सावन महीने की अमावस की अंधेरी रात, सुशासन और अटल बिहारी वाजपेयी
पटना से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर है दानापुर। इसी प्रखण्ड में एक मुहल्ला है – सुलतानपुर। जहां एक ही घर ब्राह्मण और एक घर राजपूत के है, बाकी सारे पिछड़े व दलितों के घर, पर सभी में इतना प्रगाढ़ प्रेम, कि इसे तोड़ने की कई बार, कई लोगों ने कोशिश की, पर कोई तोड़ नहीं सका। इस मुहल्ले की खासियत यह रही कि जैसे ही इस मुहल्ले को पता चलता कि मार्शल बाजार में अटल बिहारी वाजपेयी की भाषण होनेवाली है, पूरा मुहल्ला ही उठकर चला जाता, यानी अटल जी के भाषण सुनने का इस मुहल्ले को कितना शौक था, इसी से अंदाजा लग जाता हैं।
हमें याद है कि करीब तीन बार, अटल बिहारी वाजपेयी का यहां आने का ऐलान हुआ, पहली बार तो ऐलान हुआ, आये नहीं, दूसरी और तीसरी बार ऐलान हुआ, तो पहुंचे और लोगों ने रिकार्ड भीड़ कर, उनके भाषण को सुना और भाषण का प्रभाव इतना, कि लालू प्रसाद का इलाका होने के बावजूद लालू की पार्टी हर जगह से लीड करती, पर सुलतानपुर मुहल्ले का जब भी बक्सा खुलता, लालू की पार्टी को निराशा हाथ लगती और यहां से कमल यानी भाजपा लीड कर जाती, और इसका मूल कारण था, इस मुहल्ले की अटल बिहारी वाजपेयी के प्रति गजब की दीवानगी, इस मुहल्ले को भी अन्य जगहों की तरह, अपने वाजपेयी को खोने का मलाल हैं, लोग शोक मग्न है, चर्चाएं जारी है, हर चाय दुकानों तथा चौक-चौराहों पर एक ही चर्चा हैं, वाजपेयी जी का जवाब नहीं, अब भाजपा में वैसा नेता नहीं और न ही संघ में वैसा प्रचारक।
हमें याद है, कि जब वे पटना के गांधी मैदान में चुनाव प्रचार के लिए आये थे, तब उस वक्त बिहार की कानून- व्यवस्था बहुत ही खराब थी, बिहार में लालू यादव का शासन चल रहा था, लोगों में छटपटाहट थी, अटल बिहारी वाजपेयी इस बात को महसूस करते थे, शायद यहीं कारण था कि उन्होंने सुशासन को अपने तरीके स्पष्ट करते हुए पटना की जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि सुशासन क्या है? सुशासन की परिभाषा क्या है? उसके उदाहरण क्या है? सुशासन कैसा होता है?
उन्होंने आगे कहा कि सावन की अंधेरी रात, अमावस की रात, गहरी अंधेरी रात, कोई सोलह साल की लड़की, सर्वांग सोने की आभूषणों से लदी, घने जंगलों-बीहड़ों के बीच से होती हुई, बाजार से अपने घर सकुशल लौट आती हैं, तो उसी को सुशासन कहते हैं, पर यहां बिहार के क्या हालात हैं, बताने की कोई जरुरत नहीं। बिहार में बिगड़ती कानून व्यवस्था के बीच, बिहार की हालत सुधरे, इसके लिए उन्होंने आज के नीतीश कुमार को लालू प्रसाद के विकल्प के रुप में जनता के सामने रखा था, ये अलग बात है कि पहली बार तो विफलता मिली पर जनता ने दूसरी बार में कोई गड़बड़ी नहीं की और नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री के रुप में उभरे और लीजिये सुशासन बाबू भी कहलाने लगे, ये अलग बात है कि आज नीतीश कुमार के उपर भी कुशासन के छींटे लगे हैं, पर इससे वे उबर पायेंगे, कहना मुश्किल हैं, क्योंकि जनता में नाराजगी अधिक है।
हमें कहने में कोई गुरेज नहीं कि हमारे देश में कई ऐसे लोग हुए, जिन्हें भाग्य ने साथ दिया और वे प्रधानमंत्री बन गये, जैसे राजीव गांधी, मनमोहन सिंह, इन्द्र कुमार गुजराल, एचडी देवेगौड़ा, चंद्रशेखर, चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह आदि, पर अटल बिहारी वाजपेयी, एकमात्र गैरकांग्रेसी नेता रहे, जो सिर्फ अपने पुरुषार्थ से पीएम पद तक पहुंचे और देश को एक नई दिशा दी। भला कौन भूल सकता है 13 दिन की केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी की उस सरकार को, जब सारा विपक्ष एक-एक कर अटल बिहारी वाजपेयी पर हमले कर रहा था, और अटल जी चुपचाप उनके असहनीय बातों को सहते रहे, विपक्ष के हमले उनके जेहन में सूई चुभोते जा रहा था, और जनता सब अपने आंखों से देख रही थी।
लेकिन जैसे ही अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम के रुप में अपना भाषण देना प्रारम्भ किया, सारा विपक्ष अवाक् था, वे बिना कोई वोटिंग कराए, राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे और इस्तीफा दिया, शायद उसी दिन भारत की जनता ने संकल्प भी कर लिया कि आनेवाले समय में जब भी चुनाव होंगे वे वाजपेयी को ही अपना प्रधानमंत्री मानेंगे और फिर वहीं हुआ, सारा विपक्ष धराशायी। कल का प्रचारक, कल का स्वयंसेवक, पूरे देश का भाग्य विधाता था, अपने पुरुषार्थ से संघ, भाजपा और देश सभी को गौरवान्वित कर रहा था, और आज भी चिरनिद्रा में रहने के बावजूद भी किसी को मौका नहीं दिया कि कोई उनके दामन पर दाग भी लगा सके।
सवाल तो भाजपा और संघ के लोगों से भी, क्या आप दूसरा अटल बिहारी वाजपेयी देश को दे सकते हैं, क्योंकि अतीत से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य बनता है, आज के जो संघ के प्रचारकों की जो जीवन पद्धति हैं, वह बिल्कुल बदल गई है, आज का प्रचारक, बड़े-बड़े व्यापारियों के यहां भोजन ही नहीं करता, बल्कि सुख व ऐश्वर्य में डूबने की कोशिश करता हैं, और वह व्यापारी इसके बदले, सरकार और सत्ता में बैठे लोगों से अपना हिसाब बराबर करता है, करोड़ों के ठेके लेता है, करोड़ों में खेलता है, और देश को नुकसान पहुंचा रहा हैं, पर प्रचारक को इसकी कोई परवाह नहीं होती, उसे तो अच्छे भोजन और सुख व ऐश्वर्य की लालच ने धर-दबोचा है, रांची उसका सुंदर उदाहरण है। जो लोग अटल बिहारी वाजपेयी को जानते हैं, क्या बता सकते है कि प्रचारक रहने के दौरान वाजपेयी जी की जीवन शैली ऐसी ही होती थी क्या, जो आज के संघ के प्रचारकों का है।
अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अवश्य दीजिये, पर अपनी अंतरात्मा को टटोलिये कि क्या आप वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लायक हैं? अगर नहीं तो उनकी आत्मा को धोखा मत दीजिये, क्योंकि उन्हें बुरा लगेगा, और फिर इसका खामियाजा आपको ही भुगतना पड़ेगा, क्योंकि गलत का परिणाम, गलत ही होता है, ये जितना जल्दी आप समझ लें, उतना ही अच्छा है।
आज जो भाजपा के नेता इवेंट्स-मैनेजमेंट कराकर भीड़ इकट्ठे करते हैं, वे यह जान लें कि अटल बिहारी वाजपेयी ही एकमात्र भाजपा में करिश्माई नेता थे, जिन्हें अपनी बातें सुनाने के लिए किसी पूंजीपति के आगे गिड़गिड़ाने की आवश्यकता नहीं होती थी कि वह उनकी मदद करें और उनके भाषण को इवेंट्स की तरह करवाकर, उनकी इमेज बनाएं, वे तो ऐसे थे कि जहां भी खड़े हो जाते, वह कार्यक्रम ही इवेंट्स बन जाता, ऐसे थे वाजपेयी, प्रचारक वाजपेयी, नेता वाजपेयी, जिसका अकाल भाजपा एवं संघ में पड़ चुका हैं, शायद ही कोई अब दूसरा वाजपेयी अब यहां पर दिखाई पड़े, क्योंकि अब तो चरित्र की विदाई यहां से कब की हो चुकी है, ऐसे में वाजपेयी मिलेंगे कहां?