झारखण्ड उच्च न्यायालय का नया भवन और एक वरीय अधिवक्ता अभय मिश्रा का छलकता भावनात्मक दर्द
झारखण्ड उच्च न्यायालय अब अपने नये भवन में शिफ्ट हो रहा है। इस नये भवन में शिफ्ट हो रहे झारखण्ड उच्च न्यायालय को लेकर जहां अधिवक्ताओं में खुशियां हैं, वहीं कई अधिवक्ता ऐसे भी हैं, जो पिछले कई वर्षों से पुराने भवन में रहकर इसके गौरव के क्षण को देखे हैं, वे भावनात्मक रुप से इसका मोह परित्याग नहीं कर पा रहे हैं, जिसके कारण उनका दर्द छलक रहा है।
ऐसा नहीं की ये नये भवन में नहीं जाना चाहते, जाना तो ये भी चाहते हैं, पर पुराने भवन की इस याद को अपने दिल में समेटकर रखना चाहते हैं, जिस कारण उनका ये भावनात्मक दर्द छलकता हुआ दिख रहा हैं। ऐसे ही एक वरीय अधिवक्ता है – अभय कुमार मिश्रा। जिन्होंने अपने सोशल साइट फेसबुक पर कुछ लिखा हैं, जिसे मैं हु-ब-हू आपके समक्ष रखना जरुरी समझता हूं, ताकि आप भी उनके भावों को, उनकी पीड़ा को समझ सकें। आइये देखते है कि उन्होंने अपने फेसबुक पर लिखा क्या है?
“सन 1999/2000 से उच्च न्यायालय झारखंड में अधिवक्ता के रूप में सेवा दे रहा हूं। जब यहां आया था तब, पटना उच्च न्यायालय, रांची बेंच था। अब, लगभग 24 वर्षो के उपरांत, यह पहला अधिसूचना जारी हुआ है। अधिवक्ताओं के लिए नया उच्च न्यायालय भवन में हमें जाना है। उसके लिए नया नियम बना है। बहुत बढ़िया नियम बनाया गया है।
उच्च न्यायालय चैंबर सभी अधिवक्ता को प्रक्रिया के तहत आवंटित किया जाएगा। उच्च न्यायालय के तीन माननीय न्यायाधीश व दो पदाधिकारी अधिवक्ता संघ के सदस्य रहेगे। सबसे उत्तम है वरीय अधिवक्ता व सभी अधिवक्ता का इसमें ध्यान रखा गया है।बिल्कुल पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई है आवंटन के लिए। मूल्य (Security) भी बहुत कम है। महीने का रखरखाव के लिए 1500/1200 रूपए।
मुझे तो कम लग रहा है। नोट – हाल में बैठने का व्यवस्था निशुल्क है। मुझे पता है इस बात से मेरे साथी अधिवक्ता सहमत नहीं होंगे। क्या है कि भारत में सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष, आज़ाद भारत और ग़ुलाम भारत से ही मुफ्त, मुफ्त, मुफ्त की राजनीति करते रहे हैं। आज एक साथी अधिवक्ता को जोड़ते घटाते सुना। दो लाख / एक लाख सुरक्षित जमा। उपर से बिजली बिल, रखरखाव का खर्च। कुल मिलाकर कर 60,000 रुपए का हर वर्ष का खर्च।
एक अधिवक्ता का तर्क था जब सरकार ने बना कर दिया है तो, उच्च न्यायालय को किस बात का पैसा? जब 700 करोड़ का भवन है, नया उच्च न्यायालय। तो अधिवक्ता को मुफ्त में क्यों नहीं मिला? चेंबर, राष्ट्र ऐसे ही नहीं, नीचे जा रहा है। समाजवाद आया था बराबरी के लिए। भारत में समाजवादी ले कर आए, मुफ्त, मुफ्त, मुफ्त। इतनी खुशी की बात है , झारखंड को नया उच्च न्यायालय का भवन मिल रहा है,
तो लगे मेन मीख निकाले। हम सही वो ग़लत। झारखंड उच्च न्यायालय का यह भवन कभी नेपाल महाराज का था, आजादी के बाद अधिग्रहण हुआ, राजा कोठी में वर्तमान उच्च न्यायालय, आज़ादी के पूर्व तक गोरखा बटालियन के आला अधिकारी व नेपाल महाराज उपयोग में लाते। रानी कोठी में सीआईडी, पुलिस, उच्च न्यायालय के पूर्व इस भवन में चलता था, एचइसी का कैंप कार्यालय, बेचारा एचइसी का लाकर पर बैठ कर आज शमीम स्टैप भेंडर, टिकट बेच रहा है।
कभी यह लॉकर, राजा नेपाल के कार्य आता रहा होगा, फिर एचइसी कैंप कार्यालय के उपयोग में रहा होगा, फिर पटना उच्च न्यायालय, रांची बेंच के काम आया होगा, फिर झारखंड उच्च न्यायालय के, अब भी वही पर है, ये यही रह जाएगा। हम लोग नया भवन में चले जाएंगे। चूंकि यहां गोरखा बटालियन था। अंग्रेजी शासन में फिर हुआ बीएमपी, Bihar Military Police, (Gorkha), फिर हुआ, JMP (Jharkhand Armed Police), Gorkha हटा दिया गया। जैसे, पटना उच्च न्यायालय लिखा, रांची बेंच था। इस भवन पर, 15.11.2000 को पटना हटा कर झारखंड लिख दिया गया। पहली बार झारखंड उच्च न्यायालय का नया भवन बन कर तैयार है। बहुत खुशी की बात है। सभी को बधाई।