अपनी बात

झारखण्ड की वो पहली आदिवासी बालिका, जिसने भारतीय वायुसेना के विमान से चार बार छलांग लगा दी थी

बात 2006 की है। उस वक्त मैं ईटीवी बिहार में कार्यरत था, चूंकि हर चैनलों/अखबारों में काम कम, घटिया स्तर की राजनीति ज्यादा होती है। मैं भी घटिया स्तर की राजनीति का शिकार हो गया और हमें सुनियोजित साजिश के तहत रांची से डालटनगंज, फिर छह महीने बाद ही धनबाद स्थानान्तरित कर दिया गया। वहां मैंने एक से एक प्रतिभा देखी, जिस पर किसी का ध्यान ही नहीं था। उन्हीं में से एक प्रतिभा ऐसी मिली, जो भारतीय वायुसेना के एएन 32 विमान से एक बार नहीं, बल्कि चार बार छलांग लगा चुकी थी, उस वीर आदिवासी बालिका का नाम था – रसना मार्डी।

रसना मार्डी उस वक्त धनबाद के भारत सेवक समाज महिला महाविद्यालय की छात्रा थी। पता चला कि वो हाल ही में उत्तर प्रदेश के आगरा से लौटी है, आगरा में उसने कमाल कर दिखाया है, वो एक नहीं बल्कि चार-चार बार भारतीय वायुसेना के विमान एएन 32 से छलांग लगा चुकी है, जैसे ही मुझे पता चला मैंने उस वक्त के एनसीसी अधिकारी व सैन्य अधिकारी कर्नल प्रदीप दीक्षित से मिला। कर्नल प्रदीप दीक्षित ने हमें बताया कि मैं जो सुना हूं, उस बात में दम है। कर्नल दीक्षित ने तो यहां तक कह दिया कि रसना इतने पर भी नहीं रुक रही थी, बल्कि उसका आत्मविश्वास इतना मजबूत था, कि वो और भी छलांग लगाने के लिए उत्सुक थी, पर वहां मौजूद सैन्य अधिकारियों ने उसे ऐसा करने से रोका।

कर्नल प्रदीप दीक्षित उस वक्त धनबाद के एनसीसी कैडेट्स के प्रशासकीय सैन्य अधिकारी थे। उन्होंने अपने अंदर कार्य कर रहे सैन्य अधिकारियों को कहा कि वो जल्द रसना को बुलाए। जल्द ही रसना धनबाद स्थित एनसीसी मुख्यालय में पहुंच गई। चेहरे पर बराबर हल्की मुस्कान, चुस्त-दुरस्त, आत्मविश्वास से लवरेज रसना जब हमारे पास आई, तो मैं देखते ही रह गया। उसने हमें बताया कि वो भारत सेवक समाज महिला महाविद्यालय की छात्रा है, उस वक्त वह इंटर में पढ़ रही थी। उसके पिता लखन मार्डी, राजमिस्त्री है। वह सेना में ही जाना चाहती है, पर जो उसकी आर्थिक स्थिति थी, उसके पारिवारिक हालात थे, वो लग नहीं रहा था कि वो कामयाब हो पायेगी, पर उसने कहा था कि कोशिश करने से क्या नहीं होता?

पता नहीं, रसना मार्डी कहां हैं?  रसना से हमारी दुसरी मुलाकात तब हुई, जब हमें पता चला कि धनबाद के भौरा के पास कुष्ठरोगियों के एक इलाके में कुष्ठरोगियों ने जिन्हें ईश्वर ने न तो हाथ दिये और न ही पैर, पर उन्होंने एक बड़ा सा तालाब खोद दिया, वही वह रसना अपने पिता लखन मार्डी के साथ मिली थी, उसके पिता को हमने बधाई दी थी, कि आपकी बेटी ने इतिहास रच दिया है, और इतिहास रचा था, रसना मार्डी के पिता लखन मार्डी ने भी जो अपने सहयोगियों के साथ तालाब खुदवाने में भी विशेष योगदान दे दिया था।

आम तौर पर धनबाद में जब भी कोई बड़ा सरकारी प्रोग्राम होता तो ले-देकर एक-दो ही लोग होते, जिनका बाप-दादा के समय से सम्मान किया जाता था, मैंने इस परम्परा को रोकने की कोशिश की,साथ ही उस वक्त के तत्कालीन डीसी बीला राजेश को कहा था कि इस प्रकार की पोंगापंथी परम्परा को बंद करिये। धनबाद में ऐसी-ऐसी प्रतिभा है, जिन्हें आज सम्मान मिलना चाहिए, न कि ऐसे लोगों को जो झूठ बोलते हो, जिनकी कथनी-करनी में अंतर हो, जिनके आचरण अशोभनीय है। हमें खुशी हुई कि परम्पराएं टूटी। बीला राजेश ने इन इतिहास बनानेवाले बच्चों को पुरस्कृत किया और हर संभव मदद की सहयोग का भरोसा दिया।

पर सच्चाई यह है कि जिस आदिवासी वीर बालिका रसना ने झारखण्ड के लिए इतिहास बनाया। पहली एनसीसी कैडेट्स बनी, जो एएन 32 विमान से चार बार छलांग लगाई, जहां से छलांग लगाने के लिए अच्छे-अच्छों की हवा निकल जाती है, वो वीर बालिका कहां खो गई, किसी को पता नहीं, हमारे धनबाद छोड़ने के बाद, न तो जिला प्रशासन ने और न ही राज्य सरकार ने उस वीर आदिवासी बालिका को सम्मान व सहयोग दिया और वो रसना इस भीड़ में खो गई, पर मैं जब तक जिंदा रहुंगा, उस वीर बालिका को भूल नहीं सकता और न ही उसके पिता को, जिसने लाख झंझावातों को सहकर भी वो काम किया, जिसे कोई कर ही नहीं सकता। हमें खुशी है कि मैंने इस वीर आदिवासी बालिका पर एक न्यूज बनाया, जो उस वक्त एक्सक्लूसिव लिख कर चली, आज भी उस विजूयल को देखता हूं, उस न्यूज को देखता हूं और जब अंत में कैमरामैन शाहनवाज के साथ, कृष्ण बिहारी मिश्र वाइस ओवर में सुनाई पड़ता हैं, तो आनन्दित हो जाता हूं।