फिल्म

“जय भीम” में दिखाई गई घटनाएं, यहां आम बात है, क्या झारखण्ड पुलिस इस फिल्म को देख, अपने में सुधार लाने की कोशिश करेगी?

इन दिनों पूरे देश में फिल्म “जय भीम” की चर्चा जोरों पर है। यह फिल्म हैं ही ऐसी, कि जो इसे पहली बार देख रहा है, उसकी प्रशंसा करते नहीं थक रहा। फिल्म की कहानी हालांकि तमिलनाडू राज्य की पुलिस और वहां के आदिवासियों से जुड़ी है, लेकिन सच पुछा जाये, तो ये कहानी उस हर स्टेट की है, जहां आदिवासियों का समूह रह रहा हैं और पुलिस की घटियास्तर की मनोवृत्ति का हिंसक शिकार हो रहा है।

अगर मेरे जैसे पत्रकार से पूछा जाय, तो इस फिल्म की कहानी झारखण्ड से भी मिलती जुलती है, जहां फिल्म में दिखाई गई हिंसक वारदातों से मिलती-जुलती घटनाएं बराबर देखने-सुनने को मिलती है। यहां भी हवालातों में निर्दोषों की पिटाई और उसके बाद उसकी मौत की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती है। चाहे यहां सरकार किसी की भी हो, यहां की पुलिस में भी संविधान के प्रति निष्ठा कम, जन-सेवा की भावना कम, पर सत्तारुढ़ दल के नेताओं के प्रति अटूट प्रेम व भक्ति तथा इसकी आड़ में निर्दोषों को झूठे केस में फंसाना, उनके जीवन से खेलना, उन्हे मौत के मुंह में ढकेलने का प्रयास करने का कार्य बराबर देखा गया है।

रघुवर शासन काल में बकोरिया हत्याकांड, जिसकी गूंज संसद में भी सुनाई पड़ी थी और हाल ही में हेमन्त सोरेन के शासनकाल में अवर निरीक्षक रुपा तिर्की हत्याकांड तो आदिवासियों के उपर जूल्म की दर्दनाक दास्तां बयां कर देती है। इसी प्रकार जनसंगठनों से जुड़े लोग आज भी यह कहते नहीं थकते कि आदिवासी बहुल गांवों में आदिवासियों को झूठे केस में फँसा देना, आदिवासियों के लिए संघर्ष करनेवालों पर भी झूठे मुकदमें कर देना यहां की पुलिस का बायें हाथ का खेल हैं, और ये तब भी हो रहा है, जब इस राज्य में एक आदिवासी मुख्यमंत्री का शासन चल रहा है।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो जय भीम फिल्म में दिखाई जा रही घटना, केवल तमिलनाडू पुलिस के चरित्र को ही बयां नहीं करती, बल्कि इसमें झारखण्ड पुलिस भी अपना चेहरा देख सकती है, और इसके लिए जरुरी है कि झारखण्ड पुलिस जिसे राज्य की जनता अब राजदुलारी भी कहती है, उसे जय भीम फिल्म देखनी चाहिए। राज्य के वरीय पुलिस अधिकारियों को यह फिल्म अपने कनीय अधिकारियों के बीच देखना चाहिए, ताकि वे उस फिल्म में अपनी छवि देख सकें।

मेरा तो मानना है कि राज्य सरकार को चाहिए कि यह फिल्म करमुक्त कर दें ताकि राज्य की आदिवासी जनता इस फिल्म को देख कुछ सीख सकें, तथा उन्हें भी अन्याय और उत्पीड़न से लड़ने की ताकत मिल सकें। इस फिल्म में एक अधिवक्ता जो बिना शुल्क लिए सत्य का साथ दे रहा हैं, अदालत में विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य को सत्य साबित करने के लिए जुटा है, बताता है कि आज भी लोग दुनिया में ऐसे हैं जो सत्य को प्रतिष्ठित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, ऐसे लोगों के कारण ही दुनिया चल रही है। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो जनता के बीच अपना विश्वास पूरी तरह खो चुकी झारखण्ड पुलिस अगर जय भीम देखकर अपने मे सुधार लाती हैं, तो यह बहुत बड़ी बात होगी, पर इसकी संभावना कम हैं, क्योंकि उसके द्वारा किये जा रहे वर्तमान में कार्य संदेह को जन्म दे रहे हैं।