पत्रकारों और कोल माफियाओं के बीच हुए एमओयू की पहली किस्त 23 मार्च को कोयला तस्करों ने किया जारी, अखबारों और पत्रकारों की औकात के मुताबिक 1000 रु से लेकर 5000 रु तक किया गया भुगतान
बेरमो की तेजतर्रार महिला पत्रकार अलका मिश्रा की एक खबर ने कोयलांचल में रहनेवाले उन पत्रकारों की नींद उड़ा दी हैं। जो कोयला तस्करी में लिप्त कोल माफियाओं से उपकृत होते हैं, उनसे कमीशन प्राप्त करने के लिए एमओयू तक कर डालते हैं और उसके बदले में समाचार न छापने का संकल्प भी लेते हैं।
इस कार्य में रांची से प्रकाशित होनेवाले वे सारे अखबारों के पत्रकार शामिल हैं, जो स्वयं को सर्वाधिक सुसंस्कृत होने व सदाचारी होने का दावा करते हैं। इन्हीं अखबारों में वो अखबार भी हैं, जो स्वयं को अखबार होने का दावा नहीं करता, बल्कि खुद को आंदोलन कहने में गर्व महसूस करता है।
अलका मिश्रा विद्रोही24 को बताती हैं कि राँची एक्सप्रेस में कोयला सिंडिकेट और पत्रकारों के बीच हुआ एमओयू शीर्षक से छपे उनके समाचार के बाद बेरमो अनुमंडल के जारंगडीह-कथारा और बीटीपीएस क्षेत्र के पत्रकारों के बीच खलबली मच गई हैं। आनन-फानन में ऐसे लोगों ने एक बैठक बुलाई और अपने कारनामों का पर्दाफाश करनेवाले संवाददाता को जी भर कर कोसा, फिर आपस में ही उलझे और एक-दूसरे पर इल्जाम लगाया कि आखिर उनके इस गोपनीय मीटिंग की खबर कैसे लीक हो गई! उसके बाद आगे की रणनीति तय की गई।
अलका मिश्रा यह भी बताती है कि जिन राजनीतिक दलों का नाम इसमें आया हैं, वे भी अब इससे पल्ला झाड़ रहे हैं और खुद को पाक-साफ बताने के लिए उनसे सम्पर्क कर रहे हैं, साथ ही इस प्रकार की खबर न लिखने का दबाव भी बना रहे हैं। जबकि सत्य स्वतः सामने आकर उनकी सारी कुकर्मों को पोल खोलकर रख दे रहा है।
अलका मिश्रा यह भी कह रही हैं कि उन्हें इस बात की पक्की जानकारी है कि पत्रकारों और कोल माफियाओं के बीच हुए एमओयू की पहली किस्त का भुगतान 23 मार्च की शाम तक कोयला माफियाओं द्वारा कर दिया गया है। यह भुगतान अखबार और पत्रकारों की औकात के मुताबिक 1000 रु से लेकर 5000 रु तक किया गया हैं। तब तक के लिए उनके कोयला तस्करी में कोई खलल नहीं हो तो अगले महीने की किस्त भी समय पर मिल जाएगी।
अलका मिश्रा बताती है कि इसी दौरान उनके पास एक अनजान नंबर से कई फोन कॉल आए और संबंधित व्यक्ति उनसे मुलाकात करने की इच्छा जाहिर की पर उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया। अलका कहती है कि अब तो यह देखना है कि सीसीएल की संपत्ति और देश के राजस्व पर ये कोल माफिया कितना डाका डाल सकते हैं और उसमें यहां के पत्रकारों की आगे क्या भूमिका रहती है?
जब सबूत है तो नाम भी छपना चाहिए