अपनी बात

प्रभात खबर के संपादकों के हालत पस्त, प्रथम पृष्ठ पर आठ कॉलम में अपने अखबार में खुद पर हुए प्राथमिकी की रिपोर्ट छापी, पुलिस और सरकार पर साधा निशाना, अन्य अखबारों और पत्रकारों ने बनाई दूरियां

विद्रोही24 ने पहले ही कहा था कि प्रभात खबर संयम बरते। प्रभात खबर ने संयम नहीं बरता। इसका परिणाम यह निकला कि प्रभात खबर को खुद ही सिर्फ अपने अखबार में वो भी पहले पृष्ठ पर आठ कॉलमों में यह खबर प्रकाशित करना पड़ गया, जिसका फोटो विद्रोही24 ने उपर में लगा दिया हैं और इसकी हेडिंग है – “रांची जेल में बंद जिस योगेन्द्र तिवारी ने प्रभात खबर के प्रधान संपादक को धमकी दी पुलिस ने उसी की शिकायत पर फर्जी मामले में संपादकों पर दर्ज की एफआइआर”।

सच्चाई यह है कि यह एफआइआर केवल प्रभात खबर के संपादकों पर ही नहीं हुई हैं, बल्कि उसके मालिक राजीव झांवर समेत अन्य लोगों पर भी हुई हैं। लेकिन प्रभात खबर ने सिर्फ एक रणनीति के तहत केवल संपादकों का मामला अपने अखबार में उठाया है, ताकि उसे जनता का सहयोग समेत रांची के अन्य पत्रकारों/पत्रकार संगठनों का भी इसमें सहयोग मिल सकें। आश्चर्य है कि जिस खबर को अपने यहां प्रभात खबर ने प्रथम पृष्ठ पर आठ कॉलमों में जगह दी हैं। उस खबर को रांची से ही प्रकाशित प्रमुख अखबार जैसे दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान ने अपने यहां प्रकाशित नहीं की है। आखिर ये अखबारें आपके इस समाचार को अपने यहां जगह क्यों नहीं दी, जरा विचार करियेगा।

एक विद्वान पत्रकार ने विद्रोही24 से बातचीत में कहा कि पत्रकारों को धमकियां मिलती ही रहती है, ये सामान्य सी बात है। लेकिन प्रभात खबर ने जिस प्रकार से माइलेज लेने के लिये इस प्रकार की खबरों को भर-भर पेज देना शुरु किया और फोन कर-कर के नेताओं के बयान लेने शुरु किये और उनका समाचार बनाकर अपने हित में छापना शुरु किया। इससे समाज में मैसेज गलत गया। हालांकि जो प्राथमिकी दर्ज की गई है। उस प्राथमिकी में प्राथमिकी दर्ज करानेवाले ने एक खबर का जिक्र किया है।

जो खबर गलत भी थी और जिसका खंडन दूसरे दिन प्रभात खबर ने खुद किया था। ऐसे में अखबार के संपादकों का समूह यह कह ही नहीं सकता कि उसने गलतियां नहीं की थी। गलतियां थीं, ये अलग बात है कि उस गलती को प्राथमिकी दर्ज करानेवाला किस रुप में लेता हैं। इस मुद्दे पर वो आपको वो माफ भी कर सकता है या वो न्यायालय से न्याय की गुहार या थाने में जाकर प्राथमिकी या अन्य प्रकार से प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं।

ये आठ कॉलम की खबर बता रही हैं कि आप योगेन्द्र तिवारी के प्राथमिकी से डर गये हैं। आपकी खबर में लिखे वाक्य बता रहे हैं कि आप का डर किस प्रकार का है। आपने प्रथम कॉलम में लिखा है कि – ‘इसके बाद पुलिस ने अत्यधिक तत्परता दिखाते हुए एक फर्जी मामले में …’ आखिर आप बताना क्या चाहते हैं। मामला फर्जी है या नहीं। ये तो पुलिस जांच कर बता देगी। अगर फर्जी होगा तो प्राथमिकी रद्द हो जायेगा, नहीं होगा तो आप पर मुकदमा चलेगा। आप न्यायालय में जाकर उसे फेस करिये। आप ये सब लिखकर किस पर दबाव बनाना चाह रहे हैं। क्या जनता इतनी मूर्ख है। जो आपके झांसे में आ जायेगी।

आपने सब-हेडिंग में लिखा है कि ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ और जनहित की पत्रकारिता के कारण प्रभात खबर को पहले भी निशाना बनाया जाता रहा है – प्रभात खबर दबाव में न पहले झुका था, न आगे झुकेगा, जनता की आवाज बना रहेगा’ – अरे भाई केवल आप ही जनता की आवाज नहीं हैं। यहां जितने भी छोटे-बड़े अखबार हैं, वे सभी जनता की आवाज हैं। केवल आप ही नहीं हैं।

हां, इस प्राथमिकी ने लगता है कि आपकी नींद उड़ा दी है। तभी तो आप ऐसा लिख रहे हैं। कल आपने भी तो हाय-तौबा मचाकर प्राथमिकी कराने और सीआईडी जांच तक मामले को ले गये थे। कल आपको मौका मिला और आज योगेन्द्र तिवारी को मौका मिल गया। बात सिर्फ इतनी है और जितना संविधान आपको मौका दिया है, उतना ही संविधान योगेन्द्र तिवारी को भी दिया है। सच और झूठ का फैसला अदालत करेगी। लेकिन आपके इस न्यूज से तो साफ लग रहा है कि आप सरकार और पुलिस दोनों को चुनौती दे रहे हैं।

साथ ही आप पत्रकारों से संबंधित यूनियनों और जनता को यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि आप दूध के धूले हैं और सरकार तथा पुलिस आप पर ज्यादती कर रही हैं। नहीं तो आप चार-पांच कॉलम में यह नहीं लिखते कि ‘जनता की आवाज को दबाने का प्रयास किया गया है, पाठक जनता सड़कों पर प्रभात खबर के समर्थन में उतरी है। यही प्रभात खबर की ताकत है।’ अरे भाई किसी समय में उतरी होगी, लेकिन अब गंगा में बहुत सारा पानी बह चुका है। एक समय रहा होगा कि जनता का आप पर विश्वास होगा। पर हम भी रांची में ही रहते हैं। आप कितने विश्वासी है और कितने महान है। हमारे से बेहतर और कौन जानता है।

आपके उपर केस हो जाता हैं तो आप अपने हित में आठ कॉलम में खबरें छापते हैं। खुद को जनता की आवाज बताते हैं और इसी रांची में कई पत्रकारों पर झूठे मुकदमें होते रहे और आपके लोग उक्त पत्रकार के खिलाफ खुलकर गंदे समाचार छापते रहे, उसकी इज्जत से खेलते रहे, हांलांकि इस पाप में केवल आप ही नहीं, बल्कि इस रांची से निकलनेवाले सारे प्रमुख समाचार पत्र शामिल है।

अभी भी वक्त है। आप इस मुद्दे को ज्यादा हवा न दें। ज्यादा आंदोलन खड़ा करने का मूड न बनायें। इस मामले को कानूनी तरीके से लड़ें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। खुद को महान बनने या बनाने की कोशिश ठीक नहीं हैं। आज आप खुद देख लें। आप ने अपनी आधी-अधूरी खबर को आठ कॉलम में छापा हैं, जिसे आज के रांची से प्रकाशित कई अखबारों ने इसे अपने यहां जगह ही नहीं दी।

रांची प्रेस क्लब के एक अधिकारी ने आज ही हमें आपके मामले को लेकर फोन किया तो मैंने उसे यही कहा कि आपके पिताजी का देहांत हो गया था। क्या आप बता सकते है कि प्रभात खबर में आपके पिताजी के देहांत की खबर कैसी छपी थी। वो कुछ बोल नहीं सका। मैंने पूछा कि 2017 में धुर्वा थाने में एक पत्रकार के खिलाफ शत प्रतिशत फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया। रांची के अखबारों ने उस वक्त सीएमओ के इशारे पर नून-तेल मिर्चाई लगाकर छापा, मामला अभी भी अदालत में हैं।

कोतवाली थाने में फरवरी 2021 में उक्त पत्रकार पर फिर फर्जी मुकदमें दर्ज हुए। आपने क्या किया? दरअसल, आपको सिर्फ अपनी भूख, भूख लगती है, दूसरे की भूख को तो आप इन्ज्वॉय करते हैं। दूसरे की इज्ज्त से खेलने में आपको आनन्द भी प्राप्त होता है। आप तो उक्त पत्रकार के लिए कभी अपने सोशल साइट पर गुंडा शब्द का भी उपयोग किया था और अपने फेसबुक पर ढेर सारे कमेन्ट्स भी आमंत्रित किये थे। वो सब वो पत्रकार प्रुफ के तौर पर आज भी रखा हैं, ताकि समय आने पर आपको बता सकें कि आप कितने गलत थे। गलत तो आप आज भी हैं और देखता हूं कि कितने पत्रकार या पत्रकार संगठन या जनता आपकी मदद करने के लिए सड़कों पर उतरती हैं।