2019 चुनाव के पूर्व कुरमियों को आदिवासी का दर्जा दे सरकार, नहीं तो अंजाम भुगतने को तैयार रहे
रांची के मोरहाबादी मैदान में आज कुरमियों ने महाजुटान रैली के माध्यम से अपनी ताकत दिखाई और सरकार को आगाह किया कि 2019 की लोकसभा-विधानसभा चुनाव के पूर्व राज्य सरकार कुरमियों को आदिवासियों का दर्जा दें, नहीं तो उसके गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहे। इस रैली में भाजपा, जदयू, झामुमो से जुड़े नेता ने शिरकत किया, वहीं आजसू के सुदेश महतो और चंद्र प्रकाश, झामुमो के अमित महतो ने इस महाजुटान रैली से स्वयं को दूर रखा।
भाजपा के टिकट पर कई बार लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुके शैलेन्द्र महतो ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कुरमियों के आदिवासी बनने से उनका हक कोई नहीं छीन सकता। कुछ लोग आदिवासियों को भड़काने में लगे हैं और अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं। इतिहास साक्षी है कि राज्य बनने के बाद आदिवासियों की जमीन कुरमियों ने नहीं बल्कि बाहरियों ने छीना। झारखण्ड अलग राज्य बनाने में भी कुरमियों का कम योगदान नहीं है, कुरमियों को आदिवासी बनाने की मांग कोई नहीं भी नहीं, ये मांग बहुत पुरानी है।
पूर्व ऊर्जा मंत्री लाल चंद महतो का कहना था कि 1931 से लेकर 1952 तक कुरमी सूची में शामिल रहे, मगर बाद में इन्हें हटा दिया गया। यह मांग कोई नहीं हैं, बहुत पुरानी है। आज कुरमी अपनी मांगों को लेकर एकजुट है, इसलिए अब सरकार को उनकी मांग पर विचार करना होगा, कुरमियों को उनका हक देना होगा।
रांची के सांसद रामटहल चौधरी ने कहा कि कुरमी कोई दल नहीं हैं,, जब तक इन्हें आदिवासी की सूची में नहीं शामिल कर दिया जाता, अब यह समुदाय चुप बैठनेवाला नहीं, कुरमियों ने भी झारखण्ड निर्माण में उतनी ही कुर्बानी दी हैं, जितनी अन्य लोगों ने, ये सभी को जान लेना चाहिए।
जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो का कहना था कि झारखण्ड का गठन हमारे पूर्वजों के शहादत पर हुआ है, इसमें किसी को गलतफहमी नहीं रहना चाहिए। झारखण्ड आंदोलन के लिए शक्तिनाथ महतो, विनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो, सुनील महतो आदि नेताओं ने शहादत दी है। उन्होंने कहा कि जो आदिवासी नेता ये कहते है कि कुरमियों ने उनकी जमीन लूटी तो वे प्रमाण दें, अगर सिद्ध हो गया तो वे लोकसभा से त्यागपत्र दे देंगे। लोगों को मालूम होना चाहिए कि सीएनटी-एसपीटी के बदलाव पर रोक लगाने का काम, कुरमियों की ही देन है।