अपनी बात

शिकारी (नीतीश कुमार) आयेगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा लोभ में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन आप फंसना नहीं

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से सीखिये, वहां भी कुछ दिन पहले बिहार में कुर्सी कुमार, पलटू राम, सुशासन बाबू, आदि पर्यायवाची नामों से विख्यात व वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने के लिए कुछ भी करने को तैयार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ओडिशा पहुंचे थे। नवीन पटनायक उनके मिले भी पर वो भाव नहीं दिया, जिस भाव को लेकर पहुंचे थे। उनके हां में हां नहीं मिलाया, जिसको लेकर नीतीश कुमार ओडिशा पहुंचे थे और शायद यही वो विशेष खुबियां नवीन पटनायक में हैं, जो उन्हें देश के अन्य राजनीतिज्ञों से अलग कर देती है।

मतलब वो बेकार की राजनीति के पचड़े में न पड़कर वो ओडिशा की जनता का भला कैसे हो, उस पर ध्यान देते हैं। जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कब क्या कह देंगे, क्या कर देंगे, खुद उन्हें ही नहीं पता। उसके एक नहीं, कई उदाहरण हैं। कभी लालू के साथ गलबहियां डालकर बिहार में नीतीश कुमार खुब शासन किये, फिर उन्हें ही गच्चा देकर भाजपा के साथ हो लिये।

इसी दौरान जब वे लालू के साथ गलबहियां डालकर बिहार में शासन कर रहे थे, उसी दौरान वे बिहार विधानसभा में एक बार कह दिये, मिट्टी में मिल जाऊंगा, पर आप (भाजपा) के साथ कभी नहीं जाउंगा। ज्यादा दिन नहीं बीता फिर से भाजपा के साथ मिलकर बिहार में शासन में भी आ गये। अब फिर भाजपा को तलाक देकर, लालू के चरणकमलों में लोट गये हैं।

वे (नीतीश कुमार) कह रहे हैं कि आनेवाले समय में वे बिहार के मुख्यमंत्री पद पर तेजस्वी को बैठायेंगे और खुद केन्द्र की राजनीति करेंगे, जबकि शत प्रतिशत सच्चाई है कि वे अपने स्वभावानुसार फिर लालू यादव की पार्टी को गच्चा देंगे और भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं के आगे अपना सर झूकायेंगे। इसलिए हेमन्त सोरेन से राज्य की जनता आशा करेगी कि वो ऐसे नेताओं से सावधान रहें।

नीतीश कुमार और हेमन्त सोरेन में अंतर

नीतीश कुमार और हेमन्त सोरेन में आकाश-जमीन का अंतर है। नीतीश जहां दिखावा करते हैं, वहीं हेमन्त सोरेन दिखावा नहीं करते। बल्कि राज्य की जनता के लिए वे मर-मिटने को भी तैयार रहते हैं। नहीं तो नीतीश कुमार बताये कि जब कोरोना काल था, तो दूसरे राज्यों में रहनेवाले बिहार के मजदूरों को सकुशल बिहार लाने के लिए क्या किया?

झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने तो तेलंगाना से झारखण्ड तक के लिए स्पेशल ट्रेन चलवा दी। यहीं नहीं कई मजदूरों को एरोप्लेन से भी झारखण्ड बुलवाया। थानों में गरीबों के लिए भोजनालय की व्यवस्था कर दी। यही कारण रहा कि हेमन्त देखते-देखते पूरे देश में लोकप्रियता के शिखर को छू लिये। लेकिन नीतीश कुमार क्या कर रहे थे, ऐसा कोई कार्य उन्होंने किया हैं तो देश की जनता को बताएं।

नीतीश कुमार लगभग बीस वर्षों से बिहार में शासन कर रहे हैं। फिर भी बिहार की जनता रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर शिक्षा के लिए बिहार में नहीं मिलती, बल्कि दूसरे राज्यों में दिखाई पड़ती हैं। इस नारकीय स्थिति को पैदा करनेवाले ये नीतीश कुमार उसके बाद भी पीएम मोदी व अमित शाह के खिलाफ तो खुब जरुरत पड़ने पर जब वे लालू के साथ होते हैं तो बरसते हैं, लेकिन नीतीश को भी अच्छी तरह पता है कि गुजरात के सूरत, अहमदाबाद, वडोडरा जैसे शहरों में कितने बिहारी मजदूर पेट के लिए मजदूरी करते हैं।

मतलब साफ है कि जो व्यक्ति 20 वर्षों के अपने शासनकाल में बिहार को शिखर पर पहुंचाना तो दूर, बिहार की जनता को दो रोटी तक नहीं पहुंचा सका वो भारत के प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने का दिवास्वपन देख रहा हैं, यानी वो चाहता है कि पूरे देश को बिहार की जनता की तरह भूखों मार दें। स्वास्थ्य सेवा के लिए तरसा दें। शिक्षा के लिए तरसा दें।

लेकिन हेमन्त सोरेन के तो शासन के 20 साल क्या अभी चार साल भी नहीं हुए हैं, फिर भी देखा जाय तो वे नीतीश कुमार से हर मामले में 20 हैं। फिलहाल नीतीश कुमार को जाति का कीड़ा काटे हुए हैं। यानी जो 20 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहा, वो जाति में उलझा हुआ है। जबकि दूसरे राज्य अपने शहरों को साइबर सिटी बनाने में लगे हैं। स्मार्ट सिटी बनाने में लगे हैं। अपनी राजधानी को बेहतर बनाने में लगे हैं।

नहीं तो बताये नीतीश कुमार कि पटना की सड़कों पर कितने आंध्रप्रदेश, तेलगांना, तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों के लोग या झारखण्ड के लोग चाय बेचकर जीवन निर्वाह कर रहे हैं। दूसरे राज्यों में तो इस बात के कई प्रमाण हैं, कि बिहार और बिहारियों की वहां क्या इज्जत हैं?

ऐसे में देश का कोई राज्य जहां भाजपा का शासन नहीं भी हो, वो चाहेगा कि ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री बने या ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व में हम केन्द्र की सत्ता को बदलें, जिसने अपने राज्य को नरक बनाकर रख दिया वो भारत की सत्ता संभालें। हाल ही में पटना, तेलंगाना के मुख्यमंत्री आये। पटना के पत्रकारों ने नीतीश कुमार के सामने ही पूछ डाला कि प्रधानमंत्री कौन होगा? तेलगांना के मुख्यमंत्री ने इस प्रश्न पर चुप्पी साध ली।

भाई ऐसे व्यक्ति का नाम कौन लेगा, जिस राज्य में लोग आना पसन्द नहीं करते हो। जहां कोई पूंजी निवेश करने को तैयार नहीं हो। जहां शराबबंदी होने पर भी कुछ-कुछ महीनों के अंतराल में बड़ी संख्या में जहरीली शराब से लोग मर जाया करते हो। जहां कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज ही न हो। जहां गंदगी का अम्बार हो। जहां यादव-कुर्मी-मुसलमान के नाम पर राजनीति हो और बाकी जातियों व समुदायों को तुच्छ समझा जाता हो। जहां आयाराम-गयाराम वाली कारनामें शीर्षस्थ नेता करता हो। उसकी पूरे देश में क्या इज्जत?

आपको तो याद ही होगा, जब एक बार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कह डाला था कि बिहार के लोग 500 रुपये का टिकट कटा कर आते हैं और दिल्ली में बेहतर स्वास्थय सेवा का लाभ उठा लेते हैं। क्या इस तमाचे का भी जवाब नीतीश कुमार या लालू यादव के पास उस वक्त था, अरे भाई जवाब तो देना चाहिए था न, क्योंकि 35 सालों से तो आप ही लोग सत्ता में हो और अब बोलने का आपको अधिकार भी नहीं कि बिहार को किसने बर्बाद किया?

अंत में जब बिहार को बर्बाद कर ही दिया तो प्लीज इतना करिये, भारत को बर्बाद करने के लिए देश के अन्य नेताओं को मत बरगलाइये। आराम से बिहार में रहकर और बिहार को खोदिये। 40 सीटें हैं वहां। पूरा जीतने का कोशिश कीजिये न। हालांकि मैं जानता हूं कि कुछ भी कर लीजियेगा तब भी 20 का आकड़ा भी नहीं पार कर पाइयेगा, यही सच्चाई है।

लेकिन पूरे देश का दौरा ऐसा अकड़कर कर रहे हैं, जैसे लगता है कि किसी तालाब से कमल का फूल तोड़कर उसे मसलने निकले हो। जाइये अभी और कसरत करिये। रही बात झारखण्ड की, तो उसके लिए हेमन्त सोरेन अकेले यहां काफी है, 2024 का चुनाव होगा तो यह शख्स आपसे तो बेहतर ही करेगा। यह ध्रुव सत्य है।