जनता ने ऐसी दुर्दशा कर दी कि “घर-घर रघुवर” की चिल्लमपों करनेवाला “ सिर्फ घर में रह रघुवर” बन गया
घर-घर रघुवर तो रघुवर और उनके समर्थक तथा मीडिया के लोग चिल्ला रहे थे, पर जनता तो मन बना चुकी थी कि ना ये सब कुछ नहीं अब “घर में रहे सिर्फ रघुवर” का नारा चलेगा और राज्य के इस बड़बोले नेता रघुवर दास को सदा के लिए घर/बाहर के चबूतरे पर स्थापित पत्थर की प्रतिमा की तरह स्थापित कर दिया जायेगा, जो हिल भी नहीं पायेगा और कुछ बोल भी नहीं पायेगा।
तभी तो भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हो जाने के बावजूद भी रघुवर दास को उनकी ही पार्टी में वो भाव नहीं मिल रहा, जो भाव उन्हें मुख्यमंत्री पद पर रहने पर मिलता था, स्थिति तो यह है कि बेचारे अखबार में छपने के लिए भी तरस जा रहे हैं, क्योंकि अखबारों को भी पता है कि जहां रघुवर को भाव दिये, तो वे दोनों तरफ से जायेंगे, हेमन्त सरकार से विज्ञापन भी नहीं मिलेगा और भाजपा के खार-खाये धुरंधर नेता भी उनसे दूरी बना लेंगे।
तो ऐसे में विज्ञापन तो भले ही नहीं मिले, पर समाचार के टोटे नही होने चाहिए। कहा भी जाता है कि जो जैसा करता है, उसे इसी युग में मिल जाता है, रघुवर दास ने जैसा किया, वैसा वे खुद भुगत रहे हैं। बेचारे सिर्फ सोशल साइट जैसे फेसबुक व ट्विटर पर ही दिखाई देते हैं, अन्य जगहों पर नहीं।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि एक समय था, कि इस व्यक्ति ने भाजपा का टिकट पाने के लिए प्रत्याशियों के नाक तक अपने चौखट पर रगड़वा दिये थे, दिल्ली में बैठे नेताओं को शत प्रतिशत आभास हो गया था, झारखण्ड का मतलब रघुवर दास और मोदी मिल गये तो सारे दल साफ, लेकिन जैसे ही चुनाव का परिणाम आया, सबकी खोपड़ी ही घुम गई। मामला साफ था, बालू की भीत पर पार्टी को खड़ा कर दिया था, रघुवर दास ने।
उस वक्त नगर विकास मंत्री रहे सीपी सिंह को रांची विधानसभा से टिकट लेने के लिए मशक्कत करनी पड़ गई, वे हर-हर रघुवर, घर-घर रघुवर का पम्पलेट लेकर बाहर निकल पड़े थे, शायद रघुवर का ध्यान उसकी ओर आ जाये, और पार्टी की अंतिम बार टिकट मिल जाये, भाग्य अच्छा था, उन्हें मिल गया, जीत भी गये, पर उनकी ये गत भाजपा कार्यकर्ताओं को अच्छी नहीं लगी, वे गांठ बांध लिये, कि किसी भी हालत में रघुवर दास को सत्ता में नहीं आने देना है, जोर लगाया, सफल रहे।
उधर सरयू राय को भी इस रघुवर दास ने पानी पिला दी थी, सरयू राय ने देखा कि पानी सर से उपर चला गया तो उन्होंने स्वयं भाजपा से खुद को अलग कर दिया और रघुवर को सदा के लिए घर में बंद रखने का यज्ञ कर डाला, जनता ने खुब जमकर आहुतियां प्रदान की, बेचारा रघुवर, हर-हर रघुवर, घर-घर रघुवर चिल्लानेवाला व्यक्ति, जनता के दिली मूल मंत्र कि “घर में रह जा रघुवर” के मंत्र में ही बिला गया।
मतलब सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्व विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में लड़कर रघुवर दास को धूल चटा दी। आज स्थिति यह है कि भाजपा में नीचे से उपर तक लेकर झारखण्ड विकास मोर्चा का बोलबाला हो गया। दीपक प्रकाश, बाबू लाल मरांडी आदि नेता बम-बम हो गये और बाकी जयश्रीराम हो गये।
जो अधिकारी या नेता, इनके शासनकाल में बम-बम कर रहे थे, वे बेचारे दाढ़ी बढ़ाकर तीर्थाटन में जुट गये हैं तो कोई रांची शहर से बाहर किसी शिक्षण संस्थान में पढ़ाई-लिखाई का काम कर रहा है, मतलब ऐसी दुर्दशा शायद ही किसी नेता या उनके समर्थकों की कभी हुई होगी, जैसा घर-घर रघुवर कहनेवाले/कहलानेवाले की हुई।
ऐसा नहीं कि इस राज्य में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री केवल रघुवर दास ही हुए, बल्कि भाजपा से बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा भी हुए, पर ऐसी अंधेरगर्दी नहीं थी, जैसा कि रघुवर दास ने किया। होने को तो इस राज्य में अकेली पार्टी के अकेले मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी बने, तो दूसरी सर्वशक्तिमान पार्टी झामुमो से शिबू सोरेन और हेमन्त सोरेन भी बने अथवा हैं, पर कभी इस प्रकार का नारा नहीं दिया, जैसा कि रघुवर दास ने दिया, इसलिए पतन की ये ऐसी पायदान पर पहुंच गये कि चाहकर भी पीएम नरेन्द्र मोदी इन्हे च्यवनप्राश नहीं खिला सकते, और न ही इनकी राजनीतिक कमजोरी उक्त च्यवनप्राश से ठीक ही हो सकती है।
रघुवर लीला से वर्तमान सरकार को भी सीख लेनी चाहिए। पहला सीख ये कि हाथी उड़ता नहीं हैं, और न ही हाथी उडानेवाली कंपनी राजनीतिक स्वास्थ्य के लिए ठीक ही हैं। दूसरी सीख जनता के सामने कभी ऊंचे स्वर में बात नहीं करनी चाहिए और जो वक्त पर साथ दें, उसको कभी छोड़ना भी नहीं चाहिए। तीसरी सीख कनफूंकवें या परिक्रमाधारी किसी के नहीं होते, ये जब आप मजबूत होते हैं तो सटते हैं और जब कमजोर होते हैं तो निकल भागते हैं।
चौथी सीख पैसों की दोस्ती कभी टिकती नहीं। पांचवी सीख दस गधों के साथ रहने से अच्छा है, कि एक शेर के साथ रहा जाये। छठी सीख शूट-बूट टाई लगानेवाला व्यक्ति या अधिकारी तथा उसकी पत्नी या प्रेमिका वोट देने नहीं जाता/जाती, वोट देनेवाला मध्यमवर्गीय/निम्नवर्गीय परिवार होता है, अगर वो खुश तो सब खुश, नहीं तो गये काम से। सातवीं सीख कम बोलिये, ज्यादा सुनिये, बेकार के वायदे मत करिये, बोलिये वहीं जो कर सकें, नहीं तो फंसने के लिए तैयार रहिये।
आठवीं मीडिया से दूरी बनाकर रहिये, क्योंकि ये आपको फंसाकर माल चाभेगा, और जैसे ही आपको चूस लिया, आपको ही जमकर गाली देगा, क्योंकि ये सब महात्मा गांधी या बाबा साहेब अम्बेडकर या माखनलाल चतुर्वेदी के पाठों को पढ़कर पत्रकार नहीं बनें ना चैनल चला रहे हैं। ऐसे तो हमारे पास बहुत सारी बातें हैं, फिर कभी ज्ञान देंगे, फिलहाल इतना पर अमल करियेगा तो दूसरा टर्म भी आयेगा, नहीं तो गइल भइसियां पानी में हैं ही।