अपनी बात

रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों का समूह गिरिडीह व जामताड़ा के इंफ्लूएंसरों/यूट्यूबरों के लिए आंसू बहायेगा और अपने सदस्य के साथ कोई भाजपा नेता उसके सम्मान के साथ खेलेगा तो ये मौन व्रत धारण कर लेंगे

जामताड़ा के इंफ्लूएंसर/यूट्यूबर रंजीत तिवारी जब सड़क दुर्घटना में घायल होता है, तो रांची प्रेस क्लब के कथित माननीय पदाधिकारी उसके सड़क दुर्घटना में घायल हो जाने से बड़े ही दुखी हो जाते हैं, साथ ही जैसे ही उन्हें यह पता चलता है कि उक्त इंफ्लूएंसर/यूट्यबर रंजीत तिवारी को देखने के लिए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी धनबाद के अशर्फी हास्पिटल पहुंचे हैं तो वे इरफान अंसारी को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करते हैं और यह भी लिखकर साधुवाद देते हैं कि सरकार और उनके नुमांइदों में इस तरह की संवेदनशीलता बनी रहनी चाहिए।

अब आगे देखिये, यहीं रांची प्रेस क्लब के कथित माननीय पदाधिकारी जब गिरिडीह में एक पत्रकार पर कथित जानलेवा हमला होता है और उसे लेकर जब धनबाद प्रेस क्लब के लोग विरोध प्रदर्शन करते हैं, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के नाम पर उपायुक्त धनबाद को ज्ञापन सौंपते हैं तो ये रांची प्रेस क्लब के कथित महान माननीय पदाधिकारी उनकी मांगों का समर्थन करते हुए अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग भी कर देते हैं।

लेकिन जैसे ही भाजपा का एक बड़ा नेता, सांसद दीपक प्रकाश, दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार विनय चतुर्वेदी पर सोशल साइट के माध्यम से उनके सम्मान के साथ खेलने की कोशिश करता है, तो इन सारे रांची प्रेस क्लब के कथित महान पदाधिकारियों का समूह मौन व्रत धारण कर लेता है और यह मौन व्रत अनिश्चितकालीन समय तक चलता रहता है, क्योंकि बताया जाता है कि ऐसी हरकत करने से रांची प्रेस क्लब के कथित माननीय पदाधिकारियों को बड़ा ही सुकून मिलता है।

ऐसे तो सच पूछा जाय, तो रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों का काम इस प्रकार के राजनीतिक बयानबाजियों से बचना और प्रेस क्लब कैसे चले, उसकी देखरेख कैसे हो, सदस्यों को बेहतर सुविधा कैसे मिले, प्रेस क्लब से जुड़े सदस्यों की सेवा में कोई त्रुटि न हो, यही सब देखना है। लेकिन सच्चाई यही है कि रांची प्रेस क्लब के कथित माननीय पदाधिकारियों का समूह इन सारी बातों को छोड़कर जितना उलूल-जुलूल काम हैं, उसी पर ज्यादा ध्यान देते हैं।

एक बात और इन्होंने जो मार्गदर्शक मंडली बनाई हैं, उन मार्गदर्शक मंडली में शामिल कुछ सदस्यों की तो बात ही निराली है। तभी तो अध्यक्ष के खिलाफ निन्दा प्रस्ताव पारित होता है और अध्यक्ष उक्त निन्दा प्रस्ताव के पारित होने के बावजूद अध्यक्ष पद पर बना रहता है और बाद में जिसने निन्दा प्रस्ताव पारित किया, उस निन्दा प्रस्ताव को वापस भी ले लेता हैं। मतलब है न आश्चर्य की बात। ऐसे में इनलोगों से रांची प्रेस क्लब के सदस्यों के सम्मान की रक्षा करने की बात तक सोचना मूर्खता से कम नहीं।

ज्ञातव्य है कि विनय चतुर्वेदी स्वयं रांची प्रेस क्लब के सदस्य है। उसके बावजूद भी किसी भी रांची प्रेस क्लब के अधिकारी ने उनके मुद्दे पर मुंह तक नहीं खोला और न ही दीपक प्रकाश से इस मुद्दे पर बातचीत की, कि आखिर उन्होंने एक वरिष्ठ पत्रकार व रांची प्रेस क्लब के सदस्य के साथ इस प्रकार की हरकत क्यों की? उन पर यह आरोप क्यों लगाया कि उन्होंने सांसद निधि की एक करोड़ रुपये की राशि की डिमांड उनसे की थी?

सत्यनिष्ठ पत्रकार, जिनको तीन-पांच से कोई मतलब नहीं, वे साफ कहते हैं कि रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने विनय चतुर्वेदी के मुद्दे पर मौन व्रत धारण कर सिद्ध कर दिया कि ये विशुद्ध भाजपाई हैं। भाजपा समर्थक है। भाजपा नेताओं के पदचिह्नों पर चलकर ही वे अपना तथा प्रेस क्लब का हित चाहते हैं। इसलिए वे भाजपा नेताओं के आगे सर उठाकर चल सकें या बोल सकें, ऐसी उनमें हिम्मत ही नहीं।

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