अपनी बात

रांची की जनता ने देखा राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों रांची में, पर स्थापना दिवस समारोह में भाग लेने के लिए इनके पास समय नहीं, CM हेमन्त ने अकेले संभाला मंच

अपरिहार्य कारण तो आप सभी जानते ही होंगे, इसका प्रयोग तब होता है, जब किसी विद्वत जन अथवा संवैधानिक पद पर बैठे महान आत्माओं को किसी कार्यक्रम में जहां से बुलाया जाता है, वहां वे आने की हामी भर देते हैं, पर ऐन मौके पर उन्हें ज्ञान प्राप्त होता है कि अरे वहां तो जाना ही नहीं हैं, अथवा उपर से उन्हें किसी का दबाव होता है कि आपको तो उसमें भाग ही नहीं लेना हैं, तो फिर यह अपरिहार्य कारण जैसे शब्दों का प्रयोग कर, वे उक्त कार्यक्रम से पिंड छुड़ा लेते हैं और बेचारा वो शख्स जो इन महानुभावों द्वारा अनुमति मिल जाने के बाद उमंग-उल्लास में भर जाता है, दुगने उत्साह से अपने कार्यक्रम को और गति देने लग जाता है, उसकी सारी खुशियां इन अपरिहार्य कारण जैसे दो शब्दों के आगे काफुर हो जाती है।

खैर, अब बेचारा कार्यक्रम आयोजित करानेवाला तो कार्यक्रम कराने का बीड़ा उठा लिया हैं तो वो कार्यक्रम करायेगा ही, उसे भला कौन रोक सकता है, तभी तो आज रांची के मोराबादी कार्यक्रम में झारखण्ड राज्य का स्थापना दिवस समारोह का मुख्य कार्यक्रम मनाया जा रहा था और अपरिहार्य कारणों से भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू रांची आई जरुर, उलिहातू गई जरुर, पर रांची के मोराबादी स्थित झारखण्ड राज्य स्थापना दिवस में भाग लेना उचित नहीं समझा, जबकि वो जब झारखण्ड की राज्यपाल थी, तो बड़े ही उत्साह के साथ इस कार्यक्रम में भाग लिया करती थी।

अब चूंकि राष्ट्रपति है तो पता नहीं क्यों, उन्होंने इस कार्यक्रम से दूरी बना ली, हालांकि राजनीतिक पंडित इसके अंदर की बात भली भांति जानते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इस कार्यक्रम में नहीं भाग ली तो शायद हो सकता है कि राज्यपाल रमेश बैस भी अपरिहार्य कारणों से इस कार्यक्रम में भाग लेना उचित नहीं समझे हो, तभी तो उन्होंने भी इस कार्यक्रम से खुद को किनारा कर लिया।

मैंने पता लगाया कही ऐसा तो नहीं कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की ओर से उन्हें निमंत्रण न मिला हो, तब कई अधिकारियों ने यह कहा कि ये कैसे हो सकता है कि राष्ट्रपति को निमंत्रण मिले और राज्यपाल को निमंत्रण ही नहीं जाये। तभी भाजपा सांसद निशिकांत दूबे के एक टिव्ट पर विद्रोही24 की नजर पड़ती हैं जो कुछ और ही बयां कर रही है।

निशिकांत दूबे ट्विट के माध्यम से कहते है कि – “मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी की नज़र में महामहिम झारखंड के राज्यपाल चपरासी के बराबर हैं, आज स्थापना दिवस है और आज ही उनको निमंत्रण, इतना अहंकार, शब्दों की मर्यादा नहीं! आज अख़बार के विज्ञापन में राज्यपाल जी का फ़ोटो नहीं, यह राज्य प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी है और इसके अधिकारी उनके चमचे”

हालांकि निशिकांत दूबे ने अपने ट्विट में बहुत कुछ लिख दिया है, पर इस बात की चर्चा तो हम जरुर करेंगे कि आखिर झारखण्ड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर राज्य के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने जो विज्ञापन जारी किये हैं, उस विज्ञापन में राज्यपाल का चित्र क्यों नहीं? यही हाल पर्यटन विभाग से जारी विज्ञापन का है, उसमें भी राज्यपाल का चित्र गायब है?

जब मैंने इस संबंध में राज्य के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के निदेशक राजीव लोचन बख्शी से बात की, तब उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार किया। कमाल की बात है कि राज्य के अखबारों में छपनेवाले विज्ञापनों से राज्यपाल के चित्र गायब थे, पर मोराबादी स्थित स्थापना दिवस के मंच के बैकड्राप पर राज्यपाल के चित्र को सम्मान मिला था, जो शिलान्यास समारोह का कार्यक्रम चल रहा था, उस शिलान्यास में भी राज्यपाल के नाम स्पष्ट रुप से दिखाई दे रहे थे।

दरअसल ये सारा मुद्दा राज्य और केन्द्र के बीच टकराव से जुड़ा है। हर कोई अपना दम दिखा रहा है। प्रवर्तन निदेशालय ने 17 नवम्बर को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को अपने कार्यालय में बुलाने के लिए समन जारी किया है। शायद समन जारी होते ही केन्द्र और उसके इशारों पर संवैधानिक पदों पर बैठे व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने हेमन्त सोरेन को मुजरिम मान लिया हैं, तभी तो उनसे दूरियां बनाने के लिए अपरिहार्य कारणों की मदद से वो सारे कार्य किये जा रहे हैं, जिसमें अंततः जनता पीसती जा रही हैं।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि दोनों ओर से राजनीतिक मर्यादाओं की धज्जियां उड़ रही हैं, पर इसकी चिन्ता किसको है? राज्यपाल एक टीवी चैनल के माध्यम से एटम बम फूटने की बात कहते है, क्या किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की ये भाषा हो सकती है। आम जनता की बात करें तो वो साफ कहती है कि देर से मिला न्याय भी अन्याय के बराबर है, अगर चुनाव आयोग ने अपना मंतव्य दे दिया है तो उस मंतव्य से कौन सा भूकम्प हो जायेगा, आखिर राज्यपाल उस लिफाफे में लिखे शब्दों को जनता के बीच उजागर क्यों नहीं करते? कौन उन्हें रोक रखा है?

राजनीतिक पंडितों की मानें तो पहली बार देखने को मिला कि राष्ट्रपति रांची आई, पर उन्हें मोराबादी आने का समय नहीं था, राज्यपाल राजभवन में थे, पर उन्हें मोराबादी आने का समय नहीं था। ऐसे में रांची के मोराबादी में चल रहा राज्य स्थापना दिवस समारोह को अगर अकेले हेमन्त सोरेन ने सफल बनाने की कोशिश की और उसमें वे लगे रहे तो कम से कम इस बात के लिए तो हेमन्त सोरेन की तारीफ तो करनी ही पड़ेगी, आगे का परिणाम जो हो।

राजनीतिक पंडित तो यह भी कहने से नहीं चूंके, कि आज हेमन्त सोरेन ने अपनी राजनीतिक ताकत तो दिखाई ही, आगे उनके राजनीति का उत्तराधिकारी कौन होगा? इस पर भी मुहर लगा दी, समझदार के लिए इशारा काफी है। हेमन्त सोरेन ने कह दिया कि भविष्य में अगर वो नहीं तो भाजपा भी नहीं, लेकिन सत्ता की बागडोर झामुमो के पास ही रहेगी और उसकी चाबी निःसंदेह हेमन्त सोरेन के पास रहेगी, क्योंकि 1932 के खतियान, आरक्षण और सरना पर तो जवाब भाजपा को ही देना है। केन्द्र में बैठे उनके इशारे पर चलनेवाले संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को ही इसका जवाब देना हैं, जब जनता उनके भवनों के सामने होगी।