हेमन्त और कल्पना की जोड़ी ने झारखण्ड में भाजपा और उनके नेताओं की ऐसी धुलाई कर दी कि बेचारी भाजपा और उनके नेताओं को अपना नेता यानी नेता प्रतिपक्ष चुनने में भी छूट रहे पसीने
हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने झारखण्ड में भाजपा की वो धुलाई कर दी हैं कि अब इन्हें झारखण्ड विधानसभा में उनका नेता कौन होगा? यह उन्हें सूझ ही नहीं रहा हैं और जब इनको अपना नेता नहीं सूझ रहा है तो स्वाभाविक है कि इस राज्य में नेता प्रतिपक्ष कौन होगा? अब तक राज्य की जनता को मालूम नहीं हो सका है, क्योंकि जिसे अपना नेता चूनना है, उसे तो सांप सूंघा हुआ है। वो तो नेता प्रतिपक्ष के चुनाव में भी फारवर्ड-बैकवर्ड, उच्च-नीच, अगड़ा-पिछड़ा, आदिवासी-दलित के साथ-साथ भाजपा की ओर से होगा या झाविमो की ओर से होगा, इस पर माथापच्ची कर रहा है।
उधर भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता तो अब खूलकर बोलने लगे हैं कि जिस दिन से भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने दीपक प्रकाश, रवीन्द्र राय, बाबूलाल मरांडी जैसे कट्टर झाविमो नेताओं के गोद में बैठकर निर्णय लेने लगे और पूरी भाजपा का झाविमोकरण कर दिया। उसी दिन तय हो गया कि भाजपा अब कभी झारखण्ड में खड़ी नहीं हो पायेगी और रही-सही कसर प्रदीप वर्मा, आदित्य साहू और संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह जैसे नेताओं ने पूरी कर दी।
जब इन्होंने भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं व संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों की कमजोरी पकड़ ली और उनके कमजोरियों को पूरा करने में स्वयं को लगा दिया। जिसका फायदा इनदोनों ने उठाया। जनता में जिसका कोई जनाधार नहीं, जो अपने इलाके में दस वोट भाजपा को नहीं दिला सकता, वो सीधे राज्यसभा पहुंच गया।
आश्चर्य है कि झामुमो ने अपना नेता चुन लिया। हेमन्त सोरेन ने अपना मंत्रिमंडल गठित कर लिया। मंत्रियों को उनके विभाग भी सौंप दिये। विधानसभाध्यक्ष कौन होगा? यह भी निर्णय कर लिया गया। कई दलों ने अपने-अपने विधायक दल के नेताओं की सूचियां भी जारी कर दी। लेकिन भाजपा, जिसकी ओर से नेता प्रतिपक्ष बनना तय है। वो अपने विधायक दल का नेता तक नहीं चुन सकी है। जिसको लेकर कई संविधान के जानकारों ने भी अंगुलियां उठा दी हैं।
कभी पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के राजनीतिक सलाहकार रह चुके अयोध्या नाथ मिश्र तो सोशल साइट फेसबुक पर साफ लिखते हैं कि ‘पष्ठम् विधानसभा का सत्रारम्भ पर नेता, प्रतिपक्ष नहीं! प्रमुख विपक्षी दल भाजपा द्वारा संसदीय मर्यादाओं के निर्वहण में उदासीनता क्यों?’ जिस पर कई लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और भाजपा नेताओं की धज्जियां उड़ाई हैं। लेकिन भाजपा के प्रदेश स्तर से लेकर केन्द्रस्तरीय नेताओं तक को शर्म महसूस नहीं हो रही हैं। संघ के पदाधिकारी भी अपने आदत अनुसार दांत निपोड़ रहे हैं और मामले को और पेचीदा बनाने में लगे हुए हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना हैं कि पंचम विधानसभा सत्र में जब भाजपा नेताओं ने झाविमो के टिकट पर जीते और अचानक भाजपा में शामिल हो गये बाबूलाल मरांडी को आगे कर नेता प्रतिपक्ष बनाया था, जिसको लेकर स्पीकर ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनने पर रोक लगा दी थी, बाद में जब बाबूलाल मरांडी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई तो अमर कुमार बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया था। लेकिन अब क्या दिक्कत हैं? अब तो पहले वाली स्थिति भी नहीं हैं। अब भाजपा नेता प्रतिपक्ष देने में इतना दिमाग क्यों लगा रही हैं?
राजनीतिक पंडितों का कहना हैं कि भाजपा के पास ऐसे कई नेता हैं, जो नेता प्रतिपक्ष की भूमिका बेहतर ढंग से निभा सकते हैं। लेकिन उस ओर ध्यान न देकर, योग्यता को तिलांजलि देकर, अपनी हठधर्मिता और एक कठपुतली नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाने की जिद कही भाजपा को लेकर डूब न जाये, क्योंकि भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं में जो असंतोष हैं। वो अभी खत्म नहीं हुआ हैं। आज भी कई भाजपा नेता व कार्यकर्ता हैं, जो भाजपा को दीमक की तरह चाट गये नेताओं को बख्शने की मूड में नहीं हैं, और ये नेता कौन हैं, विद्रोही24 ने कई बार इसका खुलासा किया हैं और इस आर्टिकल में भी वैसे नेताओं के नाम दे दिये गये हैं।
कमाल है एक दो दिन पहले ये भाजपा के नेता प्रदेश कार्यालय में भाजपा विधायक दल की बैठक करते हैं और उस बैठक में अपना नेता नहीं चून पाते और प्रदेश की समस्याओं का हल करने का दावा करते हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो एक ओर झामुमो में युवाओं की टीम हैं तो दूसरी ओर भाजपा में हताश तथा अदूरदर्शी नेताओं की फौज आकर जमा हो गई हैं, जिससे न तो भाजपा का भला होना है और न ही प्रदेश का। ऐसे में अगर ये अपना नेता चुनने में महीनों लगा दें, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।