अपनी बात

रांची में रविवार को संपन्न डी-लिस्टिंग रैली ने धर्मांतरित आदिवासियों और धर्मांतरण करानेवाले संगठनों की नींद उड़ाईं, कड़िया मुंडा ने आदिवासियों से कहा, अभी नहीं जगे तो फिर किताबों में रह जाओगे

रविवार को रांची के मोराबादी मैदान में आदिवासियों का जुटान था। ये वो आदिवासी थे। जिन्होंने अपना मूल-धर्म व अपना ईमान नहीं बेचा था और न ही किसी प्रलोभन के शिकार हुए। ये अपनी पहचान और संस्कृति को लेकर सजग थे। इनका कहना था कि उनके अधिकारों पर धर्मांतरित आदिवासियों ने कब्जा कर लिया है। जिसके कारण उनके अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है। ऐसे में डी-लिस्टिंग जरुरी है। इनका कहना था कि जो जनजाति समाज से जुड़े लोग दूसरे धर्म में जा चुके हैं या दूसरे धर्म को अपना लिया है। उन्हें अनुसूचित जन-जाति को मिलनेवाली आरक्षण बंद कर देना चाहिए।

झारखण्ड के प्रमुख आदिवासी नेता व लोकसभा में उपाध्यक्ष के पद को सुशोभित कर चुके कड़िया मुंडा ने तो रविवार की रैली में साफ कह दिया कि आदिवासी जगे नहीं तो आनेवाली उनकी पीढ़ियां उन्हें किताबों में पढ़ेगी। वे यह पढ़ेंगे कि एक ऐसा भी समुदाय था। जो जंगल में रहा करता था। आदिवासी इतिहास के पन्नों में सिमट जायेंगे। इसलिये जरुरी है कि दूसरे धर्म में जानेवालों को आरक्षण देना बंद हो।

उन्होंने राज्य की सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि उनकी इस डी-लिस्टिंग रैली पर राज्य सरकार की भी नजर थी, जिसके कारण इस रैली में भाग लेनेवाले लोगों को कई जगहों पर रोका गया। कड़िया मुंडा ने कहा कि संविधान की धारा 342 में भी संशोधन होने चाहिए। यह काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था। लोग जैसे ही धर्म बदले। उन्हें मिलनेवाली सारी सुविधाएं बंद हो जानी चाहिए। इसी मांग को लेकर हम सभी को दिल्ली जाना है और वहां अपनी विशाल उपस्थिति दर्ज करानी है, ताकि केन्द्र पर दबाव बनें।

इस रैली में शामिल हुए मध्यप्रदेश के पूर्व न्यायाधीश प्रकाश सिंह उइके ने कहा कि आदिवासियों को पिछले 70 सालों से मूर्ख बनाया जा रहा है। जिन्हें आरक्षण मिलना चाहिए, उन्हें न देकर इसका लाभ धर्मांतरित लोगों को दे दिया जा रहा है। इसमें सुधार समय की मांग है। भगवान बिरसा की जन्मभूमि से इस मांग को लेकर उलगुलान शुरु हो चुका है। जैसे धारा 370 खत्म हुआ। ठीक वैसे ही धारा 342 में बदलाव कराकर रहेंगे।

मध्यप्रदेश में मंत्री रह चुके गणेश राम भगत ने कहा कि धर्मांतरित लोगों से आदिवासियों को ज्यादा खतरा है। यह दीमक की तरह हमारी संस्कृति और परम्परा को नष्ट कर रहे हैं। रविवार की डी-लिस्टिंग रैली पर धर्मांतरित ईसाइयों व धर्मांतरण कराने में लगी ईसाई संगठनों की भी नजर टिकी थी। ये लोग शुरु से ही कल की डी-लिस्टिंग रैली पर सोशल साइट व समाचार पत्रों के माध्यम से विरोध कर रहे थे।

लेकिन उनके इस विरोध का कोई प्रभाव नहीं दिखा। रविवार की डी-लिस्टिंग रैली ने यह संकेत दे दिया कि आदिवासी समाज अपनी परम्परा व संस्कृति को लेकर सजग है। अगर डी-लिस्टिंग रैली को देखकर केन्द्र की सरकार ने निर्णय ले लिया तो समझ लीजिये, क्रांति हो जायेगी। आदिवासियों का धर्मांतरण रुकेगा। साथ ही उनकी परम्परा व संस्कृति प्रभावित होने से बचेगी, क्योंकि झारखण्ड में ईसाई संगठनों व धर्मांतरण करानेवाले लोगों पर यह आरोप लगता रहा है कि वे प्रलोभन देकर व आदिवासियों में व्याप्त गरीबी का फायदा उठाकर उनका धर्मांतरण करा देते हैं। जिससे वे अपनी परम्परा व संस्कृति से दूर होते जाते हैं।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो आनेवाले समय में आदिवासियों के बीच डी-लिस्टिंग एक बड़ा मुद्दा बनेगा, इसमें कोई किन्तु-परन्तु भी नहीं हैं। जिसका खतरा धर्मांतरण में लगे लोगों को लग चुका है और वे इसकी काट की तैयारी करने में लग गये हैं। लेकिन इसकी काट वे कर पायेंगे, सफलता मिलेगी, ऐसा दूर-दूर तक फिलहाल कुछ दिखता नहीं।