जिस-जिसने अपने चरित्र को संभाल कर रखा, वे आज भी आदरणीय हैं और जिसने चरित्र को…
मेरे प्यारे बच्चो,
खुब खुश रहो।
तुम जो चाहते हो, वह प्राप्त होता है, पर ये तुम्हें निश्चय करना हैं कि वह चीज जो तुम प्राप्त करना चाहते हो, कैसे प्राप्त करना चाहते हो? असत्य का मार्ग अपनाकर, या सत्य का मार्ग अपनाकर, अगर तुम्हे कोई कष्ट होता है या दर्द का अनुभव होता है तो समझो तुम पर ईश्वर बहुत प्यार लूटा रहा है, वह तुम्हारे साथ है, क्योंकि जिन्हें ईश्वर सुख प्रदान करता है, उससे ईश्वर बहुत दूर चला जाता है।
इसको तुम इस प्रसंग से समझो, जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया, पांडवों को उनका हक प्राप्त हो गया, पांडव खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने कुंती से कहा कि अब मैं हस्तिनापुर से लौटना चाहता हूं, क्योंकि अब मैं देख रहा हूं कि यहां अब सब कुछ ठीक है, पांडवों का सारा दुख अब समाप्त हो चुका है, तभी कुन्ती ने कहा कि, हे कृष्ण जब हमलोग दुख में थे, तो आपने हमारा कभी साथ नहीं छोड़ा, और अब जबकि सुख ही सुख है, आप हमें छोड़ना चाहते हैं, इससे अच्छा है कि, हे श्रीकृष्ण आप हमे सिर्फ दुख ही दुख प्रदान करें, ताकि आपका कभी साथ छूटने न पायें। भगवान श्रीकृष्ण, कुन्ती के इस भाव को सुन द्वित हो उठे, और उनके मुख से एक भी शब्द नहीं निकले, दोनों नेत्रों से अश्रुधारा बह निकली।
दूसरा प्रसंग देखो, मोहनदास राजकोट के दीवान के बेटे थे, मात्र 13 साल में ही उनकी कस्तूरबा से शादी हो गई, इंग्लैंड जब वे पढ़ने को गये, तब वे फैशन के दीवाने थे, जिन्हें आजकल लोग मस्तियां काटना कहते हैं, वे मस्ती काट रहे थे, ऐसा नहीं कि उनके पास किसी चीज की कमी थी, भला एक राजकोट के दीवान के बेटे के पास किस चीज की कमी हो सकती है, पर जैसे ही उन्हें परतंत्रता का आभास हुआ, जैसे ही उन्हें एक रेलयात्रा के दौरान, अंग्रेजों की घटियास्तर की मनोवृत्ति का पता चला, उनके पास रेलयात्रा की उचित टिकट होने के बावजूद, रेल से उतार दिया गया, अपमानित किया गया, फिर भारत आये और भारत की दुर्दशा देखी, तब उन्होंने सुख का परित्याग कर दिया, लंगोटी पहनी, सादा जीवन बिताना प्रारंभ किया, दुख को गले लगाया, और वे सीधे मोहनदास से महात्मा गांधी हो गये।
तीसरा प्रसंग, हम रांची में रहते हैं, एक पत्रकार जो देश के कई पत्र-पत्रिकाओं में सेवा दिया, जिसने अपने आलेखों से कई कीर्तिमान स्थापित किये, एक छोटे से जिले से निकलनेवाले अखबार को कई राज्यों की राजधानियों तक पहुंचाया, पर जैसे ही उसे शार्टकट माध्यम अपनाकर राज्यसभा जाने की लालच जगी, उसने अपनी जिंदगी भर की कमाई पूंजी को, बिहार के निकृष्टतम नेता के आगे दांव पर लगा दी, उस निकृष्टतम नेता ने उक्त पत्रकार के अंदर छूपे लालच को ताड़ लिया और उसे राज्यसभा भेज दिया, आज वह राज्यसभा का उपसभापति भी हैं, आश्चर्य होता है कि उसके लिए एक अखबार झूठा सम्मान समारोह आयोजित करता है, और लोग उसकी झूठी जय-जयकार करते हैं, और वह मंत्रमुग्ध होता है, पर तुम नहीं जानते, कि उक्त पत्रकार को ईश्वर क्या देना चाहता था, और वह ईश्वर द्वारा दिये जा रहे अनुपम उपहार को ठोकर मारकर, एक निकृष्टतम नेता के आगे, अपने जीवन भर की पूंजी दांव पर लगा दी।
ऐसे कई प्रसंग है, जो मैं सुना सकता हूं, पर जरा सोचो कि जिंदगी किसके लिए और क्यों? जब तुम कुछ बनना चाहते हो, तो कुछ नहीं बन पाते और जब कुछ नहीं बनना चाहते तो सब कुछ बन जाते हो। इस बात को गांठ बांध लो कि जब जिन्ना पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो गांधी भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे क्या? पर गांधी ने इस प्रकार के पद को ठोकर मारना ज्यादा उचित समझा, जब देश आजादी का जश्न मना रहा था, गांधी दिल्ली से दूर कोलकाता में फैले दंगापीड़ितों के घावों पर मरहम लगाने का काम कर रहे थे, इसलिए बनना है तो गांधी जैसा बनना, लाल बहादुर शास्त्री जैसा बनना, आजकल के अटल बिहारी वाजपेयी या नीतीश कुमार जैसा नहीं। जो अपनी झूठी स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपने चरित्ररुपी पूंजी को ही दांव पर लगा दें।
मैं एक बार फिर कहता हूं कि तुम्हें वो हर चीजें मिलेंगी, उसके लिए तुम्हें ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं, बस अपनी चरित्र रुपी पूंजी को बचा कर रखना, क्योंकि यह वह नींव है, जो मनुष्य के जीवन रुपी मकान को मजबूती से पकड़े रहती हैं, जिस पर मकान सदा के लिए मजबूती से टिका होता है, क्योंकि अगर चरित्र रुपी नींव मजबूत नहीं हुई तो फिर कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा ताकतवर क्यों न हो, उसे एम जे अकबर और तरुण तेजपाल की तरह ताश के पत्तों की तरह ढेर होते देर नहीं लगेगी।
हमने पटना-रांची में पत्रकारिता के दौरान बहुत सारे पत्रकारों को देखा, जिस-जिसने अपने चरित्ररुपी पूंजी को संभाल कर रखा, वे आज भी आदरणीय बने हुए हैं, और जो चरित्र बेचकर धन-पशु बने, वे अपने जीवन में ही पूरे परिवार सहित नष्ट हो गये, अब तुम ही बताओ कि ऐसे जीवन से क्या फायदा, ऐसे पैसे से क्या फायदा, जो हमारे जीवन को कालांतराल में ही नष्ट कर दें, इसलिए जैसे ईश्वर, तुम्हें जिस हाल मे रखे हैं, उस पर गर्व करना सीखों, उसी में आनन्द ढूंढना सीखों, ईश्वर को किसी भी परिस्थितियों में मत भूलों, फिर देखों कि जिंदगी कितनी आनन्ददायक हैं, हां एक बात और, ये कभी मत भूलना कि यह जीवन तुम्हें ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार है, ईश्वर हमेशा तुम्हारे साथ रहता है, वह तुम्हें कभी नहीं भूलता, चलो अब मुस्कुराओ, हां ये बात हुई न।
हमारा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है।
तुम्हारा
कृष्ण बिहारी मिश्र