ओडिशा के राज्यपाल पद से रघुवर दास को हटाकर केन्द्र ने अपनी गलती सुधारी, राज्यपाल पद पर रहकर वहां की भाजपा सरकार और विपक्ष ही नहीं, बल्कि जनता के नजरों से भी कब के उतर चुके थे रघुवर
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा विरंचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड की एक बहुत ही सुंदर चौपाई है – जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।। अर्थात् जिस पर्वत पर हनुमान जी पैर रखकर चले (जिस पर उछले), वह तुरंत ही पाताल में धंस गया। यह चौपाई झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व ओडिशा के पूर्व राज्यपाल रह चुके रघुवर दास पर पूर्णतः फिट बैठती है।
सच्चाई यह है कि रघुवर दास ने ओडिशा के राजभवन को झारखण्ड की राजनीति का अखाड़ा बना दिया था। जिसको देखकर, वहां के राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने समय-समय पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। जिस प्रतिक्रिया पर वहां की खुद भाजपा सरकार भी स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। बताया जाता है कि इसकी शिकायत स्वयं ओडिशा की भाजपा सरकार, केन्द्र सरकार से की थी।
इन्हें (रघुवर दास को) ओडिशा के राजभवन से मुक्त करने की कई बार प्रार्थना की थी। जिसको देखते हुए केन्द्र सरकार ने मन बना लिया था और वो कुछ दिन पहले पूरी भी हो गई, जब उन्हें अन्य राज्यों के राज्यपालों की तरह ओडिशा के राज्यपाल से हटा दिया गया। दूसरे राज्यपालों को तो अन्य राज्यों में शरण भी मिली और इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
इधर इस पूरे प्रकरण पर रघुवर दास के समर्थकों/शोषकों/कनफूंकवों/हाथी उड़ानेवालों और इनके अखबारों व मीडिया में रहनेवाले कद्रदानों ने एक नया शिगूफा छोड़ दिया कि रघुवर दास को ओडिशा के राज्यपाल से इसलिए हटाया गया है कि उन्हें झारखण्ड में नई राजनीतिक जिम्मेदारी मिलनी है। कुछ ने कहा कि वे राजनीतिक रूप से फिर झारखण्ड में सक्रिय होने जा रहे हैं। कुछ तो इतने आगे बढ़ गये कि उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी वहन करने की बात कर दी।
लेकिन जो लोग रघुवर दास की राजनीतिक क्षंमता को जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि ये किसी काम के नहीं। इन्हें बनी-बनाई भी चीजें मिले तो वे उसका ठीक से संरक्षण भी नहीं कर सकते, बल्कि लेकर डूब जायेंगे। जैसे कि उन्हें झारखण्ड का उस वक्त मुख्यमंत्री बनाया गया, जब भाजपा जैसे-तैसे 2014 में राजनीतिक सत्ता के निकट पहुंच गई। लेकिन इन्होंने बाद में क्या किया, 2019 में अपनी सत्ता गवां दी और अपनी सीट जमशेदपुर पूर्व को भी गवां दिया। वहां से सरयू राय ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़कर उन्हें धूल चटा दिया।
रही बात 2024 में अपनी बहू पूर्णिमा साहू दास को जीत दिलाने की, तो जमशेदपुर पूर्व का बच्चा-बच्चा जानता है कि यहां से ये सीट भाजपा गंवानेवाली थी। लेकिन ऐन मौके पर रघुवर दास ने उन सब के घर का दरवाजा खटखटाया, दस्तक दी, जिनको ये फूंटी आंखों भी देखना पसंद नहीं करते थे। वे जानते थे कि बिना इनके जीत संभव नहीं।
इसलिए अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए उन सबके पास गये, जो इनकी जीत में रोड़ा बने हुए थे। उन्हें फिर से पार्टी में शामिल करवाया, इज्जत दिलवाई। यही नहीं, रघुवर दास के खिलाफ उनके कट्टर प्रतिद्वंदी भी कुछ नहीं बोले, इसका भी प्रयास किया गया, हालांकि इसका फायदा सरयू राय को भी मिला। दोनों ने जीवविज्ञान की सहजीविता शब्द का फायदा उठाया।
ओडिशा के राजनीतिक पंडितों का कहना है कि ओडिशा के राज्यपाल पद से रघुवर दास को हटना ही था, क्योंकि ओडिशा, झारखण्ड जैसा हिन्दी भाषी प्रदेश नहीं हैं। यहां की आबोहवा अन्य राज्यों की तरह नहीं। कुछ गलतियां राजभवन में रहकर रघुवर दास और उनके बेटे ने ऐसी कर दी कि ओडिशा की जनता उन घटना को अब तक पचा नहीं पाई। जिसकी वजह से भाजपा की ही राजनीतिक किरकिरी होनी शुरु हुई। जब ओडिशा के राजभवन में एक अधिकारी की पिटाई रघुवर दास के बेटे ललित दास ने कर दी। मामला काफी तूल पकड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी गुस्से में थे। जनता गुस्से में थी, जो आज भी है।
यही नहीं राज्यपाल के रुप में रहते हुए कभी भी रघुवर दास ने ओडिशा की जनता से न्याय नहीं किया। वे बार-बार झारखण्ड की राजनीति में रुचि लेते रहे। उन्होंने बार-बार राजभवन में उन नेताओं को बुलाना जारी रखा, जो झारखण्ड की राजनीति में उनके लिए विशेष कुछ करने की मादा रखते थे। यहीं नहीं, उनका जमशेदपुर व भुवनेश्वर बार-बार आना-जाना सब कुछ कह दे रहा था।
जब झारखण्ड में विधानसभा का चुनाव हुआ तब तो यहां अति हो गया था। जिसको लेकर गहमागहमी बनी रही। हालांकि ओडिशा के राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि कुछ विधेयकों को लेकर भी राजभवन और राज्यसरकार में खटपट थी, जिसको लेकर वहां की सरकार राजभवन के क्रियाकलापों से प्रसन्न नहीं थी और चाहती थी कि वे यानी रघुवर दास यहां यानी ओडिशा से सदा के लिये जाये।
इधर, झारखण्ड के राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर रघुवर दास को झारखण्ड में राजनीतिक दायित्व मिलता है और वे फिर यहां सक्रिय होते हैं तो रघुवर दास का तो पहले ही राजनीतिक पटाक्षेप हो चुका हैं, भाजपा का सदा के लिए सर्वनाश हो जायेगा, क्योंकि यहां की जनता रघुवर दास के बोल-चाल, रहन-सहन तथा उनके हाथी उड़ाने की कला को अब तक भूली नहीं हैं और जब भूली नहीं हैं तो परिणाम क्या आयेगा, वो सबको पता है।
जो व्यक्ति अपनी ही पार्टी में अपने ही नेता जैसे बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चम्पाई सोरेन, मधु कोड़ा आदि को देखना पसन्द नहीं करता हो, वहां ये व्यक्ति भाजपा को कैसे सर्वाइव करा पायेगा? हां, इतना तय है कि रघुवर के आने से दीपक प्रकाश, आदित्य साहू, प्रदीप वर्मा जैसे नेताओं की बल्ले-बल्ले हो जायेगी और ये जैसे पायेंगे, वैसे पार्टी को हैंडल करेंगे और बाकी देखते रह जायेंगे, जैसा कि पूर्व में होता रहा और पार्टी रसातल में जाती रही।