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प्रथम चरण के मतदान ने दलबदलूओं को दिया झटका, महागठबंधन जनता की बनी पहली पसंद

प्रथम चरण के संपन्न मतदान ने सभी दलों के दलबदलूओं को एक बहुत बड़ी सीख दी है, कि वे चुनाव के दौरान जो थोक भाव में दलबदलू नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करते हैं, उन पर जितना जल्दी रोक लगा ले, उतना अच्छा है, क्योंकि जनता इन दलबदलूओं की तरह दलबदलू नहीं, इस बार जो चुनाव परिणाम आयेंगे, वे दलबदलूओं के सेहत के लिए ठीक नहीं हैं, लोगों ने इन दलबदलू नेताओं को इस बार सबक सीखा दी हैं, और वे झारखण्ड विधानसभा इस बार पहुंच पायेंगे, इसको लेकर प्रश्न चिह्न उत्पन्न हो गया है।

प्रथम चरण के मतदान ने यह भी दिखाया कि हम भले ही 21वीं सदी में हैं, पर हम आज भी जाति-व्यवस्था में इतने जकड़े हुए हैं कि चुनाव में जातिगत उम्मीदवार को ही प्राथमिकता देते हैं, उसमें सभी एक समान नजर आये, चाहे खुद को बुद्धिजीवी कहलानेवाले लोग ही क्यों न हो, ये आनेवाले समय के  लिए खतरे की घंटी है, लोकतंत्र के लिए खतरा भी है।

डालटनगंज में एक राष्ट्रीय पार्टी का विधायक डंके की चोट पर एक चैनल में कहता है कि यह उसका इलाका है, यहां दूसरों का क्या काम? यानी लोकतंत्र में जहां कोई भी प्रत्याशी कही भी जा सकता है, वहां वह चुनौती देता है कि दूसरे दल का प्रत्याशी कैसे उसके इलाके में आ गया, और यह कहनेवाला कोई दुसरा नहीं, खुद को राजनीति में ज्यादा शुचिता एवं शुद्धता की बात करनेवाली पार्टी के प्रत्याशी का यह संवाद है।

प्रथम चरण के आज के चुनाव ने संकेत दिया कि उन्हें पीएम मोदी पर जितना विश्वास है, उतना ही अविश्वास राज्य के मुख्यमंत्री पर हैं, जनता कहती है कि अमित शाह कहते है कि मोदी को देखिये और वोट दीजिये, पर मोदी के नाम पर वोट देंगे तो फिर मोदी राज्य के मुख्यमंत्री पद पर रघुवर दास को ही बैठा देंगे, ऐसे में उनका राज्य और उनका इलाका फिर बोकरादी का शिकार हो जायेगा, इसलिए पांच साल झेल लिया, अब परिवर्तन ही एकमात्र उपाय है, यानी ये संकेत है कि महागठबंधन लोगों की पहली पसन्द बन चुका है और जहां महागठबंधन का प्रत्याशी कमजोर हैं, वहां लोगों ने निर्दलीय के माथे सेहरा सजा दिया है।

आज नक्सलियों ने गुमला में तहलका मचाने का काम किया था, और चुनाव आयोग की बातों को सही करने की कोशिश की थी, आइएएस/आइपीएस के संवादों पर मुहर लगाने की कोशिश की थी, पर जैसे-जैसे दिन बीतता गया, वैसे-वैसे विभिन्न मतदान केन्द्रों पर मतदाताओं की लगी कतार, नक्सलियों की ताकत को कम करता चला गया, यानी नक्सलियों का आज के दिन नहीं चल पाना इस बात का भी संकेत था कि रघुवर दास और अमित शाह शायद ठीक ही कहते है कि नक्सलवाद का झारखण्ड से सफाया हो चुका है।

प्रथम चरण के आज संपन्न हुए चुनाव ने निश्चय ही महागठबंधन को ताकत दे दी हैं, पर महागठबंधन के एक प्रत्याशी द्वारा मतदान केन्द्र पर तमंचा लेकर पहुंचना, उनके लिए संदेह भी उत्पन्न कर रहा हैं, अच्छा रहेगा कि आनेवाले समय में महागठबंधन के प्रत्याशी इन सब से दूर रहे, नहीं तो जनता का मूड बदलते देर नहीं लगता।

फिलहाल आज महागठबंधन के लोग खाने में मिठाई का प्रयोग कर सकते हैं, भाजपा के लोगों की हमारी सलाह है कि हो चुका, सो हो चुका, आगे के लिए मेहनत करें, पर हमें लगता है कि जनता ने शायद निश्चय कर लिया है, और क्या निश्चय किया हैं, वो तो अब झारखण्ड का बच्चा-बच्चा जान चुका है। ऐसे भी प्रथम चरण में लगभग 65 प्रतिशत मतदान बहुत कुछ कह दे रहा है, सुनिये जनता की आवाज को…