अखबारों-चैनलों के मालिकों/संपादकों के कारनामों का असर, झारखण्ड में श्मशान की ओर चल पड़ी पत्रकारिता
नेता, पत्रकार और अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का प्रभाव देखिये, झारखण्ड में श्मशान की ओर पत्रकारिता चल पड़ी है। चित्ता सज चुकी है। बस अर्थी से उसे उठाकर चित्ता पर रख देना है, फिर कोई भी उसमें आग लगा दें, क्या फर्क पड़ता है, चित्ता तो चित्ता हैं, धू-धू कर जल पड़ेगी। जब मैं बड़े-बड़े शिक्षण संस्थाओं में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे युवाओं/युवतियों व वहां पत्रकारिता का कोर्स करा रहे मगरमच्छों को देखता हूं तो सोचता हूं कि ये मगरमच्छ कौन सी शिक्षा इन्हें दे रहे होंगे और वे युवा ले रहे होंगे?
आप कहेंगे कि लो जी, ये आज हमें क्या हो गया कि इस प्रकार की बातें मैं लिख रहा हूं। भाई, लिखना आवश्यक हो गया है, क्योंकि खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलानेवाला पत्रकार या अखबार जनता के साथ न्याय नहीं कर रहा, वो एक नया पॉलिसी बना रखा है, जिसकी सत्ता आयेगी, हम उसी का भजन सिर्फ गायेंगे, अब ये पॉलिसी रहेगी तो फिर जनता के साथ न्याय कैसे होगा?
कभी यही काम तब होता था, जब राज्य में रघुवर दास की सरकार थी, हालांकि पूर्व की सरकारों में भी ऐसा होता था, पर इस प्रकार का काम इतना कम होता था, कि लोगों को पता ही नहीं चलता था, पर मैं देख रहा हूं कि रघुवर सरकार की कारगुजारियों में जिन-जिन अखबारों-चैनलों ने रघुवर सरकार से गुरुमुख हुए, फिलहाल उन्हीं के बताये मार्गों पर चल रहे हैं।
अगर आप दिमाग पर जोर डालें, तो रघुवर सरकार के शासनकाल में अखबारों-चैनलों के दोनों हाथ ही नहीं, बल्कि दोनों पैर भी शुद्ध घी के पन्द्रह किलों डिब्बे में डले होते थे, अगर कोई अखबार ने थोड़ा सा भी पटरी से उतरने की कोशिश की, तो उसको विज्ञापन ही बंद हो जाता था, बाद में उसके विज्ञापन महाप्रबंधक/संपादक जय-जय करने जाते थे, तब जाकर फिर से विज्ञापन मिलता था, कई बार तो इसके लिए संपादकों को अपनी नौकरी से हाथ भी धोना पड़ता था, मतलब आप कही रहिये, हमारी जय-जय करिये, क्योंकि आप हमसे विज्ञापन लेते हैं।
आज क्या है? आज भी वहीं स्थिति है, लेकिन कल की स्थिति में और आज की स्थिति में विशेष अंतर हैं। पहले कोरोना नहीं था, और आज कोरोना है। कोरोना और पूर्व की रघुवर सरकार द्वारा लिये गये गलत निर्णयों के कारण झारखण्ड की आर्थिक स्थिति चरमरा गई, जिसको लेकर राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को श्वेत पत्र भी जारी करना पड़ा।
आइपीआरडी का तो ये हाल है कि उसके पास पैसे ही नहीं हैं, बस जो कुछ हैं, उसी में सभी अखबारों को कुछ न कुछ देकर, उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है, ऐसे में राज्य में कुकुरमुत्ते की तरह उगे अखबार भी कुछ न कुछ विज्ञापन के रुप में पाना चाहते है कि क्योंकि उनका मकसद अखबार छापना कम और विज्ञापन पाना ज्यादा होता है, अगर सीएमओ के कुछ लोगों से अच्छा संपर्क हो गया तो फिर बल्ले-बल्ले, नहीं तो कटोरा पकड़िये, दुसरा कोई आपके पास विकल्प ही नहीं, क्योंकि आपने कभी दूसरे विकल्प पर काम ही नहीं किया, क्योंकि आपने जमीर जो बेच रखी है, भला जमीर बेच देने के बाद फिर क्या सूझता है?
आज का सारा अखबार देखिये, राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री, भाजपा विधायक दल के नेता व नेता प्रतिपक्ष (हालांकि विधानसभाध्यक्ष ने इन्हें नेता प्रतिपक्ष अभी सदन मे स्वीकारा नहीं हैं) बाबू लाल मरांडी ने कल प्रेस कांफ्रेस किया था, आम तौर पर एक सामान्य जनता भी जानती है कि एक नेता प्रतिपक्ष या राज्य का प्रथम मुख्यमंत्री या राज्य का दूसरा सबसे बड़ा दल का नेता का लोकतंत्र में क्या प्रभाव होता है?
बाबू लाल मरांडी ने साहेबगंज को लेकर प्रेस कांफ्रेस किया था, जिसमें जिन-जिन लोगों को झूठे केस में फंसाया गया था, कमोवेश सभी लोग मौजूद थे, पर इस न्यूज के साथ देखिये, कितना बड़ा अन्याय रांची के प्रमुख अखबारों ने किया है। रांची का सबसे ज्यादा बिकनेवाला अखबार प्रभात खबर उसे सिंगल कॉलम में प्रकाशित किया है, वह भी जब आप ढूंढियेगा तो मिलेगा, फोटो तो भूल ही जाइये। ठीक इसी प्रकार हिन्दुस्तान अखबार ने किया है, मतलब सीधे इन दोनों ने बाबू लाल मरांडी को ही इग्नोर कर दिया, आगे दैनिक भास्कर व दैनिक जागरण ने दो कॉलमों में फोटो के साथ खबरें दी हैं, पर आप ये कह नहीं सकते कि इन्होंने भी समाचार या बाबू लाल मरांडी जैसे नेताओं के साथ अन्याय नहीं किया।
जब दिसम्बर 2019 में झारखण्ड विधानसभा के चुनाव संपन्न हो रहे थे, तो कुछ इसी प्रकार की स्थिति उस वक्त के नेता प्रतिपक्ष व आज के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के साथ हुआ करती थी, कोई अखबार उनके बयानों को उतना प्रश्रय ही नहीं देता था, चैनल भी वहीं किया करते थे, क्योंकि सभी का यही मानना था कि रघुवर ही फिर से सत्ता में आ रहे हैं, इसलिए मुख्यमंत्री फिर यही बनेंगे तो हम क्यों हेमन्त सोरेन और उनकी पार्टी को जगह दें।
पर मेरा मानना था कि राज्य की जनता रघुवर सरकार से और अखबारों के चाटुकारिता प्रकरण में आकंठ डूब जाने के कारण उब चुकी थी और उसने वो निर्णय लिया कि पूरा देश ही चकित हो गया, यानी बिना किसी हर्रे-फिटकरी यानी बिना किसी अखबार व चैनल पर एक पैसे खर्च किये, हेमन्त सोरेन सत्ता की कुर्सी पर विराजमान हो गये, हां उन्होंने इस दौरान एक काम किया, जो सत्यनिष्ठ पत्रकार थे, उन पर उन्होंने भरोसा जताया, और वो भरोसा कामयाब रहा।
लेकिन दुर्भाग्य यह देखिये कि सत्ता में आने के बाद उन्होंने और उनके लोगों ने उन पत्रकारों पर ही ज्यादा गाज गिरा दी, ऐसे भी कहा जाता है कि सत्ता के यार कुछ और ही होते हैं, यह भी सत्य है कि जो आज चहचहा रहे हैं, वे ही सबसे पहले यानी 2024 के आने के पूर्व ही धोखा देकर मझधार में डूबायेंगे, ये तो आनेवाले समय की बात है, मेरा सिर्फ यही कहना है कि अगर सत्ता की ओर से अखबारों-चैनलों पर अंकुश लगाया जा रहा हैं, तो इसे तत्काल प्रभाव से रोक देना चाहिए, क्योंकि अब ये अखबार-चैनल, अखबार-चैनल रहे ही नहीं।
अब तो संपादक की बहाली ही ये पुछकर होती है कि आप एक महीने में कितना विज्ञापन देंगे? पहले क्या होता था? पहले यह होता था कि संपादक की बहाली उसकी योग्यता का आधार होता था, आज जरा देखिये, जो भी संपादक की कुर्सी पर हैं, वे क्या संपादक मैटेरियल्स है? इस पर चिन्तन राज्य के मुख्यमंत्री को करना चाहिए और उन्हें भी करना चाहिए, जो संपादक की कुर्सी पर विराजमान है।
दो दिन पहले एक पोर्टल के कार्यालय में गया था, दो युवा पत्रकार संपादक मैटेरियल्स पर बात कर रहे थे, सभी ने एक स्वर से मान लिया कि यहां कोई संपादक फिलहाल संपादक मैटेरियल्स नहीं, बल्कि विज्ञापन मैटेरियल्स हैं, ऐसे में राज्य कहां जायेगा? जिस राज्य में अखबार व अखबार के मालिक या संपादक इसलिए दिमाग लगाते हो, कि कुंदरुकोचा का सोने का खान कैसे मिलेगा? या और जगहों पर जो खनन के परिक्षेत्र हैं, उसका पट्टा कैसे मिलेगा? तो फिर उस राज्य में पत्रकारिता कहां से होगी?
अरे भाई, अखबार का काम मसाला बांटना है? यही तो पतन का कारण है, आप पत्रकारीय कार्य छोड़कर, मसाला बांटने का काम करोगे। आप जब जिसकी सत्ता आयेगी, आप उस पर किताब लिखने बैठ जाओगे, यानी मौकापरस्त होगे, तो फिर पत्रकारिता कब करोगे? एक दिन एक युवा पत्रकार ने पुछा कि सर आपको हिन्दी पत्रकारिता दिवस या प्रेस दिवस पर कोई बुलाता है कि नहीं?
मैंने सीधे कहा कि जो भी इस प्रकार का काम करता या कराता है, उसका कुछ मकसद होता है, मकसद क्या तो वो जो कार्यक्रम करवा रहा है, उसका समाचार अखबारों में छपे, तो इसका फार्मूला क्या है? वो फार्मूला जानता है, वो चार-पांच प्रमुख अखबारों के संपादकों को अपने यहां बुला लेता हैं, और लीजिये संपादकों की भी जय-जय और उसके समाचार की भी जय-जय हो गई, बिना हर्रे-फिटकरी के। वो युवा पत्रकार समझ गया कि मैं क्या कहना चाहता हूं।
दो महीने पहले एक युवा पत्रकार मिला, वो झारखण्ड के ही एक यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता का कोर्स कर रहा था, पढ़ाई-लिखाई से लेकर उसके खाने-पीने, रहने पर करीब एक लाख से ज्यादा खर्च आ रहा था, उसके माता-पिता किसान थे, चाहते थे कि उनका बेटा उनके जैसा न काम करके सुट-बुट टाई लगाकर घूमे, बूम पकड़े, कैमरा के सामने रहे, मतलब ग्लैमर की दुनिया में चमके, लेकिन जैसे ही उसका दो साल का कोर्स खत्म हुआ और पांच-हजार से लेकर पन्द्रह हजार रुपये की नौकरी मिलने के भी लाले पड़ गये, उसे समझ में आ गया कि समाज ने उसके साथ बहुत बड़ी चीटिंग की है, आज वो युवा मायूस है, ठीक उसी प्रकार जब आचार्य बिनोवा भावे ने एक युवा से पूछा था – ततः किम्, ततः किम्, ततः किम् और वह युवा बिनोवा भावे को जवाब नहीं दे सका।
अंत में जो सही मायने में पत्रकार है या अखबार चला रहे हैं या चैनल चला रहे हैं, कृपया पत्रकारिता को धोखा मत दीजिये, अगर नहीं चल रहा हैं, चैनल व अखबार तो उसे बंद कर दीजिये, जनता के साथ धोखा महापाप हैं। आप अपने लिए समाज को दावानल की आग में मत झोंकिये, नहीं तो सभी को भुगतना पड़ेगा। राज्य सरकार और विपक्ष तथा यहां की जनता स्वयं चिन्तन करें कि यहां के अखबार/चैनल उनके साथ न्याय कर रहे हैं और अगर नहीं तो फिर उनका बहिष्कार करिये, गुलामी से कही अच्छी है स्वतंत्रता।
कलम व बूम को गिरवी मत रखिये, अगर आप संपादक के लायक नहीं हैं, तो वहां से हटिये, और विज्ञापन महाप्रबंधक बनकर अखबारों की सेवा करिये, जनता की सेवा करिये, ये क्या है बनेंगे सम्पादक और सत्ता तथा विपक्ष के सामने कटोरा लेकर खड़े रहेंगे तब तो फिर वहीं होगा जो 02 मई को सीएम आवास में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की प्रेस कांफ्रेस के बाद दो पत्रकारों के साथ उनके ही लोगों ने किया, नहीं अगर समझ में आ रहा हैं, तो विजूयल उस दिन का देख लिजिये, आप सब की औकात बता दी है किसी ने, मैं उस व्यक्ति का नाम लेना नहीं चाहता, पर आपने वैसी अपनी गत ही बना ली, तो करेगा क्या? वही करेगा, जो उसने उस दिन किया।