अपनी बात

रांची सदर थाने में भूख से जूझ रहा वो गरीब, हिन्दपीढ़ी के उन अमीरों से कही ज्यादा महान था, जो सरकारी अनाज लेने के लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे

रांची का सदर थाना,

दिन के 12 बजकर बीस मिनट,

एक पुलिस अधिकारी क्या जी, खाना खा लिये?

एक गरीब रिक्शावाला हां हुजूर, खाना खा लिये।

पुलिस अधिकारी और बताओ, घर में खाना बनाने को कुछ है कि नहीं?

गरीब रिक्शावाला हां, हुजूर है, आप जो पांच किलो चावल, दाल, आटा दिये थे न, सब है।

पुलिस अधिकारी और ले लो, समय खराब है, काम ही देगा।

गरीब रिक्शावाला नहीं हुजूर, ले जाकर क्या करेंगे? यहां पर रहेगा तो वहीं अनाज दूसरों को काम देगा, हमको जब घटेगा, तो फिर आपके यहां आकर ले लेंगे, आप तो खाना खिलाते ही है।

गरीब रिक्शावाला का यह कथन, मेरी आत्मा को झकझोर दिया, आम तौर पर जिनके घर में गरीबी और भूख दस्तक देती है, तो लोग ईमान बेच देते हैं, यहां तो कोरोना ने गरीबी का मजाक तो उड़ाया ही, भूख ने कही का नहीं छोड़ा, फिर भी ये आत्मस्वाभिमान और दूसरों के लिए ये उम्दा सोच बता दिया कि उन लाखों के पैकेज उठानेवालों से ये गरीब रिक्शेवाले, सड़कों के किनारे अपनी भूख शांत करनेवाले लाख गुणा बेहतर है, जो इस विपरीत परिस्थिति में भी एक उम्दा सोच के साथ जीने की कोशिश कर रहे हैं।

और अब देखिये, रांची के हिन्दपीढ़ी में क्या हो रहा है, हिन्दपीढ़ी में ऐसा नहीं कि केवल गरीब तबका ही रहता है, हां लाखों की पैकेज उठानेवाले लोग भी रहते हैं, केन्द्रीय अधिकारी-कर्मचारी है, जिन्हें किसी चीज की कमी नहीं है, जिनके घरों में दुनिया के सारे ऐशो-आराम की चीजें मौजूद हैं, पर वे कर क्या रहे हैं, उन गरीबों के मुंह के निवाले छीनने से भी बाज नहीं आ रहे, उनके इलाके में जब प्रशासन की ओर से अनाज बांटने वाले लोग पहुंच रहे हैं, तो वे बड़े ही बेशर्मी से आधार कार्ड दिखाकर अनाज के पैकेट लेने से चूक नहीं रहे।

आश्चर्य इस बात की भी है, कि इनके कारण वैसे लोगों को अनाज लेने में दिक्कत हो रही हैं, जिनका उस अनाज पर पहला हक है, पर कहा जाता है कि जब किसी ने बेशर्मी का चादर ओढ़ लिया तो फिर फर्क क्या पड़ता हैं, इसी इलाके में हमने देखा कि कई लोग ऐसे भी दिखे, जो हर प्रकार से संपन्न है, पर वे अनाज लेने के लिए कभी नहीं निकले, पूछने पर बताते है कि हमारे यहां सब कुछ मौजूद हैं तो फिर सरकार द्वारा बांटी जा रही अनाज को लेने के लिए हम क्यों जाये, जिन्हें नहीं हैं, वे जाकर लें, ये ज्यादा जरुरी हैं, क्योंकि जब सभी लोग अनाज लेने के लिए पंक्तिबद्ध खड़े हो जायेंगे तो फिर जरुरतमंदों को अनाज नहीं मिलेगी और लॉकडाउन का माखौल भी उड़ेगा, कोरोना संक्रमण का खतरा भी बढ़ेगा।

सूत्र बताते हैं कि राज्य सरकार द्वारा कहा गया था कि लोगों के घरों तक अनाज पहुंचाया जायेगा, पर यहां तो पंक्तिबद्ध खड़ा करवाकर अनाज बांटे जा रहे हैं, और उसमें भी पंक्तिबद्ध लोगों पर नजर घुमाएं तो पता चल जायेगा कि स्थिति क्या हैं? शायद यहीं कारण है कि वर्तमान में हिन्दपीढ़ी का ही एक विडियो खूब वायरल हो रहा हैं, जिसमें एक गरीब फिल्म लैला मजनूं का वो गीत गा रहा हैं, जिसके बोल है, “होके मायूस तेरे दर पे सवाली न गया, झोलियां भर गई सबकी कोई खाली न गया।” हिन्दपीढ़ी के एक गरीब द्वारा गया गया यह कव्वाली भले ही किसी को मजाक लगे, पर उस गरीब बंदे ने यह गीत गाकर बहुत ही अच्छी चुटकी उन लोगों पर ली, जो अमीर होते हुए भी, भूखों की तरह लाइन लगाकर खड़े थे, पर उनलोगों को शर्म नहीं आ रही थी।

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इधर मैंने देखा कि पूरे रांची में कई सामाजिक संगठन बिना किसी स्वार्थ के अपने सामर्थ्य के अनुसार जगह-जगह पर लंगर लगाये थे, राज्य सरकार द्वारा भी कई जगहों पर बड़े ही सुंदर ढंग से गरीबों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई थी, इसके लिए हेमन्त सरकार को दिल से बधाई और बधाई उन तमाम पुलिस अधिकारियों को जिन्होंने कोरोना को चुनौती के रुप में लिया और इस निर्णायक लड़ाई में अभी भी लगे हैं।

मैंने एक-दो थानों को देखा कि जहां अनाज का भंडारण था, जहां भोजन बन रहे थे, और जहां भोजन कराया जा रहा था, वहां स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जा रहा था, कई जगहों पर देखा कि पुलिसकर्मी बन रहे भोजन को स्वयं चखकर देख लिया कर रहे थे कि जो भोजन बना है, वो सचमुच खानेलायक है या नहीं, या ऐसे ही बनाकर रख दिया गया, पर जब संतुष्ट हो जाते तो परोसी जाती, यानी पहली बार पुलिस का एक विशेष रुप दिखा जो शोषण का नहीं, सेवा का प्रतिरुप था।

जबकि कोरोना संक्रमण की आड़ में कुछ इलाकों में ऐसे भी लोग दिखे, जो गरीबों के निवालों को उनके मुंह से छीनने में भी शर्म महसूस नहीं की। सचमुच ऐसे लोगों से वो गरीब रिक्शावाला ज्यादा महान दिखा, जिसके अंदर भूख थी, पर उसके अंदर लालच नहीं था। वो गरीब था, पर वो दूसरे के हक को छीनने की कोशिश नहीं कर रहा था, सचमुच उस गरीब को दिल से सलाम, और धिक्कार उन हिन्दपीढ़ी के उन अमीरों को जो सरकार द्वारा चलाई जा रही गरीबों के लिए योजनाओं पर भी अपना हक जताने में पीछे नहीं रहे।