहीं।
इधर जब से रुपये का अवमूल्यन शुरु हुआ और सेसेंक्स लगातार लूढ़कने लगा है, तब से भाजपाइयों को भी महसूस होने लगा है कि देश के आर्थिक हालात ठीक नहीं, ऐसे में केवल पेट्रोल-डीजल के मूल्यों में पांच रुपये की कटौती कर देने से देश के हालात सुधरनेवाले नहीं, केन्द्र सरकार और राज्य सरकार जो फिजूलखर्ची शुरु की है, उस पर भी रोक लगाना होगा तथा स्वयं के लिए जो पुरानी पेंशन योजना लागू रखी है, उसे भी बंद करें क्योंकि आप जनसेवक है, जनता के नौकर हैं न कि राजा, ये जो आप के अंदर नई सोच उभरी है कि हम राजा है, और जनता की औकात आपकी नजर में दो कौड़ी से ज्यादा कुछ नहीं।
इस सोच को बदलिये, अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा खत्म की गई पुरानी पेंशन योजना से खुद को भी जोड़िये, यानी जो अपराध अटल बिहारी वाजपेयी ने नेताओं के लिए पुरानी पेंशन लागू रहेगी योजना को नियमित करके रखा, उस अपराध पर भी अंकुश लगाएं, ताकि लोगों को लगे कि आपकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं, नहीं तो देश की जनता आपके चाल और चरित्र दोनों को देख रही है और वो अपना मूड भी बना चुकी है, यानी समझ लीजिये आप कितना भी अरबों रुपये चुनाव में फूंक दीजिये, इस बार जनता का मूड नहीं बदलनेवाला, मतलब समझ गये या फिर समझाऊँ।