अपनी बात

नेताओं, धर्म के तथाकथित ठेकेदारों, अखबारों व धन्नासेठों ने शक्ति की आराधना व दिव्य प्रकाश से खुद को आलोकित करने के पर्व को तमाशा बनाकर रख दिया, कोई पंडाल व डांडिया से मजे ले रहा तो कोई पैसे बना रहा

नेताओं, धर्म के तथाकथित ठेकेदारों, अखबारों व धन्ना सेठों ने शक्ति की आराधना व दिव्य प्रकाश से खुद को आलोकित करने के पर्व को तमाशा बनाकर रख दिया है। कमाल है कोई पंडाल, तो कोई डांडिया नाइट कराकर मजे ले रहा है तो कोई पैसे बना रहा है और आश्चर्य यह है कि सामान्य लोग इनके झांसे में आकर धर्म के मूलस्वरूप से भटकते हुए खुद को तमाशा का एक अंग भी बना रहे हैं।

उपर दिये गये फोटो को ध्यान से देखिये। इस फोटो में आपको नेता, धर्म के तथाकथित ठेकेदार, धन्ना सेठ व मीडिया से जुड़े सभी लोग नजर आ जायेंगे। ये सभी आये हैं धुर्वा के पुराने विधानसभा मैदान में एक करोड़ फूंककर बनाये गये पंडाल का उद्घाटन करने। ये पंडाल कथित तौर पर श्रीरामलला पूजा समिति द्वारा बनाये गये अयोध्या में नवनिर्मित श्रीराम मंदिर का है, जो इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग बड़ी संख्या में इसे देखने के लिए आ रहे हैं।

अब सवाल उठता है कि जिन्हें हम जगन्माता कहते हैं। जिनके आगे हम माथा झूकाते हैं। उनके भव्य दरबार का उद्घाटन कल तक बाल काटने व दाढ़ी बनानेवाले दुकान का उद्घाटन करनेवाले, अब नेता, धर्म के ठेकेदार व धन्ना सेठ करेंगे? क्या हमारा धर्म और हमारी जगन्माता का दरबार तब खुलेगा, जब ये नेता, धर्म के ठेकेदार व धन्ना सेठ एलाउ करेंगे? सवाल ये हैं?

झारखण्ड उच्च न्यायालय के वरीय व चर्चित अधिवक्ता अपने सोशल साइट पर लिखते हैं कि ये पुराना विधानसभा में जो राम मंदिर का प्रारूप बना है ये सनातन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हैं या दुर्गा पूजा के पारम्परिक संस्कृति का नाश करने के लिए। ये लिखते है कि दुर्गापूजा का पाठ आश्विन शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है।

षष्ठी तिथि को बेलवरण में पहले बेल के वृक्ष की पूजा होती है। यह निवेदन किया जाता है कि आपमें भगवान शिव का वास है। आपके फलों में मां दुर्गा का वास है। आप अनुमति दें तो सुबह बेल का जोड़ा फल ले जाकर हम सभी नागरिक हमने जो मिट्टी का मां का स्वरूप बनाया है। उनकी प्राण प्रतिष्ठा कर लें। संध्यावेला में बेल के वृक्ष से मंत्र सिद्धकर निवेदन कर ब्रह्ममुहूर्त में बिना किसी शोरगुल के प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करा दी जाती है।

तब जाकर प्रतिमा में मां का वास होता है। यह भी अनुमति सिर्फ चार दिनों के लिए ही दी जाती है। दशमी को यह शक्ति स्वयं वापस हो जाती है। इसलिए हम विसर्जन कर देते हैं। अगर ना भी करें तो प्रतिमा में मां नहीं रहेंगी। अगर नहीं विश्वास हो तो षष्ठी से लेकर सप्तमी तक की प्रतिमा का ओज और दशमी के दिन की प्रतिमा का ओज देख स्वयं इसकी पुष्टि कर लें।

अभय मिश्र आगे लिखते हैं कि प्रतिपदा से मां दुर्गा का पट खोल दिया गया। ना पूजा की गई और न कलश स्थापना की गई। बेलवरण के उपरांत ही मां की प्राण प्रतिष्ठा और नेत्र-ज्योति का प्रावधान है। मां का दर्शन बिना प्राण प्रतिष्ठा के करना अनुचित और धर्मानुकूल नहीं हैं। तो ये पंडाल और उसमें मां दुर्गा की स्थापना तथा नेताओं व धर्म के ठेकेदारों व मीडिया हाउस को बुलाकर उसका उद्घाटन करवाना नाटक और बाह्याडंबर नहीं तो और क्या है? इससे तो हमारे संस्कृति का नाश होता रहेगा, हमें दुश्मन की क्या आवश्यकता?

रांची के ही एक विद्वान आचार्य मिथिलेश कुमार मिश्र कहते हैं कि वर्तमान में दुर्गापूजा के नाम पर जो भी पंडाल बन रहे हैं और जिस प्रकार से पंडालों के उद्घाटन हो रहे हैं। उसमें नेताओं और धर्म के ठेकेदारों व मीडिया हाउसों का दबदबा बढ़ रहा हैं। ये हमारे धर्म के नाश का आगे चलकर कारण बनेगा। वे कहते हैं कि सबसे बड़ी बात अभी तो चतुर्थी तिथि ही चल रही है।

इसलिए बिना षष्ठी के बिल्वाभिमंत्रण, सरस्वत्यावाहन के, सप्तमी के दिन बिना पत्रिका प्रवेश के, बिना मां के नेत्र खुले पंडाल में मां दुर्गा अपने परिवार के साथ विराज ही नहीं सकती। चाहे आप पंडाल में दस दिन पहले या कुछ दिन पहले ही प्रतिमा क्यों न रख दें। प्रतिमा रखना, पंडाल सजाना और पंडाल में जाकर मां की प्रतिमा को देखना तथा सही मायनों में मां का पंडाल में विराजना अलग-अलग बाते हैं।

षष्ठी के पहले अगर  किसी भी पंडाल में दुर्गा की प्रतिमा रखी हुई हैं। तो वह प्रतिमा मात्र है। उसमें प्राण-प्रतिष्ठा हुई ही नहीं। इसलिए वो प्रतिमा आप देखे या न देखें, दोनों बराबर है और ये धर्मसम्मत नहीं हैं। लेकिन आजकल धन के बढ़ते प्रचलन और प्रभाव ने धर्म के मूल स्वरूप को प्रभावित करना शुरु कर दिया हैं। जिसका विकृत रूप अब दिखाई देने लगा है। वे यह भी कहते है कि आश्चर्य तो तब होता है कि धर्म की दुहाई देनेवाले भाजपा के नेता ही इन कुकृत्यों को बढ़ावा दे रहे हैं। षष्ठी तिथि के दिन बिना बिल्वाभिमन्त्रण के विभिन्न पंडालों में दुर्गा पूजा की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

मतलब विद्वानों के अनुसार धन्ना सेठों व धर्म के ठेकेदारों व मीडिया हाउसों ने अपने अनुसार रांची की जनता को भरमाना शुरु कर दिया और लोग इसके शिकार भी हो रहे हैं। अब तो गरबा नृत्य का भी मार्केंटिंग शुरू हो गया है और इसका आर्थिक फायदा अखबार वाले और चैम्बर के लोग उठाने लग गये हैं। इससे किसी की धार्मिक उन्नति तो नहीं होनेवाली लेकिन उनका जरुर आर्थिक फायदा हो जायेगा, जो चाहते है कि इसके नाम पर माल बटोरे।

एक अखबार प्रभात खबर ने तो डांडिया के नाम पर कई संस्थानों से माल बटोरे लिये हैं। आप उसके आज का अखबार पढ़ लीजिये, पता लग जायेगा। आश्चर्य है कि बड़ी संख्या में कई संस्थान प्रभात खबर की डांडिया के नाम पर गोद भराई भी कर चुके हैं। नीचे दिया गया फोटो प्रभात खबर के कुकृत्यों को साफ दिखा रहा है।

अभय मिश्रा तो जेसीआई द्वारा कराये जा रहे डांडिया पर आपत्ति उठाते हुए साफ लिखते है कि ई सब व्यापारी है। ई लोग हिन्दू धर्म नाशक है। जिसे हिन्दू मंदिर, पर्व इत्यादि तक पसन्द नहीं, उसे डांडिया में अनुमति कैसे? दम है तो सभी को पंडाल में आरती, मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करवा दो तो जानें।

ज्ञातव्य है कि जेसीआई के डांडिया नाइट में मुस्लिमों को भी भाग लेने की अनुमति दे दी गई। जो मुस्लिम नाच-गानों को हराम मानते हैं और इसे गंदी नजरों से देखते हैं। अभय मिश्रा ने तो जेसीआई से सीधे सवाल भी पूछ डाले हैं। जिसका जवाब जेसीआई के पास नहीं हैं। जेसीआई के डांडिया नाइट में गाना क्या बजा, जरा सुनिये। गाना बजाया गया, कमरिया करें लचालच, लॉलीपॉप लागे लू। अब अभय मिश्रा के सवाल देखिये …

  1. आपके इस डांडिया नृत्य में कितने मुस्लिम महिलाओं ने भाग लिया?
  2. डांडिया नृत्य तो मां दुर्गा के लिए नौ दिनों का उत्सव है, आपके यहां यह कितने दिनों का होगा?
  3. डांडिया नृत्य शुरू करने के पूर्व विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा अर्चना होती है, आपने गर पूजा अर्चना की तो कितने सभी धर्मों के लोगों ने उसमें भाग लिया?
  4. गर पूजा अर्चना नहीं की तो यह डांडिया नृत्य तो नहीं हुआ, ये तो नाच हुआ या नहीं?
  5. जैसा कि सूचना है आपने कोई पूजा अर्चना नहीं किया तो फिर इतने हिन्दू महिलाओं को सम्मिलित कर आप लोगों ने अन्य धर्म के लोगों को निमंत्रण कर षड्यंत्र के तहत नाच क्यों दिखलाई?
  6. आप लोगों के इस कृत्य से पुरे सनातन समाज का माखौल उड़ा, सनातन संस्कृति, पंरपरा का मान मर्दन किया गया, यह एक कुत्सित मानसिकता का परिचायक नहीं तो और क्या है? एक तरह से देखा जाय तो यही सवाल अखबारों द्वारा इन दिनों चलाये जा रहे डांडिया नाइट से भी होना चाहिए। धर्म के मूल स्वरूप को जाननेवाले विद्वानों का कहना है कि ये बेशर्म अखबारवालों को हिन्दू धर्म के उत्थान या पतन से क्या लेना? इन बेशर्मों को तो अपनी गोद भराई से मतलब है।