आदिवासी इतिहास लिखने के लिए निकला ठेका, दिल्ली के मूर्धन्य विद्वानों ने की तीखी टिप्पणी
रांची स्थित डा. राम दयाल मुंडा ट्राइबल वेलफेयर रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा दिल्ली के इंडियन एक्सप्रेस में 14 सितम्बर 2019 को प्रकाशित एक विज्ञापन देश के मूर्धन्य विद्वानों के बीच हास्य का विषय बन चुका है, बहुत सारे लोग इस विज्ञापन को देख व्यंग्य भी कर रहे और कुछ तीखी टिप्पणी भी कर रहे हैं, पर इन सबसे अलग रांची स्थित डा. राम दयाल मुंडा ट्राइबल वेलफेयर रिसर्च इंस्टीच्यूट पर लगता है कि कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
इंस्टीच्यूट ने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, सरकारी संगठनों, विभिन्न एजूकेशनल इंस्टीच्यूट, रिसर्च इंस्टीच्यूट तथा एनजीओ से सन् 2019-20 के दौरान इतिहास लेखन के लिए ठेका देने हेतु आवेदन आमंत्रित किये हैं। अनिल चमड़िया ने इस पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि आदिवासी इतिहास लिखने के लिए टेंडर निकला है। ठेका लेनेवालों की सुविधा के लिए।
इंस्टीच्यूट इस विज्ञापन के माध्यम से प्राचीन भारत से लेकर ब्रिटिश काल तक के जंगल महल के आदिवासी इतिहास ( 1. झारग्राम, 2. बर्दवान, 3. मिदनापुर, 4. बांकुड़ा, 5. पंचैत, 6. मानभूम, 7. सिंहभूम, 8. धालभूम ) को विशेष तरीके से लिखवाना चाहती है। इंस्टीच्यूट ने कहा है कि जिन संस्थाओं को इसमें रुचि हैं, वे अपनी बिड 10 अक्टूबर 2019 तक दिन के 4 बजे तक इंस्टीच्यूट को सुपुर्द करें।