धर्म

भक्ति का स्थान धर्म से भी ऊंचा, इसे समझने की जरुरत, अगर आप ईश्वर से प्रेम करेंगे, दिल की गहराइयों से उन पर अपनी भक्ति समर्पित करेंगे तो निश्चय ही आप ईश्वर से संवाद कर रहे होंगेः स्वामी अमरानन्द

धर्म से भी भक्ति का सर्वोच्च स्थान है। इसे सभी को समझने की जरुरत है। अगर आप ईश्वर से प्रेम करेंगे, उनसे भक्ति करेंगे तो फिर आप उस शांति को प्राप्त करेंगे, जिस शांति को बड़े-बड़े योगियों ने अनुभव किया। अपने परमहंस योगानन्द जी तो खुलकर कहते थे कि केवल प्रेम से ही मेरे स्थान को प्राप्त किया जा सकता है। उक्त बातें आज योगदा सत्संग आश्रम में रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी अमरानन्द गिरि ने कही।

स्वामी अमरानन्द गिरि आज भक्ति योग पर अपनी बातें योगदा सत्संग आश्रम से जुड़े योगदा भक्तों के बीच रख रहे थे। उन्होंने भक्ति योग को लेकर एक से एक दृष्टांत दिये, जो आत्मसात् करनेवाले थे। उन्होंने एक बड़ा ही सुंदर दृष्टांत दिया जो मीराबाई से जुड़ा था। उन्होंने कहा कि अगर भक्ति देखनी हो, तो मीराबाई की देखिये। उनकी भक्ति में कोई अहंकार नहीं था। वो तो कृष्ण भक्ति में इस प्रकार स्वयं को भूला बैठी थी कि उन्हें पता भी नहीं था कि वो स्त्री है या पुरुष। वो तो श्रीकृष्ण को छोड़ दूसरे को कभी जानने की कोशिश ही नहीं की, यहां तक को खुद को भी जानने की कोशिश नहीं की। ये होती हैं – भक्ति।

स्वामी अमरानन्द गिरि ने भक्ति के ही दृष्टांत देने के क्रम में संत रविदास के नाम जप और नीम करोली बाबा की भक्ति का भी जिक्र किया। उन्होंने इसी क्रम में दया माता और मृणालिनी माता का भी उदाहरण पेश किया। उन्होंने कहा कि जब दया माता रांची आई तो सभी ने देखा कि वो मंदिर में रहती या मंदिर के पास से गुजरती तो वो समाधि में चली जाती, आखिर वो कौन सा कारण था कि दयामाता को ऐसी भक्ति लगी कि फिर दूसरा आवरण उन्होंने ओढ़ा ही नहीं। यहीं नहीं जब भगवन्न नाम संकीर्तन होता तो उनके आंखें आंसूओं से भर जाती।

स्वामी अमरानन्द गिरि ने कहा कि भक्ति एक ऐसी धारा है, जो व्यक्ति को अत्यंत विनम्र, सरल व सहज बना देती है। भगवान की भक्ति ही हमें शांति देती है। उन्होने कहा कि अगर आप भक्ति की उच्चावस्था को पाना चाहते हैं तो आप क्रिया योग को अपनाइये। क्रिया योग के द्वारा आप भक्ति के मूल तत्व को जान सकते हैं। उन्होंने कहा कि भक्ति में अपने गुरु व ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि अगर आप की भक्ति गुरुजी में हैं तो आप पायेंगे कि उनकी लिखी योगी कथामृत आपके लिए कैसे मार्ग प्रशस्त करती है। जब आप समस्याओं से घिरे हो, तो आप योगी कथामृत का सहारा लीजिये। गुरुजी को मन ही मन स्मरण कर अपनी समस्या उनके समक्ष रखिये और फिर गुरुजी को याद करते हुए योगी कथामृत को सामने रख, कोई भी पाठ खोलकर पढ़िये, कोई जरुरी नहीं कि आप शुरु से लेकर आखिरी तक पढ़ जाइये। आप कोई भी एक पाठ पढ़िये, आपको उस पाठ में समस्या का हल निकल जायेगा। लेकिन ये तभी होगा, जब आपकी गुरुजी के प्रति सच्ची भक्ति निहित होगी।

उन्होंने कहा कि सादा जीवन उच्च विचार उसी का हो सकता है, जिसने भक्ति के मूल स्वरुप को पहचाना है। भक्ति योग की इतनी महत्ता है कि आप इससे ईश्वर को पा सकते हैं। आप उनसे बात कर सकते हैं। लेकिन इसके  लिए आपको ईश्वर से प्रेम करना सीखना होगा। वो भी प्रेम कैसा, हृदय की गहराइयों से। हमेशा याद रखिये कि ईश्वर आपको नहीं भूलता, बल्कि आप ईश्वर को भूल जाते हैं।

ईश्वर से प्रेम करने का अनेक तरीका है। उनमें से एक तरीका ईश्वर के नाम का संकीर्तन, नाम जप, उनके आगे उनके भाव में डूबकर स्वयं को खो देना, नृत्य करना, उनसे बातें करना आदि हैं। जैसे ही आप इस प्रकार से भगवान को रिझाने का काम करेंगे, माया स्वतः आपसे बहुत दूर चली जायेगी। हमेशा गुरुजी को विज्यूलाइज्ड करें, ध्यान के पहले या ध्यान के बाद और अगर दोनों बार हो तो फिर क्या कहनें। आप पायेंगे कि गुरुजी आपका मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

उन्होंने भक्ति योग की तीन महत्वपूर्ण अवस्थाओं पर खुलकर चर्चा की। वो अवस्थाएं थी। महाभक्तिभाव, प्रेमभक्ति और श्रवणम्। उन्होंने कहा कि आपने भगवान की आरती देखी होगी। वो आरती क्या है? वो भी भक्ति का एक सरल मार्ग है। ये आपकी सभी ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करती हैं। खोलती हैं। उसमें भक्ति के रस घोलती हैं और फिर आप ईश्वर के होने लगते हैं। जैसे आरती में बजनेवाली घंटियां आपके कानों को, उसमें जलनेवाले दीप आपके कूटस्थ को ज्योति देने का काम करती हैं। इसी प्रकार आरती से संबंधित जितनी भी क्रियाकलाप हैं, वो आपकी समस्त ज्ञानेन्द्रियों को उपकृत करती हैं।