रांची के प्रमुख अखबारों में बैठे स्थानीय संपादकों को औसत निकालना तक नहीं आता, सभी ने झारखण्ड में मतदान की अल-बल औसत निकाल झारखण्ड के पाठकों के दिमाग की बत्ती की गुल
यह शत प्रतिशत सही है। रांची के प्रमुख अखबारों जैसे प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान व दैनिक जागरण में कार्यरत संपादकों/पत्रकारों को औसत निकालना तक नहीं आता। अगर इन्हें औसत निकालना आता तो कम से कम ये सही औसत निकालकर झारखण्ड की जनता को जरुर बताते कि कल संपन्न हुए झारखण्ड के चार शहरों में मतदान का प्रतिशत यह रहा। अपने ही अखबारों में दिये विभिन्न शहरों के मतदान का प्रतिशत तो इन्होंने दिया, लेकिन पूरे झारखण्ड में हुए मतदान की प्रतिशतता निकालने में इन सब की हवा निकल गई।
किसी ने 63.76% तो किसी ने 63.73% बता दिया, जबकि सभी गलत थे। हो सकता है कि संपादक महोदय की गणित कमजोर हो या औसत निकालने नहीं आता हो। किसी के भी कहने पर औसत प्रकाशित कर दिये हो। लेकिन हम चाहेंगे कि यहां के सभी संपादक कम से कम गणित की कक्षा लेकर औसत की पढ़ाई जरुर पढ़ लें ताकि पाठकों के दिमाग का ये फलूदा न निकाल सकें और न ही उनके दिमागों में अपना झूठ न ठुस सकें।
सबसे पहले प्रभात खबर को देखिये। इसने अपने प्रथम पृष्ठ पर ‘गांवों में बूथों पर दिखा उल्लास शहर को वोटरों ने किया निराश’ नामक शीर्षक से खबर छापी है। सब-हेडिंग में लिखा है – ‘63.73% वोट, इस बार 1.06 प्रतिशत कम मतदान हुआ पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले’। ठीक उसके बगल में लोकसभा के नाम और इस बार हुए मतदानों की प्रतिशतता भी बताई है।
जिसमें लिखा है 2024 में गिरिडीह में 66.86, धनबाद में 60.40, रांची में 61.93 और जमशेदपुर में 66.79 प्रतिशत मतदान संपन्न हुआ। इसी बात का जिक्र समाचार के अंदर भी है। अब सवाल उठता है कि प्रभात खबर की ही बात मानें और इन चारों शहरों में हुए मतदान की औसत प्रतिशतता निकालें तो हो जाता है – 63.99%
और अब दैनिक भास्कर की बात कर लें। ये प्रथम पृष्ठ पर लिखता है कि तीसरे चरण की चार सीटों पर 63.76% औसत मतदान और आगे लिखा है कि 2024 में रांची में 61.93, जमशेदपुर में 66.92, धनबाद में 60.40 और गिरिडीह में 66.86 प्रतिशत मतदान संपन्न हुआ। इसकी सही-सही औसत मतदान निकला जाये तो निकल जायेगा 64.02%।
हिन्दुस्तान व दैनिक जागरण की औसत प्रतिशतता दैनिक भास्कर से मिलता-जुलता है। इसलिए हिन्दुस्तान व दैनिक जागरण हिन्दी दैनिक को लेकर अलग से लिखने की कोई आवश्यकता मैं नहीं समझता। आप इसी आलेख में दैनिक भास्कर पढ़कर हिन्दुस्तान व दैनिक जागरण के बारे में हालो-गम जान लीजिये। दरअसल सच्चाई यह है कि आज के अखबारों में बैठनेवाले संपादक/पत्रकार मेहनत करना नहीं जानते।
ये सीधे कही से भी कचरा आता है। उस कचरे को उठाकर अपने यहां स्थान देकर उसे फैलाने में विश्वास करते हैं। जिससे ये सब गड़बड़ियां सामान्य होती चली जा रही है। जबकि इन संपादकों का वेतन लाखों में होता है, पर सच पूछिये तो ये हजारों का भी काम नहीं करते। जिसका नतीजा सामने हैं। इसलिए विद्रोही24 कहता है कि अखबार पढ़कर अपने दिमाग की बत्ती गुल मत कीजिये, आप इन संपादकों/पत्रकारों से बेहतर जानते हैं। इसलिए अखबारों में छपनेवाले अल-बल की न्यूजों से खुद को बचाइये। ये आपकी और आपके परिवार की सेहत के लिए बहुत ही जरुरी है।