अपनी बात

टिकट को लेकर जितना आत्मविश्वास भाजपा में शामिल भ्रष्ट आचरण में लिप्त नेताओं को हैं, उतना तो भाजपा का झंडा ढोनेवाले, कुर्सी लगानेवाले, दरी बिछानेवाले, इनके लिए जान तक देनेवाले कार्यकर्ताओं तक को नहीं

उपर में जो फोटो आपको दिख रहा है। ये हैं अनुरंजन अशोक। ये वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के कार्यसमिति सदस्य है। पूर्व में ये भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य, फिर किसान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष, उसके बाद मिशन मोदी अगेन पीएम के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वर्तमान में इनकी दिली इच्छा है कि वे जरमुंडी विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। लेकिन भाजपा के लोग टिकट क्या देंगे, इन्हें भाव तक नहीं दे रहे।

जबकि ये शख्स झारखण्ड के सुब्रह्मण्यम स्वामी कहे जाते हैं। उसका मूल कारण जहां भी इन्हें पता चलता है कि फलां व्यक्ति भ्रष्ट है या भ्रष्ट आचरण से धन-संपत्ति अर्ज किया है। ये जनहित याचिका ठोक देते हैं। जनहित याचिका ठोकने के बाद, जिसके खिलाफ जनहित याचिका ठोकी गई। उस व्यक्ति की हालत खराब होने लगती है। अदालत भी उस व्यक्ति पर लगाम कसने लगता है। बताया जाता है कि अनुरंजन अशोक ने 50 से भी अधिक जनहित याचिका डालकर भ्रष्टाचारियों की नींद उड़ा दी हैं। जबकि कई जनहित याचिका आज भी कोर्ट में रजिस्टर्ड कराने के लिए वे लगे हुए हैं।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जो भाजपा भ्रष्टाचार की बात करती है। दरअसल उसे तो सबसे पहले ऐसे व्यक्ति को उपर करना चाहिए। सम्मान देना चाहिए। जो भ्रष्टाचार के खिलाफ सही मायनों में लड़ रहा हैं। लेकिन आजकल भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे, अपने ही व्यक्ति जो भाजपा कार्यसमिति का सदस्य है, उसकी बात तक सुनने को तैयार नहीं हैं। लोग बताते है कि जब अनुरंजन अशोक ने जरमुंडी विधानसभा से चुनाव लड़ने की बात को लेकर अपना बायोडाटा देने संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह के पास पहुंचे तो कर्मवीर सिंह ने कोई भाव ही नहीं दिया और उनके बायोडाटा को इस प्रकार से ग्रहण किया, जैसे ये व्यक्ति किसी दूसरे ग्रह से आया हो, अछूत हो।

राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते हैं कि दरअसल भाजपा के दो चेहरे हैं। एक दिखाने के और एक वो चेहरा जिसमें वे सारे सजायाफ्ता व भ्रष्टाचारियों की मदद करने में ज्यादा दिमाग लगाते हैं। यही नहीं, ये भाजपावाले इन भ्रष्टाचारियों के सालों, भाइयों, बेटों की तरक्की के लिए भी दिमाग लगाते हैं। कई तो ऐसे भी हैं, जिनके जीजाजी भाजपा में प्रमुख पद पर हैं और वे अपने साले को समय-समय पर वो ऊंचाइयों प्रदान करवाई हैं, जो भाजपा में रहकर भी नहीं हो सकती थी। दरअसल वो जीजा पहुंचा हुआ, फकीर है। जिसकी हरदम चली है। चाहे सरकार किसी की रही हो।

राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते है कि भाजपा में कई ऐसे लोग हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। सजायाफ्ता है। लेकिन सांसद बने हुए हैं। वे भी अपने भाई के लिए इस बार टिकट के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। लगभग उनका टिकट मिलना भी तय है। बाघमारा उन्हीं में से एक सीट है। पलामू प्रमंडल में तो एक ऐसे भाजपा के नेता हैं। जो पहले राजद में थे। राजद से भाजपा में आये, उनका वीडियो आज भी वायरल है, जिसमें वे ताल ठोककर कह रहे हैं कि टिकटवा तो चाहे हमें मिलें या मेरे बेटे को मिले, दूसरे को यहां से मिल ही नहीं सकता।

मतलब, इतना आत्मविश्वास कैसे इन लोगों को होता हैं? वो भाजपा का झंडा उठानेवाले, भाजपा के लिए कुर्सी लगानेवाले, भाजपा के लिए दरी बिछानेवाले, भाजपा के लिए लड़-कट मरनेवाले भाजपा कार्यकर्ताओं को भी इतना आत्मविश्वास नहीं होता। मतलब आप अच्छे हो। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हो। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने में आपने खुद को ही क्यों न दांव पर लगा दिया हो। आपकी भाजपा में कोई इज्जत नहीं।

लेकिन अगर आप भ्रष्ट तरीके से धन अर्जित किये हैं। आगे करने का इरादा है। कोई भी कुकर्म करने में आगे हैं। जमीन लूटेरे हैं। आपके खिलाफ लोग धनबाद से लेकर रांची के राजभवन तक आंदोलन पर ही क्यों न उतरे हो। कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आपके साथ मोदी-शाह भी खड़े रहेंगे। रघुवर दास जैसे लोग तो आपके लिए कुछ भी करने को तैयार होंगे और वो व्यक्ति रघुवर दास और उनके परिवार के लिए धनबाद से लेकर जमशेदपुर तक का दौरा कर देगा। भले ही उसके खिलाफ सवर्ण समाज जमशेदपुर का सड़क पर उतरने के लिए तैयार ही क्यों न हो जाये।

शायद राजनीतिक पंडित ठीक ही कहते हैं कि अटल-आडवाणी के युग में फिल्मी पोस्टर की तरह एक बैनर भाजपा का होता था। जिसमें लिखा रहता था। राम राज्य की ओर चलें। भाजपा के साथ चलें। लेकिन भाजपावालों के आजकल के आचरण तो बता रहे हैं कि भ्रष्टचारी शासन की ओर चले और भ्रष्टाचारियों के साथ चलें। नहीं तो भाजपा की ऐसी दुर्दशा तो कभी झारखण्ड में दिखी ही नहीं।