सम्पादकों/पत्रकारों ने कहा – “मैं रघुवर के आगे-आगे नाचूंगी, मैं तो रघुवर के आगे-आगे…”
जी हां, अपना देश बदल रहा है, राज्य भी बदल रहा है, जरा देखिये न, अपने झारखण्ड की राजधानी रांची में रहनेवाली रघुवर सरकार ने एक बार फिर रांची से प्रकाशित विभिन्न अखबारों में कार्यरत संपादकों पर दबाव डाला कि वे अपने यहां कार्यरत पत्रकारों को वहां भेजे, जहां वह भेजना चाहती है, रही बात उनके खाने–पीने, ठहरने व अन्य प्रकार की सुविधाओं की तो उसका जिम्मा सरकार उठायेगी और लीजिये आइपीआरडी और सीएमओ ने मिलकर सभी का जिम्मा उठाया और पत्रकारों की टीम कल पलामू के लिए रवाना हो गई।
रवाना होने के पूर्व फोटो सेशन भी हुआ, जिसमें सीएमओ की टीम भी भाग ली और ये सारे पत्रकार सीएमओ की टीम से अनुप्राणित हुए बिना नहीं रह सकें, जब फोटो सेशन हो रहा था, कई पत्रकार भाव–विह्वल हो गये, क्योंकि यह परम–सुख आज तक उन्हें प्राप्त नहीं हुआ था, जो कल से शुरु होकर 8 सितम्बर तक प्राप्त होगा।
फिलहाल यह टीम इनोवा एसी गाड़ी से पलामू के लिए प्रस्थान की, बीच लातेहार में नाश्ता–पानी के लिए गाड़ी रोकी गई, उसके बाद ये लोग सीधे पलामू पहुचें , जहां इस सबको एक-एक गुलाब देकर स्वागत किया गया और फिर चंद्रा रेसीडेंसी नामक होटल में इन सबको ठहराया गया। फिलहाल जनाब यहां 6 सितम्बर को पहुंचे हैं और इस होटल में रहकर, राज्य सरकार और पलामू के जिलाधिकारी के सहयोग से 8 सितम्बर तक विकासात्मक कार्यों को देखेंगे और फिर 8 सितम्बर को ही रांची के लिए रवाना हो जायेंगे। रांची पहुंचते ही, राज्य की समस्त जनता को बतायेंगे कि पलामू में कैसे विकास की गंगा–यमुना–सरस्वती बह रही हैं, कैसे रघुवर दास की कृपा से पलामू की जनता चंद्रयान 2 के मजे ले रही है?
पलामू के वरिष्ठ पत्रकार फैयाज अहमद कहते है कि लानत हैं ऐसे लोगों पर, जो इस प्रकार की सुविधाएं लेकर, सरकार की जय बोलते हैं। वे कहते है कि सरकार चाहे तो उन्हें कोई भी दफा लगाकर ठेल दे, कोई फर्क नहीं पड़ता पर जो सच्चाई है, वे बोलेंगे। उन्होंने कहा कि यूपी की घटना जहां एक पत्रकार को रोटी नमक खाते हुए बच्चों को दिखाया गया, और उस पत्रकार को सच बोलने की सजा ये दी गई कि उस पर झूठे केस मढ़ दिये गये, उस देश में इस प्रकार की व्यवस्था का लाभ लेना, शर्मनाक है।
उन्होंने कहा कि वे जल्द ही पलामू के उपायुक्त से मिलेंगे और कहेंगे कि आनेवाले समय में वे जो भी विकासात्मक कार्य को लेकर प्रेस कांफ्रेस करते हैं, वे रांची के पत्रकारों को बुलाकर प्रेस कांफ्रेस करें, इससे उन्हें ज्यादा लाभ प्राप्त होगा। फैयाज अहमद ने कहा कि पलामू में करीब–करीब रांची से प्रसारित व प्रकाशित होनेवाले सारे अखबारों–चैनलों के प्रतिनिधि व ब्यूरो कार्यालय हैं, फिर भी रांची से पत्रकारों की टीम को सरकारी सुविधाओं के साथ लाना और इन पत्रकारों द्वारा उन सुविधाओं को प्राप्त कर, राज्य की विकास योजनाओं पर फोकस करना, ऐसी घटनाओं पर वे लानत भेजना ज्यादा जरुरी समझते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को लगता है कि उनकी विकास योजनाओं को जनता के बीच रखना ज्यादा जरुरी हैं तो सरकार को पोस्टर की दुकान खोल लेना चाहिए।
इधर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता के एन त्रिपाठी का कहना है कि पलामू में विकास, ये कौन कह रहा हैं? जिस मंडल डैम का काम 80 प्रतिशत एकीकृत बिहार में 1997 के पूर्व पहले ही हो चुका, बाद में आज तक एक ईंट भी नहीं जोड़ा जा सका, उस मंडल डैम के फिर से शिलान्यास कराने के लिए पीएम मोदी को 25 करोड़ रुपये खर्च कर बुलाया गया। उसके बाद जे पी नड्डा को 2-3 करोड़ रुपये खर्च कर उसी मंडल डैम के पास लाकर, यह कहा जा रहा कि अब मंडल डैम चालू होनेवाला है, और जल्द ही पलामू के लोगों को प्यास बूझ जायेगी, ये सफेद झूठ नहीं तो और क्या है?
सच्चाई यह है कि काम अभी तक शुरु नहीं हुआ, दूसरी बात कि जब तक कोयल नदी पर तीन जगह बांध नहीं बनेगा, पलामू को पानी नहीं मिलेगा, सीधे पानी यह बिहार को चला जायेगा, तो पलामू को क्या मिलेगा? जहां मंडल डैम से प्रभावित 17 गांवों के लोग उजड़ रहे हैं, जो यह भी कह रहे है कि न तो जान देंगे और न जमीन देंगे, वहां पर कौन से विकास की यह बात कर रहे हैं, हाल ही में एक बार फिर इस मुद्दे को लेकर उन्होंने जनांदोलन खड़ा किया, नतीजा लोकल पलामू के अखबारों में यह समाचार प्रकाशित हुआ, पर रांची के पन्नों पर यह खबर दिखाई ही नहीं दी, यानी सोची–समझी रणनीति के तहत इस बड़े मुद्दे को लोकल बनाकर पेश कर दिया गया, ऐसे में जो राष्ट्रीय मुद्दे हैं, वह गौण पड़ गये, उससे अखबार और मीडिया वाले ही बताये कि इससे देश को क्या मिल रहा है? राज्य को क्या मिल रहा है?
आम जनता तो खुद को सरकार और मीडिया दोनों से खुद को ठगी महसूस कर रही है। सुनने में आया है कि कुछ पत्रकार रांची से पलामू लाये गये हैं, सरकार की आरती उतारने के लिए, अच्छा रहता कि वे पलामू की जनता की आवाज बनते और खुद चूंकि उनका संस्थान बड़ा है, वे ऐसा कर सकते हैं, अपनी व्यवस्था कर आते, पलामू की सच्चाई से पूरे राज्य व देश की जनता को रु–ब–रु कराते, तो निःसंदेह राज्य की जनता को फायदा होता, पत्रकारिता चमक रही होती और फिर इन पर कोई अंगूली उठाने की जूर्रत नहीं करता।
इधर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि रांची के अखबार संपादकीय पृष्ठों पर वह भी दो-दो पृष्ठों का पैड न्यूज भी छापेंगे, सरकार से मुनाफा भी उठायेंगे और ठुमरी भी नहीं गायेंगे, ये कैसे चलेगा? ठुमरी तो गाना ही पड़ेगा। यह गाना ही पड़ेगा – मैं तो रघुवर के आगे-आगे नाचूंगी, मैं तो रघुवर के आगे-आगे…