अपनी बात

गलवान घाटी के एकमात्र शहीद गणेश हांसदा के परिवार को झारखण्ड के नेताओं ने जमकर उल्लू बनाया

गलवान घाटी, नाम आपने जरुर सुना होगा। यह घाटी भारत-चीन सीमा पर स्थित है। यही पिछले साल 15 जून को झारखण्ड के बहरागोड़ा स्थित कोसाफालिया गांव के गणेश हांसदा चीनी सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गये थे। जब उनके शहीद होने के बाद उनका शव कोसाफालिया गांव पहुंचा, तब उस वक्त बहुत सारे नेता उनके गांव पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक रश्म अदा किये थे, झूठे आंसू बहाएं थे और ढेर सारे वायदे शहीद गणेश हांसदा के परिवार से कर के चल दिये।

वो इसलिए कि नेता तो नेता होता है, उसका काम ही होता है, झूठ बोलना, बक-बक करना और बक-बक कर चल देना। लेकिन जनता तो जनता है, उसे तो अपने नेता पर विश्वास होता है कि उसने कहा है, तो करेगा ही, पर जरा गणेश हांसदा के गांव चले जाइये और उनके परिवार से मिल आइये, आपको पता चल जायेगा कि इन नेताओं ने किस प्रकार उक्त शहीद के परिवारों के साथ क्रूर मजाक किया है।

इस शहीद परिवार को जो शहीद होने के बाद केन्द्र सरकार से जो राशि मिलती है, वही सिर्फ मिली, बाकी जो नेताओं ने उनसे वायदा किया था, वो वायदे आज भी अधूरे हैं, और शायद अधूरे रहेंगे भी, क्योंकि झारखण्ड के नेताओं के वायदे ढपोरशंखी के सिवा और कुछ नहीं होते, यहां के नेता अपने आप में अनोखे हैं, जब गायब होंगे तो ऐसे गायब होंगे जैसे गधे के सिर से सींग, मतलब समझ ही गये होंगे।

सरकार या प्रशासन नहीं, शहीद के परिवार के लोग अपने पैसे से बनवा रहे हैं पार्क, पर न तो सरकार और न ही प्रशासन को लज्जा आती हैं

जरा देखिये कितने दुर्भाग्य की बात है, गणेश हांसदा के परिवार को केन्द्र से 60 लाख रुपये मिलते हैं और उस राशि में से करीब 15-20 लाख रुपये शहीद के परिवार वाले शहीद गणेश हांसदा के नाम पर बननेवाले पार्क पर खर्च कर रहे हैं, ताकि उनके बेटे को लोग याद कर सकें, अब सवाल उठता है कि क्या शहीदों के नाम पर बननेवाले पार्क या प्रतिमाएं भी शहीद के परिवारों को मिलनेवाली राशि से बनेंगे, या सरकार बनायेगी, या प्रशासनिक अधिकारी बनवायेंगे?

लोग बताते है कि शहीद गणेश हांसदा के बड़े भाई दिनेश हांसदा को बहरागोड़ा विधायक समीर मोहंती ने कहा था कि शहीद गणेश हांसदा की एक प्रतिमा वे यहां स्थापित करायेंगे, पर सही में करा कौन रहा हैं? उत्तर है – शहीद गणेश हांसदा के परिवार के लोग। लोग यह भी बताते है कि जब गणेश हांसदा के शहीद होने की खबर मिली तो राज्य के एक मंत्री संभवतः चम्पई सोरेन कोसाफालिया गांव पहुंचे, परिवार के सदस्यों को सांत्वना दी और राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से शहीद गणेश की मां कापरा हांसदा से बात भी कराई।

उस वक्त दोनों ने कहा था कि शहीद के परिवार में से किसी एक को सरकारी नौकरी दी जायेगी, पर सरकार नौकरी आज तक नहीं मिली। मुख्यमंत्री का आश्वासन भी यहां बेकार चला गया। अब सवाल उठता है कि जब आप नौकरी दे ही नहीं सकते, या आप कह सकते है कि हमारे यहां इसका कोई प्रावधान ही नहीं हैं, तो फिर आप ऐसा झूठा आश्वासन देते ही क्यों हैं? जबकि गलवान घाटी में शहीद हुए पश्चिम बंगाल के वीरभूम निवासी राजेश उरांव की बहन शकुंतला उरांव को बंगाल सरकार ने नौकरी दे दी, यही नहीं बिहार में भी शहीद की भाभी को एक नौकरी दे दी गई है, पर झारखण्ड में ऐसा कुछ भी नहीं?

आज भी शहीद का परिवार कच्चे मकान में रहने को विवश है। प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए गणेश हांसदा का परिवार प्रखण्ड कार्यालय में कागजात भी जमा कराया, पर क्या मजाल कि वहां का प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, अनुमंडलाधिकारी या उपायुक्त शहीद के परिवार को सम्मान दिलाने के लिए पहल कर दें, उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक मकान का निर्माण करवा दें।

पूछिये राज्य सरकार से कि उसने क्यों कहा कि वो शहीद के परिवार को पांच एकड़ जमीन देंगे, और अगर दे दिया तो वो पांच एकड़ जमीन कहां हैं, ताकि हम जाकर उसका फोटो खींच लोगों को दिखा सकें कि देखिये ये हेमन्त सरकार ने जो शहीद गणेश हांसदा के परिवार से वायदा किया, वो पूरा कर दिया। अरे कितने शर्म की बात है कि एक गैस कनेक्शन लेने के लिए भी शहीद के परिवार को पापड़ बेलने पड़ते हैं, उससे मोटी रकम मांगी जाती है।

पूछिये हेमन्त सरकार और उनके अधिकारियों से कि शहीद के परिवार के लिए पेट्रोल पम्प दिलवाने के लिए उन्होंने केन्द्र सरकार से अब तक क्या पहल की? पूछिये भाजपा के सांसदों से भी कि आदर्श ग्राम योजना के तहत जो आप आदर्श ग्राम चुनते हो, वो गणेश हांसदा के परिवारों के गांव को आप आदर्श ग्राम के लिए क्यों नहीं चुनते और उसे आदर्श क्यों नहीं बनाते, अगर आप आदर्श ग्राम बनाते तो निश्चय ही, उस गांव में लोग बांस-बल्लियों से बिजली के तार नहीं ले जाते, वहां की गलियों की सड़कें मिट्टियों के दलदल से नहीं होते, कम से कम शहीद की एक प्रतिमा वहां अब तक जरुर लग गई होती।

शहीद के परिवार अपने पैसों से पार्क नहीं बनवा रहे होते, सच पूछो तो नेताओं ये अपने आप में तुम्हारे माथे पर कलंक हैं, जो काम तुम्हें करना चाहिए, वो काम शहीद का परिवार कर रहा हैं, उस पैसे से कर रहा है, जिस पर सिर्फ उसका हक हैं और तुमने उसके हक के पैसे पर, वह भी मरणोपरांत कब्जा कर लिया, धिक्कार हैं तुम पर, कैसे नेता हो तुम? कैसे तुम्हें नींद आ जाती है? हम तो जब से सुने हैं, हमारी नींद ही गायब है।

हमें लगता है कि झारखण्ड के मंत्रियों-विधायकों व प्रशासनिक अधिकारियों के इन हरकतों को देखकर शहीद गणेश हांसदा की आत्मा भी कांप गई होगी, वे जरुर सोच रहे होंगे कि किन लोगों के लिए उन्होंने देश की रक्षा करते-करते हंसते-हंसते प्राणोत्सर्ग कर दिया, ये लोग तो उनके मां-पिता को भी ठीक से जीने नहीं दे रहे, जबकि होना तो ये चाहिए था कि शहीदों के लिए सरकार का पुरा कुनबा ही कोसाफालियां गांव पहुंचता और कोसाफालियां गांव चमक उठता, पर शायद इसी का नाम झारखण्ड है।

पता नहीं किसने ये कहा था – शहीदों की चित्ताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरनेवालों का, बाकी यही निशां होगा। ये पंक्तियां लिखनेवाला व्यक्ति जब कभी कही मिलेगा तो उनसे कहूंगा कि अब इन पंक्तियों को बदल दें और शहीदों की जगह पर नेताओं के नाम लिख दें।